पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१५०

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LE आदमियों ने बटुर कर क्या किया किस धुन में लगे? हमें तो इस समय रम्भा और तारा ही का हाल लिखने में मजा जा रहा है, मगर अफसोस, कुछ दूर निकल जाने पर नरेन्द्रसिह को मालूम हुआ कि इन दा ओरतों में रम्भा नहीं है एक ता तारा है और दूसरी गुलाब। मगर है ! यह गुलाब कहां स आ पहुंची ! और रम्भा कहां चली गई? सत्रहवां बयान अब हम अपने पाठकों को एक घने जगल में ले चल कर पत्तो की झोपड़ी में फट कपड़े पहिरे और तमाम अग में भस्म लगाये जलती हुई धूनी के पास उदास सर झुकाए बैठी हुई एक योगिनी से मुलाकात कराते है। चाह इसकी अवस्था केसी ही खराव क्यों न हा मगर फिर भी इसकी जवानी खूबसूरती ओर अगों की सुडौली दखन वालों के दिल पर कुछ ऐसा असर करती है कि बिना घण्टों तक दर्यजी नहीं मानता।योगिनी कहते कलेजा कॉपता है, और सूरत देखते ही जी.बेचैन होकर इस सोच में डूब जाता है कि दुनिया से हाथ धो इस अवस्था में पहुंध कर भी यह अपनी आँखों स आंसुओं की धारा क्यों वहा रही है। आसमान गहरे बादलों से घिरा हुआ है, पानी अच्छी तरह बरस रहा है पछमा हवा के झपेटान पेड़पत्तों से बगावत मचा रक्सी है और उन्हीं के कारण यह झोपड़ी भी जड़ बुनियाद से उखड कर किसी दूसरी ही जगह जा पडने को तैयार है। यह मालूम ही नहीं होता कि सुबह है या शाम । झापडी के अन्दर बैठी सर्दी के मारे आग सेकती हुइ उस बेचारी यागिनी के लिए यह समय और भी दुखदायी हो रहा है। रह-रह कर ऊची सास लेती और कभी-कभी फूट-फूट कर रो देती है मगर किसी तरह भी उसक जी की येनी कम नहीं होती। अचानक इसी समय किसी मुसाफिर न झुक कर झोपड़ी के अन्दर झाका जिसकी सूरत से माफ मालूम होता था कि इस आंधी-पानी से दुखी होकर यह कोई आड़ की जगह ढूँढ रहा है। योगिनी- कौन है ? चले आआ काई हर्ज नहीं, क्यों पानी में जान दे रहे हो यह ता उस गरीविन की कुटी है जो दिन रात दूसरों के ही हित का ध्यान रखती है। मुसाफिर -- हाँ माइ आता हूँ, आपकी कृपा से जान बच जायेगी नहीं तो इस तूफान ने ता यस मार ही डाला है। मुसाफिर झपड़ी में आकर बैठ गया बल्कि दो चार दम लेकर बदहवास की तरह आग के पास लेट गया मगर वह योगिनी इस तरह उसकी तरफ दखने लगी जैसे उसे पहिचानती हो। इस मुसाफिर के कपड़ों पर कई जगह खून के दाग थे और चहर पर के दो-चार निशान यह भी कहे देत थ कि आज ही काल में इसन कहीं तलवार की चाट खाई है। घटे भर बाद उसका जी ठिकाने हुआ और वह उठ बैठा । योगिनी ने उसस बातचीत शुरू कर दी। योगिनी -- क्या किसी डाकू का मुकाबला हा गया था !य जख्म कस लग? मुसा - जी एक बहादुर के हाथ से मरी तरह कई सिपाही जख्मी हुए । योगिनी - वह कौन बहादुर था? मुसा - नरेन्दसिह। नरेन्दसिह का नाम सुन योगिनी न एक लम्बी सास ली और सिर नीचा कर लिया। थोड़ी देर बाद कुछ सोचकर उसने पूछा- 'तुम लागों का नरेन्द्रसिंह से लड़ने की क्या जरूरत आ पड़ी? मुसाफिर - हम लोगों का उनसे लड़ने की कोई जरूरत न थी मालिक ने उन्हें गिरफ्तार करन का हुक्म दिया था इसी स उनस लडना पड़ा मगर वह वहादुर यकायक क्या हाथ आने वाला था । योगिनी - तुम ता केतकी क नौकर हो न ? मुसा - (चौक कर ) जी हाँ लेकिन आप कतकी को क्योंकर पहिचानती है? योगिनी-म कई दफे घूमती-फिरती ऐशमहल तक पहुंच चुकी हूँ। मुझे खूब याद है कि वहाँ तुम्हें पहरा देते देखा था। मुसा -- (गौर से कुछ दर तक योगिनी की सूरत देखकर और पैरों पर गिर कर) वाह वाह, क्या खूब. क्या में ऐसा अन्धा हूँ कि इतने पर भी अपने मालिक का न पहिचान सकूगा? बेशक आपका नाम मोहिनी है ! लेकिन इतने दिनों तक आप कहाँ थी? कतकी ने तो हौरा उडा दिया था कि रात के समय मोहिनी और गुलाब चुपचाप न मालूम कहाँ निकल भागी। मोहिनी-- केतकी ता मरी जान की दुश्मन हा चुकी थी और मुझे मार डालने में भी उसन कोई कसर न छोड़ी थी 'ऐशमहल' उसी आलीशान मकान का नाम था जिसमें नरेन्द्रसिह और केतकी की मुलाकात हुई थी या जहॉ रम्मा और तारा उनस मिली थीं। देयकीनन्दन खत्री समग्र ११५२