पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१५१

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दि k मगर उत्तो बेचारे नरन्दसिह की बदौलत मेरी जान बची जिसके हाथ से तुम जरमी हुए हो। खैर अपना खुलासा हाल म फिर किसी समय कहूँगी इत्त समय तो तुम यह बताआ कि नरेन्द्रसिह कतको के मकान पर कैसे पहुंचे और केतकी को उनसे दुश्मनी क्यों पैदा हुई। जैसी वह कुचाल है उस हिसाब से तो बल्कि उसे खुश होना चाहिए था फिर ऐसी नौबत क्यों आ पहुँची? मुसा - आपका कहना ठीक है मगर मोहिनी-दखा लालसिह हमारे यहाँ तुम सब सिपाहियों के जमादार और अफसर थे हमारे पिता तुन्हें कितना मानते थे इसे तुम भूल न गए होगे। तुम खूब जानते हो कि केतकी कितनी खराब औरत है, बाप का नाम उसने मिट्टी में मिला दिया और मुझको तथा गुलाब को अपन हिसाब स मार ही डाला । मुझको अब उसकी कुछ भी मुहब्बत नहीं है बल्कि जहाँ तक मैं समझती हूँ तुम भी उसे बुरा ही समझते होग। लालसिह-बशक मैं उसे बहुत बुरा सनझता हूँ, मुझ नर्क में रहना कबूल है मगर उसके साथ रहना मन्जूर नहीं। मोहिनी- ठीक है तब मैं यह भी उम्मीद करती हूँ कि तुमको उसका जो कुछ हाल मालूम है साफ कह दोगे और मैं जो उस हरामजादी से अपना बदला लिया चाहती हूँ उसमें मरा साथ ही नहीं दोग बल्कि मेरी मदद करोगे। लालसिह-मैं हर हालत में आपका साथ दूंगा और जो कुछ हाल केतकी का मुझ मालूम है कुछ भी न छिपाऊँगा। माहिनी-अच्छा तो फिर कहो कि नरेन्द्रसिह और केतकी में तकरार होने की नौबत क्यों आ गई? लालसिह - नरेन्द्रसिह तुमका खोजत हुए अकस्मात् ऐशमहल तक जा पहुंचे और केतकी को देख उन्हें धोखा हुआ कि यह माहिनी है, शायद तकलीफ के सबब से उसकी सूरत इतनी बदल गई है। उस समय केतकी मैदान में टहल रही थी, नरेन्द्रसिह बधडक उसके पास चले गए और माहिनी' कह कर पुकारा । मोहिनी - कतकी के तो मन की भई होगी। लाल-जी हॉ बातचीत होने पर उसन भी अपने को मोहिनी ही बतलाया और जाल फैलाने में कोई बात उठान रखी। मोहिनी - फिर क्या हुआ? लाल - इस बात के कुछ ही दिन पहिले घूमती-फिरती दो कमसिन और खूबसूरत औरतें भी वहा आ पहुंची थीं जिनको केतकी ने अपनी सखियों में भरती कर लिया था। मोहिनी- दे कौन थी? लाल- सुनिए मैं सब हाल कहता है। वे दोनों ओरतें नरेन्द्रसिह की खूब खिदमत करने लगी। केतकी का और तुम्हारा हाल हम लागों से मिल जुल कर उन दानों ने अच्छी तरह मालूम कर लिया था। मोहिनी- तब तो उन्होंने जरूर नरेन्द्रसिह को भडकाया होगा? लाल-हों ऐसा ही हुआ। उन दोनों ने जिनका नाम श्यामा और भामा था केतकी का,आपका और साथ ही अपना हाल ठीक-ठीक नरेन्द्रसिह को कह सुनाया जिसे केतकी ने छिपकर अच्छी तरह सुन लिया बल्कि धीरे-धीरे हमलोगों को भी मालूम हो गया। मोहिनी-तमी केतकी बिगडी ! लाल - जी हा, मगर एक बात और भी हुई। मोहिनी- वह क्या। लाल -- आपको यह तो मालूम ही होगा कि नरेन्द्रसिह अपने घर से क्यों निकल भागे थे? मोहिनी - विल्कुल नहीं। उनसे बातचीत करने की तो नौबत भी नहीं आई और हमलोग अलग हो गए । लालसिह - मै नरेन्द्रसिह को पहिले से पहिचानता था और थोडा बहुत उनका हाल भी जानता था क्योंकि तुम्हारे वाप की जिन्दगी में कई दफे उनके घर जाने की नौवत पहुंची थी, मगर केतकी के खौफ से कुछ बोल न सकता था। मोहिनी - तब तो और भी खुलासा हाल मुझे मालूम होगा। लाल -सुनिये मैं सब कहता हूँ। नरेन्दसिह बिहार के राजा उदयसिह के लडके है। उनकी शादी पटने के नामी जमींदार गुलावसिह की लडकी रम्भा से पक्की हुई, मगर नरेन्द्रसिह कहते थे कि मैं जन्म भर शादी न करूगा । खैर उन्होंन चाहे जो कुछ भी कहा-सुना हो पर उनके बाप न उनकी एक न सुनी और शादी ठीक हो गई। तिलक चढ गया और बारातदर्वार्ज पर जा पहुंची, उस समय नरेन्द्रसिह को मौका मिला और वे घोडा भगा किसी तरफ को निकल गए। मोहिनी- वाह वाह ! अच्छा तब? लाल-आखिर राते कलपते सब लाग लौट आये। उसके बाद गुलाबसिह ने दूसरी जगह रम्भा की शादी ठीक की, मगर यह यात रम्भा को मजूर न हुई। लोगों ने बहुत कुछ समझाया-बुझाया और यहाँ तक कहा कि नरेन्द्रसिह लगडे है बदसूरत है दूसरी शादी कर लेने में कोई हर्ज नहीं, मगर उसने एक न मानी। बोली, अधे,लगड लूले चाहे जैसे भी हो मगर मेरे पति ता हो चुके। द्र मोहिनी ११५३