पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१५२

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मोहिनी-शायाश सूर किया ॥ लाल-- रम्भा ने जब देखा कि अब उसके साथ जबदस्ती की जायगी तो अपनी सखी तारा का साथ ले घर से निकल भागी। मोहिनी- वाह रे हौसला धर्म का ध्यान इस कहते है। मगर खेर आगे कहा? लाल-धूमती-फिरती वे दोनों केतकी के यहाँ चा पहुंची. उन्होंन अपना नाम श्यामा और भामा बतलाया और मौका पाकर उन्होनें नरन्दसिह से सब हाल कहा। माहिनी- ( रग बदल कर ) गजय हो गया तब कोई आशा रखना नादानी है । खेर तब? लाल- केतकी न जयदखा कि उसका पर्दा खुल गया यस विगड थेटी। नरेन्दसिट रम्भा और तारा को यफडने का हुक्म दिया मगर नरेन्द्रसिह यकायक क्यों हाथ आन लगथ हम लोगों को जमी होना पड़ा । अन्त में धोखा देकर पीछे स उन पर वार किया गया तब गिर । माहिनी - (चौक कर ) ज्या मर गए? लाल - नहीं नहीं दाही राज में सम्हल गए प्रगर कंद में डाल दिए गया इसफ कई दिन बाद न मालूम कहाँ के चार- पाच सौ आदमी ऐशमहल पर चढ आए और अच्छी तरह उस घर को लूटा बल्कि जाती सम्य रम्भा और तारा को भी पकड कर लत गए। यह हाल देख हमलागों न भी कतकी का साथ छोड दिया और वह नरन्द्रसिह को हाच पैर वधा उसी मकान में छोड़ सखियां को साथ ले डरती कापती गगाजी की तरफ भाग गई। यह सब हाल सुन थोडी दर तक माहनी धुप रही और बडे साच मे डूब गई। उसका रंग दरदम में बदलता रहा मगर धीर-धीरे गुस्से की निशानी उसके चहरे पर आने लगी बल्कि थाडी दर में उसका तमाम बदन क्रास कापने लगा। पानी बरसना बन्द हो गया था और हवा ठहर गई थी।माहिनी ने लालसिह स कहा मुझप्यास लगी है पीन के लिए साफ पानी कहीं स लाओ। लालसिह के पास लोटा-डोरी मौजूद थी वह पानी लाने के लिए कुटी के बाहर हो एक तरफ का रवाना हुआ। जब माहिनी अकली रह गई तब आप हो आप साधने और धीर-धीर सुदबुदाने लगा-शक रम्भा न बड़ा काम किया । इतना जान कर भी बहादुर नरन्दसिह उसे किसी तरह नहीं छोड़ सकते है अगर छोडें तो उनसे बढकर यनुरोस्त कोई भी नहीं ! मगर मैं अब किसका पल्ला पक्टू? क्या में नरन्दसिह का जी से भुला दूँ ? नहीं नहीं यह ता मुझस कभी न हागर। तो क्या रम्भा की सवत बन कर रहूँ? कभी नहीं मुझसे सवत का मुइन देखा जायगा । और इसमें भी शक नहीं कि नरन्द्रसिह रम्भा स जरूर शादी करेंगा तर फिर मेरी क्या दशा होगी? सिवाय मरने के दूसरी बात नहीं तूझती । मगर वाह मरन क्यों लगी। अभी तो मुझो कतकी स बदला लेना है तो फिर लगे हाथ रम्मा की भी सफाई क्यो न कर डालू ? बेशक एसा ही कलेंगी अवता यह मरी सवत हो चुकी न मुझस स्दत के साथ रहा जायगा और न नरन्द्रसिह का ध्यान भूलगा तब जलरी है कि मैं अपनी आदत बदल दू !हा हा भै एसा ही कलगी । अपना काम साचते समय कहीं मरा कामल कलेजा दहल न जाय इसका बन्दावस्त भी पहिले ही से कर डालना चाहिए। चन्दायत्त क्या? बस यही कि जो कुछ करना है उसके लिए कसम खा लू। ( आग की तरफ हाथ उठाकर) ह आग्नदेवता ! तुम साक्षी रहना में कसम खाती हूँ कि आज से अपनी आदत बदल दूगी अच्छीस बुरी हा जाऊगी नक से उद बनूंगी औरत से मद बनने की कोशिश करूगी सूधापन बिल्कुल छोड दूगी अपन नोम एसे दिल को पत्थर बना डालूगी एक चिउटी को तकलीफ दत जी हिचकता था पर अब खूबसूरत आदमी का सर काटते न हिचकूँगी चाहे वह मद हा या औरत। जितनी मै नक थी उतनी ही बद वनूगी जो काम न कर सकती थी उस बेधडक करूगी कुल-धर्म-मयादा का एकदम तिलाजुली द दूंगी मगर जाहिर में अपनी हालत न बदलूगी । दखन मे सूची,नेफ और घमात्म ही बनी रहेगी पर अन्दर से जहरीली और गुस्सवर नागिन की तरह रहूँगी। चाहे जो हा पर अपना काम साधने में कुछ भी न उठा रक्खूगी, हॉ में ऐसी तभी तक बनी रहूँगी जब तक कतकी और रम्भा का नाम-निशान इस दुनियाँ स न उठा डालूगी अगर रम्मा के मरने पर नरेन्द्रसिह की हालत मरे लायक न रहेगी तो उन्हें भी वैकुण्ट पहुँचाऊगी और उस समय नेक और पतिव्रता बन उनके साथ सती हो जाऊगी। एसी कसम खाते-खात माहनी के रोगट खड हा गए बदन का रग सुख हो गया गुस्स से थर-थर कॉपने लगी। बहुत कोशिश से अपने को सभाला और कुटी के बाहर निकल कर लालसिह की राह देखने लगी। थाडी ही दर में लालसिह भी आ पहुचा मोहनी न पानी पी कर मुँह हाथ धाया और कुछ ठहर कर फिरलालत्तिह से बातचीत करने लगी- माहनी- हॉ लालसिह तो तुम सच कहते हो कि मरा साथ दागे? लाल-जी जान से मैं आपकी खिदमत करने को तैयार हूँ। आपको मैंने गाद में खिलाया है आपकी नकचलनी मेरे दिल में बैठी हुई है ऐसी मालिक भला मैं कहाँ पाऊगा? माहिनी- अच्छा तो फिर एक काम करा। इस समय ऐशमहल जरूर सुनसान पड़ा हागा, मै उसी में चल कर डेरा देवकीनन्दन खत्री समग्र ११५४