पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१५३

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डालता हूँ। तुम मुझे वहा पहुंचा कर उन सब आदमियों को बटोर लाओ जो हमारे पुराने नौकर हैं और जिन्हें केतकी ने निकाल दिया है। इसके बाद मै कतकी से समझ लूगी।यह न समझना कि मेरे पास दोलत नहीं है, इस हालत में भी एक बड़ खजाने की मालिक हू जिसका हाल किसी को भी मालूम नहीं है। लाल --आप इस बात का तरदन करें मैं अपने पास से खाकर वर्षों तक आपकी खिदमत कर सकता है, बस आप यहा से चलें। मोहिनी - चला में तैयार हूँ। अट्ठारहवां बयान कई दिनों के बाद आज ऐशमहल को हम फिर रौनक पर देखत है। पहिले की तरह कई सिपाही पहर पर मुस्तैद है बाग भी रोनक पर है और दस वीस लौडिया भी इधर-उधर घूम रही हैं। मकान के अन्दर कमर में मसनद के ऊपर माहिनी बैठी कुछ साच रही है। काई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। शाम हो गई लौडियों न रोशनी का इन्तजाम किया, और हुक्म पाकर फिर इधर-उधर फैल गई मगर न जाने क्या-क्या सोचती हुई मोहिनी फिर भी अकली ही बैठी रह गई। यकायक ही दह उठी और यह कहती हुई नीचे उतर आई कि आज जरूर उस खजाने को देखूगी जो मेरी माँ खास मेरे वास्ते छोड़ गई है । नीच उतर कर माहिनी ने कुल दर्वाजे अन्दर से बन्द कर लिए जिसन कोई आकर यह न दख ले कि वह क्या कर रही है। इसके बाद वह एक छोटे कमरे में पहुची जो अच्छी तरह सजा हुआ था और जहा रोशनी खूब हो रही थी। उत्तर तरफ दीवार में पांच आलमारियों बनी हुई थी उसने पिछली आलमारी खाली जिसमें दस-पाच तलवार खजर और कटार आदि रक्खे हुए थे। एक कटार उठा लिया और दक्खिन पूरव के काने में पहुची। फर्श उठा कर कटार से जमीन खोदना शुरू किया । जव लगभग दो हाथ के बराबर जमीन खुद चुकी एक छोटी सी डिबिया हाथ में आई जिसे दखते ही खुशी के मार उछल पडी और बोली शुक्र है कि मेरी दौलत अभी तक ज्यों की त्यों रक्खी है किसी ने हाथ भी नहीं लगाया। माहिनी न डिनिया ले ली और गड़हे में मिटटी भर जमीन बराबर कर ऊपर से फर्श जैसा था उसी तरह बिछा दिया। इस काम से छुटटी पाकर उसने चारों तरफ क दर्जिोल दिए और ऊपर के कमरे में चली आईजहाँ वह पहिले बेटी हुइ थीं ! गद्दी पर येट शमादान के सामन डिब्बी खोली जिसमें सोने की एक अगुल की एक विचित्र चाभी रक्खी हुई थी। मोहिनी ने चाभी निकाल कर चूम ली और धीरेस बोली आज आधी रात को मैं अपनी जमा पूँजी अच्छी तरह सहज लूगी | थोडी दर याद मोहिनी ने नाजन किया और निश्चिन्त हाकर सो रही मगर लौडियों का हुक्म दे दिया कि आज इस मकान में मैं अकेली ही साऊँगी मकान के बाहर बहुत सी कोठरियों और दालान है. तुम लोग उसी में जाकर आराम करा। आधी रात का सन्नाटा हाने पर मोहिनी उठो और नीचे उतर कर फिर उसी कमर में पहुंची जिसमें जमीन खोद कर डिब्बी निकाली थी। चारों तरफ का दर्वाजा बन्द करने के बाद उसने पुन वही आलमारी खोली जिसमें से जमीन खोदने के लिए कटार निकाला था। यह आलमारी खूप लम्बी चोडी थी यहाँ तक कि इसके अन्दर दो आदमी बखूबी खड हो सकते थे। मोहनी ने धीरे- धीरे उस आलमारी का खाली किया जिसमें असबाब रखने के लिए तीन दर्जे बने हुए थे। नीचे वाले दर्जे की जमीन भी लकडी की और ऐसी साफ बनी हुई थी कि यह गुमान भी नहीं हो सकता था कि यह नीचे से पोली होगी। इस लकडी पर पीतल के बहुत से फूल बूट पच्चीकारी के काम के बने हुए थे जिनमें चारों तरफ चार कमल के फूल बने हुए थे। इनमें से एक फूल का मोहनी ने अगूठे स दबाया साथ ही एक पीतल का टुकडा ऊचा हो गया और उसक नीचे ताला लगाने की जगह दिखाई दने लगी। उसने वही ताली लगाकर घुमाया ! वह लकडी का तख्ता कुछ ऊपर उठ आया जिसे मोहिनी ने निकाल फर अलग कर दिया। अब नीचे एक तहखाना नजर आया जिसमें उतरने के लिए सीढियाँ बनी हुई थीं। हाथ में लालटन लिए हुए माहिनी आलमारी में घुस गई और उसी जीने की राह नीचे उतर गई। नीचे बीस हाथ लम्बी और इतनी ही चौडी एक कोटी नजर आई जिसके अन्दर वह पहुँची। यहाँ यीचोंबीच में चादी का एक पलग था जिस पर दुशाला ओढे कोई आदमी साया हुआ मालूम पडा। चारों तरफ बडबड चांदी के दग सरपोश से ढक हुए नजर आ रही मोहिनी ने पहिले उन बडे बड़े देगों को एक-एक कर के सरपोश (ढक्कन) उठाकर देखा । अरार्फियों से भरा पाया ।। इसके बाद पलग के पास आई और उस सोये हुए आदमे को देखने के लिए उसके बदन पर से दुशाला हटाया । यह एक लाश थी जिसके बदन पर चमड और गोश्त का नाम निशान न था सिर्फ हड्डी का ढॉचा सिर से पैर तक दुरुस रक्खा हुआ था। इसे देख माहिनी घण्टों तक खडी रोती रही। आखिर उसी तरह दुशाल से उसे ढॉप दिया और एक दग में से थोडी 1 - नरेन्द्र मोहिनी.