पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१५४

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सी अशर्फियों ले उस तहखाने में से बाहर निकल आई। आलमारी वगैरह को जैसा पहले था उसी तरह दुरुस्त कर दिया और ऊपर चली गई। उन्नीसवां बयान आज हाजीपुर में खूब धूमधाम मची हुई है। जगह-जगह याजे बज रहे हैं। हर एक आदमी खुश और हसता हुआ दिखाई दे रहा है। बाजारों में दुकानदारों ने दुकानें सज सजा कर दुरुस्त कर रक्खी है। राजकर्मचारी चारों तरफ दौड़ते हुए दिखाई पड़ रह है। इन्हीं में अगल बगल निगाह दोडाते सुर्ख पोशाक पहिरे वगल में झोला लटकाये और साथ में मग घोंटने का डण्डा लिये हमारे रगीले जवान वहादुरसिह भी धीरे-धीर मस्तानी चाल से चलते दिखाई पड़ रहे है। हाजीपुर । की धूमधाम देख ये ताज्जुव कर रहे हैं और इनकी अनोखी चाल और सूरत देख बाजारी लोग भी मुस्कुरा रहे है। वहादुरसिह दुकानों की सैर करते हुए एक दर्फ पूरव से पश्चिम जात है और फिर पश्चिम से पूरब लौटते हैं। शामत की मार कोई भला आदमी इनस पूछ बैठा कि क्यों साहब आप किसे दूढ रहे हैं। बस इतना पूछना था कि आप झुझला उठे और बोले, 'याह इसी अकिल पर दुकानदारी करत हो और कहते हो कि हम आदमी है | मेरी सूरत से भी नहीं पहिचानते कि में घूम-घूम कर बाजार देख रहा हूँ या किसी को दूढ रहा हूँ ! विजया देवी ने दोनों आँखें दे रक्खी है. बस शेखी में ऐंठे जा रहे है ! मेरी तरह से एक आँख जर्राह ने चवाई होती ता दुनिया की कदर जानते और समझते कि इस बेचारे के पास एक ही आख की तो पूँजी ठहरी, एक दफे इधर से उधर जाता है तो एक ही तरफ की दूकानें दीख पड़ती है, दूसरी तरफ की दुकानों पर नजर डालन के लिए लाचार बेचारे को फिर लौटना पड़ता है। बाढ़ वाह वाह ! क्या इस शहर में ऐसे-एसे ही बुद्धिमान बसते है । मगर क्यों न बसें 1 इतनी दूर घूमे अभी तक भग की दुकान एक भी नजर न आई हमारे मुल्क में अब तक एक हजार एक सौ एक दुकान भग दिखाई द गई होती। बहादुरसिह की बातें एसी न थीं कि कोई रज्ज होता। इधर-उधर के कई आदमी इनकी बात सुन हस पडे और एक खुशदिल बजाज खुश हो अपनी दुकान से उतर इनके पास आकर वाला आइए आइये आप मेरी दूकान पर चैठिये बड़े भागों से आप ऐसे सत्पुरुषों के दर्शन होते है ! यहादुर - बस रहन दीजिए मै एसे आदमी के पास नहीं बैठता जो भगन पीता हो। बजाज- यह आप भला कैस जानत है कि मै भग नहीं पीता? अजी में तो इतनी भग पीता हूँ कि आप भी न पीते होंगे। दुनिया में भग से बढ कर भी भला कोई चीज है? बस इतना सुनते ही वहादुरसिह खुश हो गये और उसकी दूकान पर जा डट । बजाज-लें अब हुक्म कीजिए तो मै भग बनाऊ ? बहादुर - नहीं नहीं इस समय ता में सिद्धी पी चुका हूँ, अब सन्ध्या का दोहरैया छनेगी। कमर से एक रुपया निकाल और बजाज की तरफ फेंक कर एक रूपये का गुलाबजामुन मगवाइए तो मै खाऊँ, बड़े जोर की भूख लगी है। बजाज - अजी इस रुपय का रहने दीजिए, मैं आपके लिए अभी खाने को मॅगवाता हू। बहादुर-(दोनों हाथ हिलाकर) नहीं नहीं एसा कीजियेगा तो में भाग जाऊँगा आपको भग ही की भारी कसम है जो इस बारे में फिर बोलिए, यस इसी रूपये का मॅगवाइये । यजाज- अच्छा अच्छा आप इतनी बड़ी कसम न दीजिए में इसी रूपय का मगाता हू बल्कि खुद जाकर लाता हूँ हां यह तो कहिए कि एक रुपये का मॅगा कर क्या कीजियेगा ? बहादुर-(चमक कर) अजी तो क्या एक रुपये का मन दो मन मिल जायगा हम और तुम दो आदमी खाने वाले भी तो है! बजाज -- नहीं मैं न खाऊगा अभी रसोई जम चुका हूँ, एक रुपये का पॉच सेर गुलाबजामुन मिलेगा। यहादुर - (ताज्जुब से) बस ! कुल पाँच सेर यहाँ बड़ा महगा सौदा मिलता है । खैर आप न खाइए मै ही कुछ जलपान करके रह जाऊँगा,पाँच सेर से होता ही क्या है ? वहादुरसिह की यह बात सुनकर बजाज हैरान हो गया कि यह बित्ते भर का आदमी कहता है कि पाँच सेर से होता ही क्या है 'खैर लाओ तो सही देखें क्योंकर खाता है। यजाज जरा खुशदिल और दिल्लगीवाज था। अपने नौकर को हलवाई की दुकान पर भेजा । वह दोडा हुआ गया और पॉच सेर गुलाबजामुन एक छितनी में लाकर बहादुरसिह के सामने रखता हुआ बोला, पानी एक घडा लाऊ या दो घड़ा?' नौकर की इस बात को सुनकर बजाज भी हस पड़ा । यहादुरसिह ने कहा. अजी नहीं, बस आध पाव जल पीने के लिए और सेर भर हाथ धोने के लिए। जल ही पी कर पेट भर लेंगे तो खायेंगे क्या?' अब बहादुरसिह सामने पत्ता रख गुलारजामुन छीलने लगे। पाँच सेर गुलाबजामुन को छीलछाल के कुल एक छटॉक भर भीतर का गूदा निकाला और उसे खा, पानी पी, नौकर को हाथ धुलाने का इशारा किया । बजाज - बस खा चुके । और इतना मुफ्त में बर्बाद किया । देवकीनन्दन खत्री समप्र ११५६