पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१६३

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CY । यस कोरी जजीर ही समझना, और दूसरे जो तुम्हारे लडके को बिहार भेजा है सो यही समझना कि उसे यमलोक भेज दिया अब वह फिर लौट कर नहीं आता । हा जब तुम मरा काम कर दोगी और मैं एक चीठी अपन हाथ से लिख दूंगा कि उस लड़के को छोड दो तब उसकी जान छूटगी नहीं तो बस उसकी खोपडी एक दिन किसी अघोरी के हाथ में दिखलाई दगी! वहादुरसिह की बातों ने तो युढिया को मुर्दा कर दिया । वह अपने किये पर पछतार्न लगी ओर समझ गई कि वह बुरी फस गई और अप किसी तरह बहादुरसिह के हाथ से जान नहीं बचती, झख मार के इसका काम करना ही पड़ेगा नहीं तो लडके की जान बशक चली जायेगी। चहादुरसिह ने जय बुढिया का हर तरह से अपने कब्जे में कर लिया ता अपना काम निकालने की जो कुछ तर्कीब वह कर चुका था या किया चाहता था बुढिया को कहा और साथ ही इसके काम हो जाने पर बहुत कुछ इनाम दिलान का भी वादा किया, और इसके बाद वहाँ से रवाना हाकर मैदान की तरफ चल पड़ा । बहादुरसिंह की राय के मुताधिक बुढिया ने क्या-क्या काम किया यह तो तभी मालूम होगा जब रम्भा के सिर पर भूत आवगा हॉ इतना हम अभी कहे देते हैं कि अपनी मदद के लिये बुढिया ने कई एक जवान औरता को रख लिया और कार्रवाई शुरू कर दी। तेईसवां बयान हाजीपुर के राजा न रम्भा के सिर पर भूत आने का हाल जिस समय अपन लडके की जुबानी सुना तो बहुत ही हैरान हुआ । जाहिर में तो उसने अपन लडके स कह दिया कि यह सब कोई बात नहीं है मगर उसके दिल में तरदुद बना ही रहा। रात के समय जब वह अपुन महल में गया तो उसने अपने लडक की जुबानी जा कुछ सुना था अपनी रानी स कहा। वह बेचारी सुनते ही कॉप गई और बोली राम राम मै कभी ऐसी लडकी के साथ ब्याह करके अपने बच्चे की जान पर आफत नहीं ला सकती में आज हो उसे घर से बाहर निकाले देती हूँ, जाय अपन मा-बाप का घर तबाह करे । दौलत - घबडाने की काई जरूरत नहीं । रानी - घरडाना कैसा में ता भूत-प्रत क नाम से कॉपती हूँ। । यह सब बखडा मजूर नहीं । दौलत-जल्दी क्यों करती हा ? पहिल यह भी ता देख लो कि उस दिन उस पर चुडैल आती भी है या नहीं कहीं उस भगेडी ने धोखा न दिया हा । रानी - उस बेचार का भला क्या पड़ी थी कि धोखा देतार दौलत - डरने की कोई बात नहीं है देखा तो क्या हाता है। डरत कॉपत वह पाच-सात दिन ता निकल ही गए मगर अमावस्या के दिन सवेरे ही से रानी के पेट में चूहे उछलने लगे। चमला दाई अपनी सधी हुई लौडियों के साथ रम्भा के ऊपर मुस्तैद थी ही उसके अलाव और भी तीन-चार लौडियों का रानी न मुस्तैद कर दिया मगर वह भूत आने वाला हाल किसी के ऊपर जाहिर न किया। रानी ता डर के मारे दिन भर उस कमर में न गई जिसमें रम्भा रहा करती थी मगर शाम होते-होते चमला दाई दौड़ी दौडी रानी के पास आई और हॉफते-हॉफते बोली- चमला – महारानी ! रम्मा का तो अजब हाल है ।। रानी - (डर कर ) सो क्या ? चमला - उसका चहरा लाल हो गया है और बडी-बडी ऑर्ख खाल कर चारों तरफ देख और झूम रही है। रानी -- उससे तैने कुछ पूछा भी? चमेला - मुझ ता उसके पास जाते डर लगता है। दूर से जब मैं पूछती हूँ तो लाल-लाल आँखें निकाल कर मेरी तरफ देखती है और दाँत पीस-पीस के कहती है कि में इस घर भर को खा जाऊगी । रानी--(हाथ उठाकर ) हे परमेश्वर तू ही बचाने वाला है. हाय न मालूम कहा की आफत आई थी जो लोग उस लडकी को इसे घर में ल आये। चमला - (हाथ जोड कर ) मुझ तो मालूम हाता है कि उसके ऊपर कोई जिन्न आया है। रानी - नहीं जिन्न नहीं है जो है उसे में जानती हू, जरा चल तो सही मैं देखू क्या हाल है। चमेला - भगवान के लिये आप न जाइये कहीं ऐसा न हो कि कोई नया यखेडा मचे ! रानी-वह जो कुछ यखेड़ा मचा सकती हैं सा भी मैं जानती हूँ। मैं उसके पास जाने वाली नहीं हूँ दूर ही से तमाशा - देखूगी। चमेला दाई क साथ रानी साहवा उस कमरे के पास गई जिसमें रम्भा थी। रम्भा के पास जाना ता दूर ही रहा उन्होंने चौखट के अन्दर भी पैर न रक्खा दूर ही से झाक के देखा रम्भा उस समय खूब झूम रही थी और आँखें फाड कर छत की तरफ देख रही थी। रानी-चमेला किसी को कहो तो सही उसके पास जाए और बाजू पकड कर हिलावे । 1 ५ नरेन्द्र मोहिनी ११६५ !