पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१६४

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चमेला - बहुत अच्छा। चमेला कमरे के अन्दर गई और सधी हुई एक लौडी से जिसका नाम परमेसरी था रम्भा के पास जाने के लिए कहा। परमेसरी रम्मा के पास गई और उसका बाजू पकड़ के हिलाने लगी। रम्भा-(गुस्स भरी आखें दिखाकर ) भाग जा, भाग जा, नहीं तो खा जाऊगी । लौडी- तुम कौन हो, अपना नाम तो बताओ? रम्भा-तें न मानेगी? न मानेगी? दिखाऊ तमाशा? लोडी -- अजी कहो तो सही तुम कोन हो? रम्मा-फिर वकती है । तेन मानेगी? अच्छा तो देख तमाशा !! 'अच्छा तो देख तमाशा ।' कह कर रम्भा ने उसके सिर पर हाथ रख ही तो दिया। बस फिर क्या था । परमेसरी लोडी तो लगी नाचने ओर चिल्लाने ! चारों तरफ घूम-घूम कर चिल्लाने ओर लौडियों को चिकोटी काटने लगी। कुल लौड़ियाँ जो उस घर में बैठी थीं ओफ ! करके बाहर निकल आई परमेसरी भी बाहर निकल आई और खूब उछलने- कूदने लगी। यह हाल देखत ही रानी के तो होश उड गए। वह कॉपती हुई वहाँ से भागी और अपने कमरे में आ घुसी। एक लौडी को कहा 'जल्दी जा और महाराज को बुला ला, आकर देखें रम्भा का हाल और उसके पास आकर अपने सिर पर भी हाथ रखा लें । में उसी दिन कहती थी कि इस चुडैल को आज ही निकाल दो ! न माना अब भोगें बैठ के !! लोडी दोडी हुई बाहर गई और चोबदार के मारफत राजा दौलतसिह को खबर कराई । राजा साहब पहिले ही से इसी सोच में पड़े हुए थे कि देखें रम्भा के सिर पर आज उसकी परदादी आती है या नहीं खवर पाते ही घबडाकर उठ खड़े हुए और डरते-डरते महल में गए । देखें तो रानी साहब घुस कर अपने कमरे में बैठी है और भीतर से किवाड लगा लिया है, तथा परमेसरी दाई खूब चिल्ला रही है और इधर से उधर नाच रही है। उसे अपने तनाबदन और कपड़े तक की कुछ सुध नहीं है । वस समझ गए कि रम्भा की परदादी आ पहुची। महाराज लौट कर उस कमरे के दर्वाजे पर गए जिसके अन्दर रानी थी और केवाड खुलवाया। रानी- देखा घर में क्या बखेडा मचा हुआ है। दौलत-वेशक वह बात सच निकली अव क्या किया जाय? रानी- बस आज ही उसे घर से बाहर निकाल देना चाहिए। दौलत - इस समय तो उसके पास जाना आफत है क्या जाने सिर पर हाथ रख दे तो बस रानी - ईश्वर आज का दिन कुशल से बिताये तो कल उस नानी से समझूगी ! इतन में एक लोडी और उस कोढरी म गई जिसमें रम्भा थी। रम्भा ने उसके सिर पर भी हाय रक्खा और वह भी परमेसरी की तरह उछलती-कूदती बाहर निकल आई। अब तो महल में बडी भारी धूम मच गई। जितनी औरतें महल में थी सभी अपनी अपनी जान बचाने की फिक्र में लगी सभी को यह खयाल हुआ कि कहीं रम्भा अपनी कोठरी में से निकल कर हम लोगों के सर पर हाथ न रख दे। महाराज दोलतसिह अपनी रानी से बातचीत कर ही रहे थे कि एक लौडी ने आकर अर्ज किया। लोडी-- डेवढी पर एक डोली आई है। रानी-उस पर कौन है? लोडी -- उन्होंने अपना नाम तो नहीं बताया मगर किसी रईस की लड़की मालूम पड़ती है। रानी- क्या यहाँ आना चाहती है? लोडी- जी हाँ वह हाजिर हुआ चाहती है और कहती है कि रम्भा के बारे में महारानी साहबा को बिलकुल धोखा दिया गया है, उसका असल भेद सिवाय मेर और कोई नहीं जानता। रानी- (महाराज की तरफ देख कर ) यह कुछ दूसरा ही तमाशा नजर आता है । मैं कैसे विश्वास करूं? सब कुछ तो अपनी आँखों दख चुकी हूँ। लोडी -- वह कहती है कि अगर इस समय रम्भा के सिर पर चुडेल मोजूद हा ता अच्छी बात है मै बहुत जल्द सय शक मिटा दूंगी। एक चीठी भी उन्होंने दी है। रानी-ला कहाँ हे चीठी? लौडी न रानी साहया क हाथ में चीठी दी। राजा दोलतसिह ने बड़ गौर से उस चीटी को पढा। यह लिखा था-- रम्भा के सिर पर भूत-प्रेत या चुडैल का आना सब झूठ है । यह फिसाद बहादुरसिह भगेडी का मचाया हुआ है। वह नरेन्द्रसिह का दोस्त है और आपकी लौडियों को उसन मिला लिया है। बाकी हाल हाजिर होकर कहूँगी। दोलत - देखिये, मैं कहता था न कि यह सब धोखा है। अब उसे जल्द बुला कर पूछना चाहियें। महारानी का हुक्म पाते ही लाडी दाडी हुई गई और डाली पर स सवारी उतरवा लाई। देवकीनन्दन सनी सनग्र