पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१६८

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कर दिया कि रम्भा के सिर पर भूत चुडेल या जिन्न कोई नहीं आता, यह सब उसका पाखण्ड है। उस औरत ने महारानी के पूछने पर अपना नाम सुन्दर बतलाया था। महल में पहुँच कर उसने रानी को समझा दिया कि रम्भा के सिर चुडैल नहीं आती और यह सब उसका नखरा है। यह जानकर रामी बहुत खुश हुई और सुन्दर से पोली, तुमने मेरे साथ बडी नकी की, मैं उम्मीद करती हूँ कि तुम खुद यह सय हाल महाराज से कह कर उनके दिल का शक भी दूर कर दोगी क्या इसमें कोई हर्ज है ? सुन्दर - नहीं हर्ज क्या है? रानी - तो मै महाराज को बुलवाऊ । सुन्दर - हाँ हाँ आप महाराज को बुलवार्ये मुझे उनके सामने बातचीत करने में किसी तरह का खौफ नहीं है वह राजा है,में उनकी लड़की हूँ, मे उन्हें समझा दूंगी कि इस मामले में आपको धोखा दिया गया। रानी ने महाराज को बुलाने के लिये उसी समय लोडी भेजी और जब वे आ गए तो कहा, लीजिये सब भेद खुल गया, रम्भा के सिर पर चुडैल परी काई भी नहीं आती, यह सब धोखा है।' राजा - हा तुम्हे कैसे मालूम हुआ? रानी - (सुन्दर की तरफ इशारा कर के ) इन्होंने कहा। रानी- (सुन्दर से) तुम्हारा नाम क्या है ? सुन्दर-सुन्दर। राजा - मकान कहाँ है? सुन्दर - पटन। रानी - तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि रम्भा नकल करती है ? सुन्दर - नरन्द्रसिह के दोस्त बहादुरसिह ने यहाँ पहुँचकर यह सब बखेड़ा मचाया है। उसी ने आपके लडके का सिद्धजी बनकर धाखा दिया उसी ने आपकी चमेलादाई को मिला लिया और इस पाखण्ड का बन्दोबस्त कर लिया कि रभा के ऊपर चुडैल आती है। उसने सोचा था कि आप जब यह हाल सुनेंगे ओर जानेंगे ता उसे निकाल देंग ओर तय रभा उन लोगों के पास पहुंच जायेगी जो उसके लिये इतना उद्योग कर रहे है। आपकी चमेलादाई का लडका इन सब बातों की खबर पहुंचान महाराज उदयसिह के पास बिहार गया है रास्ते में मुझसे मुलाकात हुई। वह मुझे अच्छी तरह पहिचानता था, उसी की जुबानी यह सब हाल मैने सुना है और अब इनाम की लालच में आपके पास आई राजा- बेशक यह इनाम का काम है (लोडियों की तरफ देखकर) चमेलादाई कहाँ है ? जल्द हमारे पास बुला लाओ। हुक्म पात ही कई लोडिया चमलादाई का बुलाने के लिए दौड़ गई मगर चमेलादाई कय हाथ आने वाली थी। वह इन सब बातों की सुनगुन पाते ही वहाँ से निकल भागी। लाचार लोडियों ने वापस आकर अर्ज किया कि चमेलादाई ता भाग गई। चमेलादाई के भागने की खबर सुनकर महाराज को सुन्दर की बातों पर विश्वास हो गया । महल के बाहर चल आये और चमेलादाई के लडके की खोज की पर उसका भी पता नलगा। क्रोध के मारे महाराज का शरीर कॉपने लगा। अपने लडके को बुला कर सब हाल कहा। धीरे-धीर यह बात तमाम शहर में फैल गई। छब्बीसा बयान हाजीपुर से कोस भर की दूरी पर आम की एक बारी में कई आदमियों को साथ ले नरेन्द्रसिह टहल रहे है। इनके साथ जितने आदमी हे सभी घोडों पर सवार हैं केवल नरन्द्र सिह पैदल टहल रहे है। और इनके सवारी के घोड़े की लगाम एक सवार के हाथ में है। चाँदनी अच्छी तरह छिटकी हुई है मगर इस आम की घनी गाछी में उसका बहुत कम हिस्सा जमीन तक पहुंचता है, हॉ पत्तों में से छनी हुई चाँदनी कहीं-कहीं जमीन पर पड कर सफेद बुन्दकियों की सी दिखाई दे रही है। नरेन्द्रसिह को धीरे टहलते और सोचते हुए दो घण्टे बीत गए। अपने विचार में यहाँ तक लीन थे कि इस बात का ज्ञान विल्कुल जाता रहा था कि वे कहां है या किसलिए आये है लेकिन यकायक घोडों के टापों की आवाज ने इन्हें चौका दिया, सर उठाकर उस तरफ देखने लगे जिधर से कई सवार आ रहे थे। नरेन्द्रसिह के साथी एक सवार ने कहा आप भी घोड़े पर सवार हो जाय क्या जाने ये आने वाले सवार हमारे दोस्त हों या दुश्मन । नरेन्दसिह अपने घोडे पर सवार हो गए और साथ ही एक आवाज हलकी बिगुल की सुनकर बोले 'ये तो हमारे ही आदमी मालूम पडते है शायद हमी लोगों को ढूंढ रहे हैं। सवार - जी हाँ, हमलोगों को भी बिगुल का जवाब देना चाहिये ! देवकीनन्दन खत्री समग्न ११७०