पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१६९

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नरेन्द्र-अवश्य। इधर से भी विगुल की हलकी आवाज दी गई जिसे सुनते ही व लोग तेजी के साथ नरेन्द्रसिह के पास आ पहुचे और यहुत जल्द मालूम हो गया कि नरन्द्र सिह के छोटे भाई जगजीतसिह कई सवारों को साथ लकर आये है। नरेन्द्र - तुम क्यों आ गए? जगजीत-पिताजी की आज्ञा से। नरन्द्र - देर हो जाने के कारण उन्हें चिन्ता हुई? जगजीत-नहीं बल्कि विश्वास हा गया कि जिस काम के लिए आप आये हैं उसमें विघ्न पड़ गया। नरेन्द्र - वेशक ऐसा ही हुआ। जगजीत -- ता क्या यहादुरसिह से मुलाकात नहीं हुई? नरन्द्र - यहादुरसिह से तो मुलाकात हुई धल्कि रोज ही होती है मगर महल में एक दुष्ट औरत ने पहुंध कर बिल्कुल काम विगाड़ दिया। उसने बहादुरसिह और चमेलादाई की कार्रवाई का हाल खोल दिया ! न मालूम उस हरामजादी का कैसे पता लग गया। डर के मारे चमलादाई भी कहीं भाग गई. यहादुरसिह की खोज हो रही है एक हिसाब से काम बिगड ही गया । जगजीत - फिर आप यहाँ क्यों अटके है ? अब तो घर चलना चाहिए और लड़ाई का सामान दुरुस्त करना चाहिए। नरेन्द्र - बहादुरसिह भी आता ही होगा, जरा उससे राय मिला ली जाय । जगजीत --- हमारी समझ में तो अब इस तरह की कार्रवाइयों से काम न चलेगा। नरेन्द्र - क्या कहें, बना-बनाया काम विगड गया ! थोडी देर तक बातचीत होती रही इतने में वहादुरतिह भी आ पहुंचे। देखते ही नरेन्दसिह उनके पास गए और व्याकुलता के साथ पूछा 'कहो कुछ काम होने का रग है ? बझदुर-जी नहीं, अब हम लोगों को यहॉ से जल्द भागना चाहिये आपक आने की खबर यहाँ के राजा का हो गई। गिरफ्तारी के लिए फौज आती होगी। (जगजीतसिह की तरफ देख कर ) अच्छा हुआ जो छोटे कुमार भी आ गए। नरेन्द्र - तो क्या क्षत्री होकर डर के मारे भाग जॉय । वहादुर-जी यस इस वक्त बहादुरी को तो रहने दीजिये ! ऐसे मौके पर क्षत्रीपना नहीं दिखाना चाहिये। यहादुर आपसे भी ज्यादे वहादुर है मगर मौका देख के काम करता है ! जगजीत - बहादुर भाई का कहना ठीक है, ऐसे मौके पर अटकना न चाहिये। वहा- अभी घर चल कर तुरत फौज लेकर लौटेंगे। देखिये तो क्या होता है, हाजीपुर के राजा को सुख की नींद कभी जो सोने दिया तो बहादुर नहीं । नरेन्द्रसिह -वस शेखी की बातें रहने दीजिये आप लोगों से न कुछ हुआ है न होगा आप लोग जहा जी चाहे जाइये, मैं नहीं जाता। जगजीत - (हाथ जोडकर ) इस समय ठहरने का मौका नहीं है आप बस यह एक बात मेरी मान लीजिए। नरेन्द -(कुछ सोच कर और लम्बी सॉस लेकर ) खैर !! ये लोग वहाँ से बिहार की तरफ रवाना हुए और सुबह होते-होते दस बारह कोस के लगभग निकल गये। इसके आगे रास्ते ही में एक सुन्दर तालाव देखकर नरेन्द्रसिह ने स्नान-ध्यान से छुटटी पाने का इरादा किया, आखिर दो घण्टे के लिए वहाँ ठहरना पड़ा। उसी जगह मौका मिलने पर एकान्त में जगजीतसिह ने बहादुरसिह से हाजीपुर का हाल पूछा। बहादुर - (चारो तरफ देख कर ) कोई सुनता तो नहीं ? जगजीत ~ काई नहीं सुनता आप कहिये । वहादुर - यडा ही गजब हुआ। जगजीत - (चौक कर) सा क्या ? यहादुर-बस कहने लायक बात नहीं है. देखें नरेन्द्रसिह अब अपना क्या हाल करत है। जगजीत -- तुम्हारी बातें तो हौलदिल पैदा करती है; ईश्वर के लिय जल्द कहो क्या हुआ ? यहादुर - अभी हमें उस बात पर पूरा विश्वास नहीं है। जगजीत - ता भी कहने में देर न करो। बहादुर - एक औरत ने महल में पहुँच कर काम विगाड़ दिया यह हाल ता आपो सुना ही होगा? जगजीत-हा भाईजी ने कहा था। बहादुर - हाय सुना है कि उस औरत ने रचारी रम्भा का काम ही तनाम कर दिया और भाग गई। जगजीत-हाय यह क्या गजय हुआ 13 नरेन्द्र मोहिनी ११७१