पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१७

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। आदर्शवादी भी और आदर्शहीन भी। किंतु आदर्शवादी,नेक चलन और सच्चरित्र पात्रों की प्रधानता है। कथा के आरंभ में कुंअर इन्द्रजीतसिंह और कुँअर आनन्दसिंह दादा सुरेन्द्रसिंह से आज्ञा माँग कर शिकार खेलने जाते हैं। वहां शिवदत्त के ऐयार उन्हें फंसा देते हैं। वे गिरफ्तार हो जाते हैं। कुँअर इन्द्रजीत का शिवदत्त की पुत्री किशोरी और आनन्द्रसिंह का दीवान अग्निदत्त की पुत्री कामिनी से प्रेम होता है। लेकिन प्रेमपूर्णता अनेक बाधाएँ आती हैं। पूरा उपन्यास इन्हीं के केंद्र में धूमता है। दोनों भाई गोपालसिंह की सहायता से तिलस्म तोड़ते हैं । गोपाल सिंह स्वयं अत्यंत कष्ट भोगते हैं। उन्हें धोखे से एक दूसरी स्त्री से शादी करा दी जाती है। और गिरफ्तार कर मृत घोषित किया जाता है । गोपालसिंह जमानिया के राजा और इन्द्रजीतसिंह तथा आनन्दसिंह के रिश्ते में भाई हैं। धन और राज्य के कारण राजाओं का जीवन भी कितना संकट में रहता है गोपालसिंह और उनकी पत्नी लक्ष्मीदेवी की यातनाएँ इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं। गोपालसिंह के पिता की हत्या कर दी जाती है। पत्नी बदल कर दूसरी पत्नी बैठा दी जाती है। बाद में असली पत्नी और स्वयं भी जेल भोगते हैं । यह सब कोई और नहीं अपने ही विश्वसनीय कर्मचारियों द्वारा होता है। राजकर्मचारी निष्ठावान भी हैं | धोखेबाज भी। ऐसे ही और भी अनेक पात्र हैं जो षड़यंत्र के शिकार होते हैं । इसी में भूतनाथ का उदय होता है जिसकी भूमिका महत्वपूर्ण किंतु विवादास्पद रहती है। यही भूतनाथ आगे चलकर स्वयं उपन्यास का प्रमुख नायक बन जाता है। भूतनाथ का लड़का और पत्नी भी कथा में शामिल होते हैं। उपन्यास में न केवल कौतूहल और उत्सुकता की प्रधानता है बल्कि रोमांचक स्थितियाँ भी भरी पड़ी हैं। काम और अर्थ लोभी स्त्रियों के घात-प्रतिघात ने उपन्यास में सामाजिक यथार्थ को भी व्यक्त किया है । लेखक सामाजिक दुराचरण के विरुद्ध नैतिकता और शिष्टाचार का समर्थक है । यो कहिए कि वह आदर्श हिंदू सामाजिक मूल्यों के लिये संघर्षशील है। इतने सामाजिक और नैतिक संघर्ष के बावजूद इस उपन्यास को मात्र तिलस्मी और ऐयारी समझने वालों को क्या कहा जाय ? असल में तिलस्म के भीतर यहर एक सामाजिक उपन्यास है । एक तरफ गौहर, मायारानी, नौरतन और माधवी जैसी शरीर व्यवसायिनी स्त्रियाँ हैं तो दूसरी ओर लक्ष्मीदेवी, कमलिनी, किशोरी, कामिनी आदि नेकचलन तथा उच्च संस्कारों वाली स्त्रियाँ हैं। ऐसे ही पुरुष हैं । लेखक का एक सामाजिक और नैतिक उद्देश्य है। वह कथा के माध्यम से कुछ कहना चाहता है । 'मैंने अपने उन विचारों को जिनको में अभी तक प्रकाश नहीं कर सका था फैलाने के लिये इस पुस्तक को और सरल भाषा में उन्हीं मामूली बातों को लिखा जिसमें उस हानहार मंडली का प्रियपात्र बन जाऊँ जिसके हाथ में भारत का भविष्य सौंप कर हमें इस असार संसार से विदा होना है।' (चंद्रकांता संतति भाग २४ अंतिम पृष्ठ) इस कथन से स्पष्ट है कि लेखक के पास कोई विचार है,आदर्श है । वह कथा कहानी के अतिरिक्त भी कुछ कहना चाहता है। और वह है जीवन में नैतिक मूल्यों की स्थापना तथा आदर्श समाज और व्यक्तियों का संकेत । कुल मिलाकर धर्म की स्थापना और अधर्म-अनाचार का विरोध । दुर्भाग्यवश लोगों ने इस उपन्यास के सामाजिक और नैतिक पक्ष पर कम से कम ध्यान दिया है । चरित्र और नैतिकता के लिए संघर्ष करने वाला हिंदी का यह महत्वपूर्ण उपन्यास है। -- 1 (xviii)