पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- सरकार का एक आदमी देहात पर से आया है और एक खत लाया है मगर मुझे नहीं देता । शिव – ( रामदीन से ) तुम उसके हाथ से खत ले लो। रामदीन -बहुत अच्छा। रामदीन बाहर गया और सरसरी रिगाई से उस आदमी को सिर से पैर तक देखने के बाद चीठी लेकर शिवकुअरी के पास आया। शिवकुअरी ने चीठी पढ़ कर रामदीन से कहा- शिव – सरकार ने हमे वहीं बुलाया है ! राम-पहा बुलाने की क्या जरूरत थी? शिव - क्या मालूग ! और तुमसे एक चीज लेने आने के लिये भी लिखा है राम - वह कौन सी चीज? शिव - वसीयतनामा, जो उनके पिता ने लिखा था। राम -- वह वसीयतनामा उन्हीं के पास है । मुझे उन्होंने कर दिया जो मागते है । शिव- नहीं तुम्हारे ही पास है। लो चीठी पढा देखा उन्होंने लिखा है कि तीन सौ तीस तेरह आने की थैली के साथ जो वसीयतनामा रामदीन के पास है सो उससे लेकर चली आओ। तीन सो तैतीस तरह आने का नाम सुनते ही रामदीन काप उठा और एक दफ गोर से शिवकुअरी की तरफ दर। कर बोला. अच्छा ठहरो, मै वसीयतनामा लाकर तुम्हे देता हूमगर यह घीठी मुझे दे दो जिससे सरकार यह न करें कि हमने वसीयतनामा नहीं मगाया था ! शिवकुँअरी ने चोठी रामदीन को ददी, पीठी लकर रामदीन बार आया और उस आदमी को जो चीठी लाया था साथ लेकर एक तरफ चला गया। 'दो घण्टे बीत गए मगर रामदीन न आया । शिवकुअरी ने उस आदमी को जो चीठी लाया था,अपन पास बुला लाने के लिए लौडी भेजी। लोडी ने वापस आकर जवाब दिया कि वह आदमी बाहर नहीं है, रामदीन उसे अपने साथ ले गया। यह सुन कर शिवकुअरी सोच में पड़ गई और देर तक गार करती थी, आखिर कमर के बाहर निकल आई और एक लौडी को हुक्म दिया कि बहुत जल्द घाला कसया कर ल आ । लौडी घोडा करवाने के लिए चली गईमगर बहुत जल्द वापस आकर चोली- लौडी- साईस का तो आज दिमाग ही ही मिलता, यह करता है कि में इस समय धाडा सफर नलागा। शिव - (लाल आँखें करके) क्या उसको इतनी हिम्मत हो गई ।। लौडी-जी हा! शिव - अस्तबल के दारोगा को ने इस बात की इतिला की थी? लौडी - की थी मगर वे भी कुछ नहीं सुनते कहते है कि बिना हुक्म रामदीन का घाला नहीं फंसा जा सकता। शिव- (दात पीसकर ) रामदीन कौन है जो इतना कहते कहते वह रुक गई जैसे उसे यकायक कोई बात याद आ गई हो। 'शिवकुअरी दूसरे कमरे में चली गई और हवाखोरी की पोशाक पहिन कमर मे राजार छिपा मुह पर नकाब आल कर एक लोडी को साथ ले हाते के बाहर चली मगर दर्याजे पर राक दी गई। ये आदमी जो उसका टुक्म मानते थे और उसके नाम से कापते थे इस समय मुकाबला करने को तैयार हो गए और साफ कहन लगे कि आप इस फाटक के बाहर' नहीं सकती। लाचार शिवकुअरी वहाँ से लौटी और अपने कमरे में आकर बैठ गई। थोड़ी ही देर बाद एक लपेटा हुआ कागज हाथ में लिये रामदीन भी आ पहुंचा राम - वसीयतनामर तो में ले आया हूँ। शिव – (हाथ बढ़ा कर ) मेरे हवाले करो ! राम - में आप साथ चलता हूं अपने हाथ से सर्कार को दूगा। शिव- क्या मेरा एतवार नही है? राम-नही, बिल्कुल नहीं !( कुछ सोचकर) और वात बढाने की कोई जरूरत नही अब साफ-साफ बता दो कि सरि कहाँ है? शिव - (कुछ घबड़ा कर ) मैं क्या जानू सरकार कहा पर है? रामदीन ने जोर से ताली बजाई जिसकी आवाज ऊचे छत वाले कमरे में गूज गई और इसके साथ ही हाथ में कुछ लिए दो आदमी उस कमरे में घुस आये जिन्हें देखते ही शिय/अरी ने पहिचान लिया कि ये दोनों रामदीन के लड़के है। रामदीन - (शिवकुअरी से ) देखो अब साफ-साफ बता दो नही तो तुम्हारी दुर्गत की जायेगी। तुम यह न समझना कि तुम इस घर की मालिक हो। में बखूबी जान गया कि तुमने मेरे मालिक को धोखा दिया। जो आदमी खत लाया था उसे भने कब्जे में कर लिया और सजा देकर सब हाल मालूम कर लिया। शिव - रामदीन । मालूम होता है तुम पागल हो गये हो !! देवकीनन्दन खत्री समग्र ११७६