पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१७५

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दि इतना सुनते ही रामदीन ने अपने दोनों लड़कों को कुछ इशारा किया। उन दानों ने शिवकुअरी की मुश्के बॉध ली और येत से मारना शुरू किया। 'मै अपना हाल बहुत मुख्तसर में लिखा चाहता हूँ इसलिए इतना ही लिखना बहुत है कि शिवकुअरी और उस नकली चीठी लाने वाले आदमी का मारपीट कर रामदीन ने मेरा कुल हाल मालूम कर लिया और जिस तरह बना मुझे उस कैद से छुडाया 1 'मै उस तहखान में कसम खा चुका था अगर यहा से बच कर किसी तरह निकालूगा तो शिवकुअरी ते वतरह समझूगा । घर पहुँच कर मैंने अपनी कसम पूरी की। ऐशमहल में मैंने एक तहखाना यनवाया था जिसमें अपना खजाना रक्खा करता था। शिदकुअरी का उसी तहखाने में ले गया और कुत्तों से नुचवा कर उसे यमलाक की तरफ रवाना किया। साफ करा कर उसकी हड्डियों का दाँचा उसी तहखाने में रखवा दिया जा उम्मीद है कि बहुत दिन तक रहेगा और किसी न किसी को मेर हाल की खबरद कर कुलटा स्त्रियों से बचने के लिए नसीहत करेगा क्योंकि यह कागज भी मै उसी के साथ रखता हूँ। यहाँ पर मोहिनी के बाप का हाल जो उसने अपन हाथ से सुर्ख राशनाई से लिखा था समाप्त हो गया। अब उस लेख का वह हिस्सा पढा जाने लगा जो स्याह रोशनाई से मोहिनी ने अपने हाथ से लिख कर पूरा किया और तय चिपकाया था। इस जगह महाराज ने उस नुशी को जो पढ रहा था दम लेने क लिए कहा क्योंकि हजारीसिह के विचित्र हाल ने उनके कामल कलेजे को दहला दिया था। नरेन्द्रसिह भी पलग पर पड़े-पडे इस अनूठे किस्से को सुन के बहुत परेशान हुए। मोहिनी की तरफ से उन्हें नफरत हो गई यहा तक कि मुह फेर लिया और दूसरी तरफ दराने लगे। तकलीफ से बहुत ही बेचैन हो रहे थे दमदम भर पर दवा दी जा रही थी मगर नब्ज कमजोर ही होती जाती थी फिर भी उन्होंन मुशी की तरफ देख कर आगे पढने का इशारा किया और मुशी न पढना शुरू किया - 'मरा नाम माहिनी है। मै हजारीसिह की मझली लडकी हूँ। मेरी बडी बहिन का नाम केतकी और छोटी का नाम गुलाब है। यों तो माँ के मिजाज का असर हम तीनों बहिनों पर पडा मगर केतकी उन ऐबों से अच्छी तरह भरी हुई थी जो दुनिया में भले लोगों के हिसाब स युर गिने जात है। हमारे बाप हजारीसिह को मुनासिब तो यही था कि हमारी मा के साथ माथ हम तीनों बहनों को भी मार डालता क्योंकि दुरों की औलाद और हरामी पैदाइशों से किसी तरह की भलाई की उम्मीद नहीं हो सकती मगर हमारे बाप ने हमलोगों पर रहम किया और परवरिश करके बडा कियाथाडे ही दिन बाद केतकी जवानी पर आई और उसकी शादी की गई मगर उसकी चालचलन ने हमारे बाप को होशियार कर दिया और उसन निश्चय कर लिया कि इन तीनों लड़कियों से भी सिवाय बुराई के भलाई की उम्मीद किसी तरह नहीं हा सकती इन तीनों को भी खपा ही देना चाहिये। 'न मालूम किस तरह से अपने बाप का इरादा केतकी ने मालूम कर लिया और वह अपनी जान बचा कर उनकी जान लेने पर मुस्तैद हो गई मगर यह समझकर कि उनके मरने बाद जायदाद का मालिक उनका माई या भतीजा होगा रुकी और पहिल उन्हीं दोनों की जान लने पर मुस्तैद हुई। आखिर उन लोगों से मेल और दोस्ती बढ़ाफर जिस तरह हा सका एक ही दफे जहर दिलवाकर उन दोनों का काम तमाम किया और इसके दो ही चार दिन बाद अपने खसम का मास तथा तब रसोइये ब्राहमण से मिल के अपने बाप की जान ली। हम तीनों बहिनें अपने बाप के जायदाद की मालिक हुई मगर केतकी अकेली ही सुख भोगा चाहती थी इसलिय हम छाटी बहिनों का हना भी उसे नापसन्द हुआ और उसने बदमाशों के हाथ यह काम सुपुद किया। मेरी और गुलाब की जान जिस तरह नरेन्दसिह ने बचाई उसके लिखने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि यह बात बहुत मशहूर हो रही है और महाराज भी उस अच्छी तरह जानते होंगे। नरेन्द्रसिंह का अहसान मुझे मानना चाहिए था मगर नहीं अब मै उनका अहसान नहीं मान सकती। अपनी बडी बहिन केतकी से ता बदला ल ही लिया और उसे जहन्नुम में पहुंचा ही दिया मगर नरेन्दसिह को भी अपनी आँखों के सामने दम तोडते देखा चाहती हूँ। मुन्शी न यहाँ तक पढा था कि समों की हालत बदल गई क्रोध क मार बदन कापन लगा ऑखें सुख हो गई तलवारों के कब्जों पर हाथ जाने लगे और दॉत पीस पीस कर माहिनी की तरफ लोग देखने लगे। बडी कोशिश करके महाराज न अपन का सम्भाला और आगे पढने के लिये मुन्शी को इशारा किया। मुन्शी ने फिर पढना शुरू किया । 'नरेन्द्रसिह की मुहब्बत देखकर मुझ उम्मीद थी कि मैं उनके साथ ब्याही जाऊँगी क्योंकि मैं नी उन पर जी से मरती थी मगर मैने सुना कि वे रम्भा के लिए मर रहें है तो वह उम्मीद जाती रही क्योंकि मैं अपने साथ किसी सवत का होना पसन्द नहीं करती और न मुझे यह मजूर ही है। जब मैं स्वय नरेन्द्रसिह स मिली और यातचीत की नौबत आई तो मुझे निश्चय हो गया कि रम्भा से व्याह करेंगे, लाचार मुझे भी कसम खानी पड़ी कि रम्भा और नरेन्द दोनों ही को इस दुनिया से उठा दूगी। अपनी बडी बहिन कतकी से बदला लेकर और उसे जान से मारकर जब मै विहार में अर्थात यहा आईतो गुप्त रीति से नरन्दसिह से मिली। उनकी बातचीत से यह तो जरूर मालूम हुआ की वे मुझे भी चाहत है और मुझस शादी करने नरेन्द्र मोहिनी ११७७