पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१७६

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पर राजी है मगर साथ ही इसके यह भी निशमय हो गया कि पहले वे रम्भा से ही शादी करंग और तब मुझसा खैर अपनी कसम पर मजबूत रहना पड़ा। नरेन्द्रसिह की जुवानी मालूम हुआ कि रम्भा हाजीपुर में कैद है और वहादुरसिह भी हाजीपुर में विराज रहे है ओर वहाँ उन्होंने चमलादाई पर अपना कब्जा करके गप्प उड़ाई है कि रम्भा के सिर पर चुडैल आती है-इत्यादी जिसमें वहाँ का राजा रम्भा को निकाल दे और वह सहज ही में नरेन्द्रसिह के हाथ लग जाय। जब नरेन्द्रसिह रम्भा को लेने गए तो में भी भष बदलकर हाजीपुर पहुंची। अपना नाम सुन्दर रखकर महल मे गई और बहादुरसिह और चमेलादाई का भेद खोल दिया। वहाँ मेरी बड़ी खातिर हुई और रम्भा के बगल ही में एक कोठडी मुझे रहने को मिली। महल भर की लोडियों पर मरी हकूमत कायम की गई जिसमे मुझे अपना काम करने का बहुत कुछ मौका मिला। रात के समय में अपनी कोठी से बाहर निकली महल में सर्भा का माता पाया। रम्भा की कोटडी में घुस गई मगर वहाँ विल्कुल ही अधेरा था। टटोलती हुई रम्भा की चारपाई तक पहुंची और उसे नींद में बेहोश पाकर खञ्जर से उसका काम तमाम किया। यह खबर उसी रोज चारों तरफ फैल गई बल्कि यहादुरसिह ने सुना हो ता ताज्जुब नहीं । मुझे महल से बाहर निकलने में किसी तरह की तकलीफ न हुई। मै तुरन्त वहां से भाग निकली। और नरेन्द्रसिह के पहले यहाँ आ पहुंची। जव नरेन्द्रसिह यहाँ आये तो मुझ से मिले। मैंने अपन हाथा से कई चीजें खाने की वनाई और उन्हें खिलाया जिनमें ऐसा जहर मिलाया हुआ था कि जिसका असर किसी तरह और किसी भी दवा से दूर नहीं हा सकता। मेरी मुराद पूरी हुई. नरेन्द्रसिह भी घण्टे दो घण्टे में इस दुनिया को छोडा चाहते है अव में भी मरन के लिए तैयार हैं, जिस तरह चाहे मेरी जान ली जाय कुछ परवाह नहीं।' इस आखरी लेख के पढन और सुनने पर सभों का अजब हाल हा गया। जितन लाग वहा मौजूद थे सभों के मुंह से 'हाय हाय की आवाज निकलने लगी और सभों क मुंह पर उदासी और मुर्दनी छा गई। महाराज ने अपन दोनो हाथ सिर पर मारे और हाय बटा नरेन्द । कह कर बेहोश हो गए। जगजीतमिह की आखों स आसुओं की नदी बह चली। दीवान मुत्सद्दी और मुसाहर लाग जा वहा मौजूद थे सभी रोने और चिल्लाने लगे सब तरफ हाहाकार मच गया। बिजली की तरह यह बात चारों तरफ फैल गई। हर तरफ से रोन और चिल्लान की आवाजें आने लगी। धीर-धीर नरेन्द्रसिह के चहर पर भी मुर्दनी छान लगी और नाडी न जगह छोड दी। पाठक यह मौका बडे ही रज और गम का है। ऐसे किस्तों का लिखना मुझे पसन्द नहीं और न ही मेर कलजे में इतनी मजबूती ही है। इस समय जो हालत है में अपनी कल्म से लिख नहीं सकता, ॥ भी उम्मीद है कि यह भयानक समा अवश्य पाठकों की आँखों में घूम जायेगा और वे जान जायगे कि यह कैसा नाजुक मौका है। बहुतों को दुखान्त नाटक और उपन्यास पसन्द है। उन लोगों से मेरी प्रार्थना है कि बस इसके आगे न पढे और इस उपन्यास का दुखान्त समझ कर इसी जगह छोड़ दें । मगर उन लोगों के लिए जो कोमल कलज रखते है जिन्हें दुख को कहानी पसन्द नहीं थाडा और लिख देता है। आधे घन्टे में बाहर-भीतर सभों में यह बात फैल गई और सायत-सायत में हाय हाय की आवाज बढ़ गई। महाराज दुहत्थड मार-मार कर रोने लगे। नौकरों ने मोहिनी की मुश्के बॉध ली और राह देखने लगे कि जरा इशारा हा और इसकी घोटी-चोटी काट कर कुत्तों को खिला दें। इसी समय दो आदमी सिपाहियाना ठाठ से ढाल तलवार और खजर लगाय मुह पर नकाब डाले बघडक भीड को चीरते हुए वहाँ जा पहुंचे जहॉ नरेन्द्रसिह की आखिरी हालत देख लोग चिल्ला और रो रहे थे। इन दोनों में से एक ने अपने दोनो हाथ उठाये और चिल्ला कर कहा- आप लोग चुप रहें, किसी तरह का गम न करें और विश्वास रखें कि नरेन्दसिह किसी तरह नहीं मर सकते में आ पहुंचा हूँ। आप लोगों के देखते ही देखत इन्हें आराम करूगा और थोड़ी देर में यहॉ खुशी के वाजे बजते होंगे । इस आदमी के यकायक पहुँचने और इस तरह चिल्लाकर दादस देन से सभी चौकन्ने हा गए । एक उम्मीद की झलक सभों के चेहरों पर मालूम होने लगी। महाराज उठ खडे हुए और ताज्जुब के साथ उम्मीद भरी निगाहों से उस आदमी की तरफ देखने लगे। इस समय मोहनी की मुश्क बंधी हुई थी और वह हर तरह स बबस एक कोने में खड़ी थी मगर किसी तरह की परेशानी उसको चेहरे से मालूम न होती थी। इस नये आए हुए आदमी के मुंह से निकली हुई यातो को सुन कर वह हँस पड़ी और बोली-- अगर ब्रह्मा भी उतर कर आये तो नरेन्द्रसिह का आराम नहीं कर सकते दुनिया में ऐसी कोई दवा ही नही जो मेरे जहर को दूर कर सके। मोहिनी की इस बात ने फिर सभों को परेशान कर दिया। जो थोड़ी सी उम्मीद बंधी थी वह भी जाती रही. महाराज 1 देवकीनन्दन खत्री समग्र ११७८