पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१७८

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Gm कदमों पर गिर कर बोला- ' मेरा ही नाम रम्भा है। वह कम्बख्त में ही हूँ, और मेरे साथ यह मेरा चचेरा भाई अर्जुनसिह है जो अकस्मात हाजीपुर में महल से बाहर निकलने पर मुझे मिला था।" महाराज नरेन्द्रसिह जगजीतसिह और खैरखाह बहादुरसिह की खुशी का भी अब कुछ ठिकाना था ॥ यह सब हाल सुनते ही मोहिनी ने इस जार से अपना सर दीवार पर मारा कि दो टुकडे हो गया और उसकी आत्मा अपने पतित देह को छोड़ कर नर्क की तरफ रवाना हो गई। अन्त में इतना और कह देना मुनासिब है कि यह हाल सुन कर महल में गुलाब ने भी छत पर से कूद कर अपनी जान चारो तरफ खुशी के बाजे बजने लग और दो ही चार दिन में बडे धूम-धाम से नरन्दसिह की शादी हो गई। ॥समाप्त ॥ बीरेन्द्रवीर पहिला बयान "लोग कहते है कि नेकी का बदला नेक और बदी का बदला बद मिलता है मगर नहीं देखो आज मैं किसी नेक और पतिव्रता स्त्री के साथ बदी किया चाहता हूँ! अगर मैं अपना काम पूरा कर सका तो कल ही राजा का दिवान हो जाऊँगा। फिर कौन कह सकेगा कि बदी करने वाला सुख नहीं भोग सकता या अच्छे आदमियों को दुख नहीं मिलता? बस मुझे अपना कलेजा मजबूत करना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि उसकी खूबसूरती और मीठी बातें मेरी हिम्मत (रुककर) देखो कोई आता है । रात आधी से ज्यादे जा चुकी है। एक तो अधेरी रात दूसरे चारों तरफ से घिर आने वाली काली-काली घटा ने मानो पृथ्वी पर स्याह रग की चादर बिछा दी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। तेज हवा के झपेटों से कॉपते हुए पत्तों की खडखडाहट के सिवाय और किसी तरह की आवाज कानों में नहीं पड़ती। एक बाग के अन्दर अगूर की टट्टियों में अपने को छिपाये हुए एक आदमी ऊपर लिखी बातें धीरे-धीरे बुदबुदा रहा है। इस आदमी का रग-रूप कैसा है। इसका कहना इस समय बहुत ही कठिन है क्योंकि एक तो उसे अधेरी रात ने बहुत अच्छी तरह छुपा रक्खा है, दूसरे उसने अपने को काले कपडो से ढक लिया है तीसरे अगूर की घनी पत्तियों ने उसके साथ उसके ऐवों पर भी इस समर पर्दा डाल रक्खा है। जो हो, आगे चलकर तो इसकी अवस्था किसी तरह छिपी न रहेगी मगर इस समय तो यह बाग के बीचोबीच वाले एक सब्ज बमले की तरफ देख-देखकर दात पीस रहा है। यह मुख्तसर सा बगला सुन्दर लताओं से ढका हुआ है और इसके बीचों-बीच में जलने वाले एक शमादान की रोशनी साफ दिखला रही है कि यहाँ एक मर्द और एक औरत आपस में कुछ बातें और इशारे कर रहे हैं। यह बगला बहुत छोटा था, इसकी बनावट अठपहली थी, बैठने के लिए कुर्सीनुमा आठ चबूतरे बने हुए थे, ऊपर बास की छावनी जिस पर घनी लता चढी हुई थी। बगले के बीचों-बीच में एक मोढे पर मोमी शमादान जल रहा था। एक तरफ चबूतरे पर ऊदी देवकीनन्दन खत्री समग्र ११८०