पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१८१

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तारा०-क्या किसी तरह मेरी जान नहीं बच सकती? सुजन-हॉ बच सकती है अगर तू हरी वाली यात मजूर करे । तारा०-ओफ ऐसी बुरी बात का मान लना ता मुश्किल है !खैर अगर में वह बात भी मजूर कर लूं ता? सुजन०–ता तू बच सकती है ? मगर मैं नहीं चाहता कि तू उस बात को तारा०-बेशक मै कभी नहीं मजूर कर सकती, यह तो केवल इतना जानने के लिए बोल बैठी कि देखू तुम्हारी क्या मजूर करे राय है? - सुजन०-नहीं मैं उस किसी तरह मजूर नहीं कर सकता बल्कि तेरा मरना मुनासिब समझता हूँ लकिन हाय अफसास !आज मै कैसा अनर्थ कर रहा हूँ। तारा०-पिता बशक मेरी जिन्दगी तुम्हारे हाथ में है। क्या और नहीं तो केवल एक दफे किसी के चरणों का दर्शन कर लने के लिए तुम मुझं छोड़ सकते हो? सुजन०-यह तेरी भूल है जिसस तू मिला चाहती है वह भी घण्टे भर के अन्दर ही इस दुनियास कूच कर जायेगा, अब शायद दूसरी दुनिया में ही तरी और उसकी मुलाकात हो । ताराo-हाय अगर एता है तो मैं पति के पहिले ही मरने क लिए तैयार हूँ बस अब दर मत करो। हे पिता 'तुम रोते क्यों हा? अपने का सम्हाला और मेरे मारने में अब देर मत करा ॥ सुजन०-ऑसू पोंछ कर) हाँ हा एसा ही होगा ले अब सम्हल जा ॥ दूसरा बयान वीरसिंह तारा स विदा होकर बाग क बाहर निकला और सड़क पर पहुँचा। इस सडक के दानों किनारे बडे बडे नीम के पेड थे जिनकी डालियों के ऊपर जाकर आपस में मिल रहन के कारण सडक पर पूरा अधरा था। एक ता अधरी रात, दूसरे बदली छाई तीसरे दुपट्टी घन पंडों की छाया ने पूरा अन्धकार कर रक्खा था मगर वीरसिंह बरावर कदम बढाय चला जा रहा था जय याग की हद्दमे दूर निकल गया तो यकायक पीछ किसी आदमी के आने की आहट पाकर रुका और फिर कर देखन लगा मगर कुछ मालूम न पडा लाचार पुन आगे बढा परन्तु चौकन्ना रहा क्योंकि उसे दुश्मन के पहुंचन और घाखा दन का पूरा गुमान था ! आखिर थाडी दूर और आगे बढने पर वैसा ही हुआ। बॉए तरफ ते झपटता हुआ एक आदमी आया और उसन अपनी तलवार से बोरसिंह का काम तमाम करना चाहा मगर न हो सका क्योंकि वह पहिले ही से सम्हला हुआ था हाँ एक हलका मा घाव जरूर लगा जिसके साथ ही उसने भी तलवार खैच कर सामना किया और ललकारा । मगर अफसास उस्क ललकार की आवाज ने उलटा ही असर किया अर्थात् दो आदमी और निकल आये जा योडी ही दूर पर एक पड की आड में छिपे हुए थे। अब तीन आदमियों स उस मुकाबला करना पडा। वीरसिंह येशक बहादुर आदमी था उसके अगें में ताकत के साथ ही साथ घुम्ती और फुर्ती भी थी तिलवार वॉक पटा और खजर इत्यादि चलाने में वह पूर आस्ताद था। खराब से खराव तलवार भी उसके हाथ में पडकर जौहर दिखाती थी और दो एक दुश्मन को जमीन पर गिराये बिना न रहती थी। इस समय उसकी जान लेने पर तीन आदमी मुस्तैद थे तीनों आदमी तीन तरफ से तलवार चला रहे थे मगर वह किसी तरह न तहमा और वधडक तीनों आदमियों की तलवारों को खाली कर दता और अपना वार करता था। थाडी ही दर में उत्तकी तलवार से जख्मी होकर एक आदमी जमीन पर गिर पड़ा। अब केवल दा आदमी रह गये पर उनमें से भी एक पहुत सुस्त और कमजार हो रहा था।लाचार वह अपनी जान बचाकर सामने से भाग गया अब सिर्फ एक आदनी उसक मुकाबले में रह गया। येशक यह लडका था और इसने आधे घण्टे तक अच्छी तरह सवीरसिंह का मुकायला किया बल्कि इसके हाथ से बीरसिंह के बदन पर कई जख्म लगे मगर आखिर को बीरसिंह के अन्तिम वार न उसका सर धड़ से अलग करक फैक दिया और वह हाथ-पैर पटकता हुआ जमीन पर दिखाई देने लगा। अपने दुश्मन के मुकाबले में फतह पाने से बीरसिंह को खुश होना था मगर ऐसा न हुआ ! हरारत मिटान के लिए थोडी देर को वह पेड़ के नीचे बैठ गया और दम का फूलना बन्द हुआ तो यह कहता हुआ उठ खडा हुआ- वीरेन्द्र वीर ११५३