पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१८२

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he "इन्हीं तीनों पर मामला खत्म नहीं है, जरूर कोई भारी आफत आने वाली है। अब मैं आगे न बदूंगा बल्कि लौट चलूगा, कही ऐसा न हो कि मेरी तरह बेचारी तारा को भी दुश्मनों ने घेर लिया हो ! बीरसिंह जिधर जा रहा था उधर न गया बल्कि तारा से मिलने के लिए फिर उसी याग की तरफ लौटा जहों से रवाना हुआ था। थोड़ी ही देर में वह याग के अन्दर जा पहुंचा और सीधे उस बारहदरी में चला गया जिसमें तारा की लौडिया और सखियों बैठी आपस में बातें कर रही थीं। बीरसिंह को आते देख वे सब उठ खड़ी हुई ओर तारा को उसके साथ न देख कर उसकी एक सखी ने पूछा, "मेरी तारा बहिन को कहॉ छोडा ? वीर०-उसी से मिलने के लिए तो मैं आया हूँ, मुझे विश्वास था कि वह इसी जगह होगी। सखी०-वह तो आप के साथ थीं, यहाँ कब आई ? वीर०-अफसोस ! सखी०-कुछ समझ में नहीं आता कि क्या मामला हुआ आपने उन्हें कहा छोड़ा? वीर०-इस समय कुछ कहने का मौका नहीं एक रोशनी लेकर मेरे साथ आओ और चारों तरफ वागमखोजो कि वह कहाँ है। बीरसिंह के यह कहने से उन औरतों में खलबली पड़ गई और व सब घबड़ा कर इधर-उधर दौड़ने लगी। दो लौडियों लपक कर एक तरफ गई और जल्दी से दो मशाल जला कर ले आई, बीरसिंह ने उन दोनों मशाल-वालियों के अतिरिक्त और भी कई लौडियों को साथ लिया और बाग में चारों तरफ तारा को खोजने लगा मगर उसका कहीं पता न लगा। बीरसिंह तारा को ढूँढता हुआ उसी अगूर की टट्टी के पास पहुंचा और एकाएक जमीन पर एक लाश देखकर चौक पड़ा। उसे विश्वास हो गया कि यह तारा की ही लाश है। बीरसिंह को रुकते देख लौड़ियों ने मशाल आगे किया और वह बड़े गौर से उस लाश की तरफ देखने लगा। बीरसिह ने समझ लिया था कि यह तारा की लाश है मगर नहीं, वह तो एक कमसिन लडके की लाश थी जिसकी उम्र दस वर्ष से ज्यादे कि न होगी। लाश का सिर न था जिससे पहिचाना जाता कि कौन है, मगर बदन के कपड़े वेशकीमत थे, हाथ में हीरे का जड़ाऊ कड़ा पड़ा हुआ था, उगलियों में कई अगूठियों थी, गर्दन के नीचे जमीन पर गिरी हुई मोती की एक माला भी मौजूद थी। वीर०-चाहे इसका सिर मौजूद न हो मगर गहने और कपड़े की तरफ ख्याल करके मैं कह सकता हूँ कि यह हमारे महाराज के छोटे लड़के सूरजसिह की लाश है। एक लौडी०-यह क्या हुआ ? कुँवर साहब यहाँ क्योंकर आये और उन्हें किसने मारा ? बीर०-कोई गजब हो गया है, अब किसी तरह हम लोगों की जान नहीं बच सकती, जिस समय महाराज को खवर होगी कि कुँअर साहब की लाश वीरसिंह के बाग में पाई गई तो बेशक मै खूनी ठहराया जाऊँगा। मेरी चेकसूरी किसी तरह साबित नहीं हो सकेगी और दुश्मनों को भी बात बनाने और दुख देने का मौका मिल जायेगा । हाय !अब हमारे साथ हमारे रिश्तेदार लाग भी फॉसी दे दिये जायगे । हे ईश्वर धर्मपथ पर चलने का क्या यही बदला है।" अपनी-अपनी जान की फिक्र सभी को होती है, चाहे भाई-बन्धु रिश्तेदार हो या नौकर समय पर काम आवे,वही आदमी है, वही रिश्तेदार है और वही भाई है। कुँअर साहब की लाश देख और वीरसिंह को आफत में फंसा जान धीरे-धीरे लौडियों ने घसकना शुरू किया, कई तो तारा को खोजने का बहाना करके चली गई कई देखे इधर कोई छुप. तो नहीं है,कहकर आड में हो गई और मौका पा अपने घर में जा छिपी, और कई विना कुछ कहे चीख मारकर सामने से हट गई और पिछा देकर भाग गई। अगर किसी दूसरे की लाश होती तो शायद किसी तरह बचने की उम्मीद भी होती मगर यहाँ तो महाराज के लड़के की लाश थी-न मालूम इसके लिए कितने आदमी मारे जायेंगे, ऐसे मौके पर मालिक का साथ देना बडे जीवट का काम है, हाँ अगर मर्दो की मण्डली होती तो शायद दो एक आदमी रह भी जाते मगर औरतों का इतना बडा कलेजा कों? अब उस लाश के पास केवल बेचारा बीरसिंह रह गया। वह आधे घण्टे तक उस जगह खड़ा सोचता रहा आखिर उस लाश को उठाकर उस तरफ चला जिधर के दरख्त बहुत ही घने और गुजान थे और जिघर लोगों की आमदरफ्त बहुत कम होती थी। बीरसिह ने उस गुजान और भयानक जगह पर पहुँच कर लाश को एक जगह रख दिया और वहाँ से लौट कर उस तरफ गया जिधर मालियों के रहने के लिए कच्या मकान फूस की छावनी का बना हुआ था। अब बिजली चमकने और देवकीनन्दन खत्री समग्र ११८४