पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

छोटी-छोटी बूंदें भी पड़ने लगीं। बीरसिंह एक माली की झोपड़ी में पहुंचा माली को गहरी नींद में पाया. एक तरफ कोने में दो तीन कुदाल और फरसे पडे हुए थे बीरसिंह ने एक कुदाल उठा लिया और फिर उस जगह गया जहॉ लाश छोड आया था। इस समय वर्षा अच्छी तरह हाने लगी थी और चारों तरफ अन्धकारमय हो रहा था, कभी-कभी बिजली चमकती थी तो जमीन दिखाई दे जाती थी नहीं तो पैर भी आगे रखना मुश्किल था। वीरसिंह को उस लाश का पता लगाना कठिन हो गया जिसे उस जगह रख गया था। वह चाहता था कि उस लाश के पास पहुंच कर कुदाल से जमीन खोदे और जहाँ तक जल्द हो सके उसे जमीन में गाड़ दे मगर न हो सका,क्योंकि इस अधेरी रात में हजार दूढ़ने और सर पटकने पर भी वह लाश न मिली। जब बिजली चमकती,वह उस निशान को अच्छी तरह पहिचानता जिसके पास लाश छोड गया था मगर ताज्जुब की बात थी कि वह लाश उसे दिखाई न पडी। पानी ज्यादे बरसने के कारण बीरसिंह को यडा कष्ट उठाना पड़ा एक तोतारा की फिक्र ने उसे बेकाम ही कर दिया था दूसरे कुँअर साहय की लाश न पाने से वह अपनी जिन्दगी से भी नाउम्मीद हो गया था और अपने को तारा का पता लगाने लायक नहीं समझता था। येशक उसे अपने मालिक महाराज और कुँअर साहब की बहुत मुहब्बत थी मगर इस समय वह यही चाहता था कि कुँअर साहब की लाश छिपा दी जाय और असल खूनी का पता लगाने के बाद ही यह भेद सभों पर खोला जाय लेकिन यह न हो सका क्योंकि कुँअर साहब की लाश जब तक वह कुदाल लेकर आवे इसी बीच में आश्चर्य रूप से गायब हो गई थी। वीरसिह हैरान और परेशान उस लाश को चारों तरफ खाज रहा था पानी से उसकी पोशाक विल्कुल तर हा रही थी। यकायक याग के फाटक की तरफ उसे कुछ रोशनी नजर आई और वह उसी तरफ देखने लगा। वह रोशनी भी उसी तरफ आ रही थी। जय वाग के अन्दर पहुंची तो मालूम हुआ कि दो मशालों की रोशनी में कई आदमी मोमजामे का छाता लगाये और मशालों को भी छाते की आड में लिए बारहदरी की तरफ जा रह है। मुनासिब समझ कर वीरसिह वहाँ से हटा और उन आदमियों के पहिले ही वारहदरी में जा पहुंचा 1 बारहदरी के पीछे की तरफ तोशेखाना था। वह उसमें चला गया और गीले कपडे उतार दिये। सूखे कपडे पहिनने की नोबत नहीं आई थी कि रोशनी लिए वे लोग बारहदरी में आ पहुंचे। वीरसिह केवल सूखी धोती पहिर कर उन लोगों के सामने आया सभी न झुक कर सलाम किया। इन आदमियों में दो महाराज करनसिंह के मुसाहब थे और बाकी के आठ महाराज के खास गुलाम थे। महाराज करनसिंह के यहाँ वीरसिंह की अच्छी इज्जत थी,यही सवय था कि महाराज के मुसा हय लोग भी इनका अदब करते थे। वीरसिंह की इज्जत और मिलनसारी तथा नेकियों का हाल आगे चल कर मालूम होगा। . वीर०-(दोनों मुसाइयों की तरफ देख कर) आप लोगों को इस समय ऐसे ऑधी-तूफान में यहाँ आने की जरूरत क्यों पड़ी? एक मुसाहब०-महाराज ने आपको याद किया है। वीर०-कुछ सबब भी मालूम है ? मुसाहब०-जी हाँ, कुंअर साहब के दुश्मनों की निस्वत सरकार ने कुछ बुरी खबर सुनी है, इससे बहुत ही वेचैन हो रहे है। 45 वीर०-(चौक कर) दुरी खबर ? सो क्या ? मुसाहब०-(ऊँची सोंस लेकर) यही की उनकी जिन्दगी शायद नहीं रही। बीर०-(कॉप कर) क्या ऐसी बात है ? मुसाहब०-जी हॉ। वीर०-मैं अभी चलता हूँ। कपडे पहिरने के बाद बीरसिंह तोशेखाने में गया। इस समय यहाँ कोई भी लौडी मौजूद न थी जो कुछ काम करती। वीरसिंह की परेशानी का हाल लिखना इस किस्से को व्यर्थ वढाना है तो भी पाठक लोग ऊपर का हाल पढ कर जरूर समझ गये होंगे कि उसके लिएयह समय कैसा कठिन और भयानक था बेचारे को इतनी मोहलत भी न मिली कि अपनी स्त्री तारा का पता तो लगा लेता,जिसे वह अपनी जान से ज्यादे चाहता और मानता था। वीरेन्द्र वीर ११८५ ७५