पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१८८

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६ तरफ से छुट्टी मिल जाती तो कोई न कोई तर्कीब उसके गिरफ्तार करने की जरूर करता। कुछ समझ में नहीं आता कि मेरी उन कार्रवाइयों का पता उसे क्योंकर लग जाता है जिन्हें मैं बड़ी होशियारी से छिपा कर करता हूँ (हरिसिंह की तरफ देख. कर) क्यों हरिसिंह तुम इस बारे में कुछ कह सकते हो। हरि०-महाराज उसकी बातों में अक्ल कुछ भी काम नहीं करती 1मै क्या कहूँ? महा०-अफसोस !भगर मेरी रिआया वीरसिंह से मुहव्यत न रखती तो मैं उसे एक दम मार कर ही यखेड़ा तै कर देता मगर जब तक बीरसिंह जीता है मैं किसी तरह निश्चिन्त नहीं हो सकता। खैर अब तो वीरसिंह पर एक भारी इलजाम लग चुका है. परसों मै आम दर्बार करूगारिआया के सामने धीरसिंह को दोषी ठहरा कर फाँसी दूगा फिर उस डाकू से समझ लूगा, आखिर वह हरामजादा है क्या चीज ।। महाराज ने आखिरी शब्द कहा ही था कि दर्वाजे की तरफ से यह आवाज आई वेशक वह डाकू कोई चीज नहीं है मगर एक भूत है जो हरदम तेरे साथ रहता है और तेरा सब हल जानता है देख इस समय यहा भी आ पहुचा !1 यह आवाज सुनते ही महाराज कॉप उठे, मगर उनकी हिम्मत और दिलावरी ने उन्हें उस हालत में देर तक रहने न दिया म्यान से तलवार खैच कर दर्वाजे की तरफ बढे दोनों मुलाजिम लाचार साथ हुए मगर दाज में बिल्कुल अधेरा था। इसलिए आगे बढ़ने की हिम्मत न हुई आखिर यह कहते हुए पीछ हट गये कि 'नालायक ने अन्धेरा कर दिया । पाँचवॉ बयान बेचारे बीरसिह कैदखाने में पड़े सड़ रहे है। रात की बात ही निराली है,इस भयानक कैदखाने में दिन को भी अधेरा ही रहता है, यह कैदखाना एक तहखाना के तौर पर बना है जिसके चारों तरफ की दीवारें पक्की और मजबूत है। किले से एक मील की दूरी पर जो कैदखाना था और जिसमें दोषी कैद किये जाते थे उसी के बीचोबीच में यह तहखाना था। जिसमें वीरसिह कैद थे। लोगों में इसका नाम 'आफत का घर मशहूर था। इसमें वे ही कैदी कैद किये जाते थे जो फोंसी देने के योग्य समझे जाते या बहुत ही कष्ट देकर मारे जाते थे। इस कैदखाने के दर्वाजे पर पचास सिपाहियों का पहरा पड़ा करता था। नीचे उतर कर तहयाने में जाने के लिए पाँच मजबूत दाजे थे और हर दर्वाजे में मजबूत ताला लगा रहता था। इस तहखाने में न मालूम कितने कैदी सिसक -सिसक कर मर चुके थे आज बेचारे बीरसिंह को भी हम इसी भयानक तहखाने में देखते है। इस समय उनकी अवस्था बहुत ही नाजुक हो रही है। अपनी बेकसूरी के साथ ही साथ बेचारी तारा की जुदाई का गम और उसके न मिलने की नाउम्मीदी इन्हें मौत का पैगाम दे रही है इसके अतिरिक्त न मालूम और कैसे कैसे खयालात इनके दिल में काटे की तरह खटक रहे है। तहखाना बिल्कुल अधकारमय है. हाथ को हाथ नहीं सूझता और यह भी नहीं मालूम होता कि दर्वाजा किस तरफ है और दिवार कहाँ है ? इस जगह कैद हुए इन्हें आज चौथा दिन है। इस बीच में केवल थोडा सा सूखा चना खाने के लिए और गरम जल पीने के लिए मिला था मगर बीरसिंह ने उसे छुआ तक नहीं और एक लम्बी सॉस लेकर लौटा दिया था। इस समय गरमी के मारे दुखित हो तरह तरह की बातें सोचते हुए बेचारे वीरसिंह जमीन पर पड़े ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं। यह भी नहीं मालूम कि इस समय दिन है या रात । यकायक दिवार की तरफ कुछ खटके की आवाज हुई. यह चैतन्य होकर उठ बैठे और सोचने लगे कि शायद कोई सिपाही हमारे लिए अन्न-जल लेकर आता है मगर नहीं, थोड़ी ही देर में कई दफे आवाज आने से इन्हें गुमान हुआ कि शायद कोई आदमी इस तहखाने की दिवार तोड रहा है या सेंध लगा रहा है। आखिर उनका सोचना सही निकला और थोडी ही देर बाद दिवार के दूसरी तरफ रोशनी नजर आई। साफ मालूम हुआ कि बगल वाली दीवार तोडकर किसी ने दो हाथ के पेटे का रास्ता बना लिया है। अभी तक उन्हें इस बात का गुमान भी न था कि उनसे मिलने कोई आदमी इस तरह दिवार तोड कर आवेगा। उस सेंध के रास्ते हाथ की रोशनी लिए एक लम्बे कद का आदमी स्याह पोशाक पहिरे मुंह पर नकाब डाले उनके सामने आ खडा हुआ और बोला - आदमी०-मै तुम्हें छुडाने के लिए आया हूँ, उठो और मेरे साथ यहाँ से निकल चलो। वीरo--इसके पहिले कि तुम मुझे यहाँ से छुडाओ मैं जानना चाहता हूँ कि तुम्हारा नाम क्या है और मुझ पर मेहरवानी करने का क्या सबब है? आदमी०-इस समय यहाँ पर इनके पूछने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि समय बहुत कम है। यहाँ से निकल चलने देवकीनन्दन खत्री समग्र ११९०