पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१९३

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६ JH सौ अपनी स्त्री को दकर उसे करनसिंह राठू की हिफाजत में छोडा और दो सौ आप लेकर रोजगार की तलाश में पटने से बाहर निकला। उस समय नेपाल की गद्दी पर महाराज नारायणसिंह विराज रहे थे जिनकी नेकनामी और रिआयापरवरी की धूम दशान्तर में फैली हुई थी। करनसिह ने भी नेपाल हो का रास्ता लिया थाड ही दिन में वहाँ पहुँच कर वह दर्यार में हाजिर हुआ पूछन पर उसने अपना सच्चा हाल राजा स कह सुनाया राजा को उसके हाल पर तरस आया और उसने करनसिंह को मजबूत ताकतवर और बहादुर समझकर फौज में भरती कर लिया। उन दिनों नपाल की तराई में दा तीन डाकूओं ने बहुत जोर पकड रक्या था करनसिंह ने स्वय उनकी गिरफ्तारी के लिए आज्ञा मागी जिससे राजा बहुत ही प्रसन्न हुआ और दो सौ आदमियों का साथ देकर करनसिंह को डाकुओं की गिरफ्तारी के लिए रवाना किया।छ महीने के उरले में एकएकी करके करनसिंह ने तीनों डाकुओं का गिरफ्तार किया जिसस राजा के यहाँ उसकी इज्जत बहुत बढ गई और उन्होंने प्रसन्न होकरहरिपुर का इलाका उसे द दिया जिसकी आमदनी मालगुजारी देकर चालीस हजार से कम न थी साथ ही उन्होंन एक आदमी को इस काम के लिए तहसीलदार मुकर्रर करके हरिपुर भेज दिया कि वह वहाँ की आमदनी वसूल करे और मालगुजारी दकर जो कुछ बचे करनसिंह का दे दिया करे। अव करनसिह की इज्जत बहुत बढ गई और नेपाल की फौज का सनापति मुकर्रर किया गया। अपने को ऐस दर्जे पर पहुंचा देखकर करनसिंह ने पटने से अपनी जाल और लडके लडकियों को करनसिंह राठू के सहित बुलवा लिया और खुशी से दिन बीतने लगा। दा वर्ष का जमाना गुजर जाने के बाद तिरहुत के राजान बड़ी धूमधाम से नेपाल पर चढाई की जिसका नतीजा यह निकला कि करनसिहन बडी बहादुरी सतिरहुत के राजा का अपनी सरहद के बाहर भगा दिया और उसका ऐसी शिकस्त दी कि उसन नेपाल को कुछ कौडी दना मजूर कर लिया नपाल के राजा नारायणसिह ने प्रसन्न होकर करनसिह की नौकरी माफ कर दी और पुश्तहापुश्त के लिए हरिपुर का भारी परगना लाखिराज करनसिंह के नाम लिख दिया और एक परवाना तहसीलदार के नाम इस मजमून का लिखा कि वह परगने हरिपुर पर करनसिह को दखल दे दे और खुद नेपाल लौट आव। नपाल से रदाना हान के पहल करनसिंह की स्त्री न दुखार की बीमारी से देह त्याग कर दिया लाचार करनसिंह न अपर्ने दानों लड़कों और लडकी तथा करनसिंह राठू को साथ ले हरिपुर का रास्ता लिया ! करनसिह राठू की नीयत बिगड गई। उसने चाहा कि अपने मालिक करनसिंह को मार कर राजा नेपाल के दिए परदाने से अपना काम निकाले और खुद हरिपुर का मालिक बन बैठ। उसको इस बात पर भरोसा था कि उसका नाम करनसिंह है मगर उम्र में वह करनसिंह से सात वर्ष छोटा था। करनसिंह राठू कोअपनी नियत पूरी करने में तीन मुश्किलें दिखाई पडी ! एक तो यह कि हरिपुर का तहसीलदार अवश्य पहचान लगा कि यह करनसिंह सेनापति नहीं है। दूसर यह करनसिह सेनापति का लड़का जिसकी उम्र पन्द्रह वर्ष की हो चुकी थी इस काम में बाधक होगा और नपाल में खयर कर देगा जिससे जान बचनी मुश्किल हो जायेगी। तीसरे खुद करनसिंह की मुस्तैदी से वह और भी कॉपता था ! जब करनसिंह रास्त ही में थे तब ही खयर पहुँची कि हरिपुर का तहसीलदार मर गया। एक दूत यह खबर लेकर नपाल जा रहा था जो रास्ते में करनसिंह सेनापति से मिला ! करनसिंह ने राठू के बहकाने से उसे वहीं रोक लिया और कहा कि अब नेपाल जाने की जरूरत नहीं है। अब करनसिंह राठू की बदनीयती ने और भी जोर मारा और उसने खुद हरिपुर का मालिक बनने के लिए यह तरकीय सोची कि करनसिंह सेनापति के साथियों को बडे-बड़ ओहदों और रूपये के लालच से मिला ले और करनसिंह को मय उसके लड़कों और लडकी के किसी जगल में मार कर अपन ही को करनसिंह सेनापति मशहूर करे और उसी परवाने के जरिये हरिपुर का मालिक बन बैठे मगर साथ ही इसके यह भी खयाल हुआ कि करनसिंह के दोनों लड़कों और लड़की के साथ मरन की खबर जय नेपाल पहुँचगी ता शायद वहाँ के राजा को कुछ शक हो जाय इससे बेहतर यही है कि करनसिंह सनापति और उसके बड़े लड़के को मार कर अपना काम चलाव और छाटे लडके और लड़की को अपना लडका और लडकी बनावे क्योंकि ये दोनों नादान इस पेचिले मामले को किसी तरहसमझ नहीं सकेंगे और हरिपुर की रिआया भी इनको नहीं पहिचानती उन्हें तो केवल परवाने और करनसिंह नाम से मतलब है। आखिर उसने ऐसा ही किया और करनसिह के साथी सहज ही में राठू के साथ मिल गए। करनसिँह राठू ने करनसिह को तो जहर देकर मार डाला और उसके बडे लडक को एक भयानक जगल में पहुंच वीरेन्द्र वीर ११९५