पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१९७

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credit नस्तर और दो सलाइयाँ पड़ी हुई थीं। वह औरत जो मसहरी पर लेटी हुई थी बहुत ही कमजोर और दुबली मालूम हाती थी। उसके बदन म सिवाय हडडी के मॉस या लहू का नाम ही नाम था मगर चहरा उसका अभी तक इस बात की गवाही देता था कि किसी वक्त में यह निहायत खूबसूरत रही होगी। गोद में लडका लिए चायू साहय उसके पास जा खड हुए और डबडवाई हुई आँखों से उसकी सूरत देखने लग । उस औरत न बाबू साहब की ओर देखा ही था कि उसकी आँखों से ऑसू की बूदें गिरन लगी हाथ बढाकर उठाने का इशारा किया मगर वायू साहब ने तुरत उसके पास जा और बैट कर कहा 'नहीं नहीं उठन की कोई जरूरत नहीं तुम आप कमजोर हा रही हो। हाय इस दुष्ट के अन्याय का कुछ ठिकाना है । लो यह तुम्हारा बच्चा तुम्हारे सामने हैं इसे दखो और प्यार करा !घबडाआ मत दो ही चार दिन में यहाँ की काया पलट हुआ चाहती है ।। बाबू साहब ने उस लडके को पलग पर बैठा दिया। उस औरत ने बडी मुहब्बत से उस लडके का मुँह चूमा । ताज्जुव की बात थी कि वह लडका जरा भी न तो रोया और न हिचका बल्कि उस औरत के गले स लिपट गया जिसे देख कर बाबू साहब लौडियाँ और उस औरत का भी कलेजा फटने लगा और लोगों ने बड़ी मुश्किल से अपने को सॅनाला । उस औरत न बाबू साहब की तरफ देख कर कहा- 'प्यारे क्या मैं अपनी जिदगी का कुछ भी भरोसा कर सकती हूँ? क्या में तुम्हारे घर में बसने का खयाल ला सकती ? क्या नै उम्मीद कर सकती हूँ कि दस आदमी के बीच में इस लड़के को लकर खिलाऊँगी? हाय एक बीरसिह की उम्मीद थी सो दुष्ट राजा उस भी फॉसी दिया चाहता है । याबू साहब०-प्यारी तुम चिन्ता न करो। नै सच कहता हूँ कि सवेरा होते होते इस दुष्ट राजा की तमाम खुशी खाक में मिल जावेगी और वह अपने को मौत के पंजे में फंसा हुआ पावेगा। क्या उस आदमी का कोई कुछ विगाड सकता है जिसका तरफदार नाहरसिह डाकू हो ? दखो अभी दो घण्टे हुए हैं कि वह कैदखाने से बीरसिंह को छुडा कर ले गया । औरत०-(चौंक कर) नाहरसिह डाकू धीरसिंह को छुडा कर ले गया मगर वो तो बडा भारी बदमाश और डाकू है । वीरसिह के साथ नेकी क्यों करन लगा ? कहीं दु ख न दे । याबू साहय०-तुम्हें ऐसा न सोचना चाहिये। शहर भर में जिससे पूछोगी कोई भी यह न कहगा कि नाहरसिंह ने सिवाय राजा के किसी दूसरे को कभी कोई दुख दिया हॉ वह राजा को बेशक दुख देता है और उसकी दौलत लूटता है मगर इसका काई खास सवय जरूर होगा। मैने कई दफे सुना है कि नाहरसिह छिपकर इस शहर में आया कईदुखियों और कगातों को रुपये की मदद की और कई ब्राह्मणों के घर में जो कन्यादान के लिए दुखी हो रहे थे रुपये की थैली फेंक गया। मुख्तसर यह है कि यहॉ की कुल रिआया नाहरसिह के नाम से मुहव्यत करती है और जानती है कि वह सिवाय राजा के और किसी को दुख देन वाला नहीं। औरत-सुना तो है मैने भी ऐसा ही है। अब देखें वह बीरसिह के साथ क्या नेकी करता है और राजा का भण्डा किस तरह फूटता है। मुझे वर्ष भर इस तहखाने में पडे हो गये मगर मैने वीरसिह और तारा का मुँह नहीं देखा, यों तो राजा के डर से लड़कपन ही से आज तक मैं अपने को छिपाती चली आई और वीरसिह के सामने क्या किसी और के सामने भी न कहा कि मै फलानी हूँ या मेरा नाम सुदरी है मगर साल भर की तकलीफ ने (रोकर) हाय न मालूम मेरी मौत कहाँ छिपी हुई है । बाबू साहब०-(उस खून से भरे हुए कटोरे की तरफ देख कर) हॉ यह खून भरा कटोरा कहता है कि मैं किसी के खून से भरा हुआ कटोरा पीऊँगा ! सुन्दरीo- (लडके को गले लगाकर) हाय हम लोगों की खराबी के साथ इस बच्चे की भी खराबी हो रही है । बाबू साहय०--ईश्वर चाहता है तो इसी सप्ताह में लोगों को मालूम हो जावेगा कि तुम कुँआरी नहीं हो और यह बच्चा भी तुम्हारा है। सुन्दरी०-परमेश्वर करे ऐसा ही हो !हॉ उन पचों का क्या हाल है? बाबू साइब०--पचों का जोश बढ़ता ही जाता है, अब वे लोग वीरसिह की तरफदारी पर पूरी मुस्तैदी दिखा रहे हैं। सुन्दरी०-नाहरसिह का कुछ और भी हाल मालूम हुआ है ? बाबू साहब०-और तो कुछ नही मगर एक बात नई जरूर सुनने में आई है। सुन्दरी०-वह क्या? बाबू साहब०–तारा के मारने के लिए उसका बाप सुजनसिंह मजबूर किया गया था। वीरेन्द्र वीर ११९९