पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२००

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वायू साहब ने उस लोडी को विदा कर दिया। एक आदमी ने उस गहर को पीठ पर लादा, याधू साहब ने लड़के को गोद में लिया और उन दोनों के पीछे रवाना हुए मगर थोड़ी ही दूर गये थे कि पीछे से तेजी के साथ दौड़ते हुए आने वाले घोडों के टापों की आवाज इन तीनों के कानों में पड़ी। बाबू साहब ने चोक कर कहा ताज्जुब नहीं कि हम लोगों को गिरफ्तार करने के लिए सवार आते हो!! नौवां बयान आधी रात का समय है। चारों तरफ अधेरी छाई हुई है। आसमान पर काली घटा छाई रहने के कारण तारों की रोशनी भी जमीन तक नहीं पहुंचती। जरा-जरा बूदी जा रही है मगर यह हवा के झपेटो के कारण मालूम नहीं हाती। हरीपुर में सन्नाटा छाया हुआ है। ऐसे समय में दो आदमी स्याह पोशाक पहिरे नकाय आल (जर इस समय पीछेकी तरफ उलटी हुई है) तेजी से कदम बढ़ाये एक तरफ जा रहे है। ये दोनों सदर सड़क को छोड़कर गलीगली जा रहे है और तेजी से. चलकर ठिकाने पहुंचने की कोशिश कर रहे है, मगर गजब की फैली हुई अधेरी इन लोगों को एक रग पर चलने नही देती, लाचार जगह-जगह रुकना पडता है, जब बिजली चमककर दूर तक का रास्ता दिखा देती है तो फिर ये कदम बढ़ाते ये दोनों गली-गली चलफर एक आलीशान मकान के पास पहुंचे जिसको फाटक पर दस बारह आदमी नगी तलवारें लिए पहरा दे रहे थे। दोनों ने नकार ठीक कर ली और एक ने आगे बढकर का महादेव ! इसके जवाब में उन सभो ने भी "महादेव! कहा, इसके बाद एक सिपाही ने जो शायद सभों का सरदार था आगे बढ़कर उस आदमी से जिसने 'महादेव' कहा था पूछा "आज आप अपने साथ और भी किसी को लेते आए है ? क्या ये भी अन्दर जायेंगे ?' आगन्तुक०-नहीं, अभी तो मैं अकेला ही अन्दर जाऊँगा और ये बाहर रहेंगे लेकिन सार सारब इनको बुलायेंगे तो ये भी चले जायेंगे। सिपाही०-वेशक ऐसा ही होना चाहिए अच्छा आप जाइए। इन दोनों में से एक तो बाहर रह गया और इधर-उधर टहलने लगा और एक आदमी ने फाटक के अन्दर पैर रक्या। इस फाटक के बाद नकाबपोश को और तीन दाजे लाधने पड़े तब वह एक लम्बे चौड़े सहन में पहुंचा जहाँ एक फर्श पर लगभग बीस आदमी बैठे आपस में कुछ बातें कर रहे थे। बीच मे दो मामी शमादान जल रहे थे और उसी के चारों तरफ वे लोग बैठे हुए थे। ये सबराआवदार गठीले और जवान आदमी थे तथा सभो ही के सामने एक-एक तलवार रक्खी हुई थी। उन लोगों की चढी हुई मूछे, चौड़ी और तनी हुई छाती, बड़ी-बड़ी सुखं आखें कह देती थी कि ये सब तलवार के जौहर के साथ अपना नाम रोशन करने वाले यहादुर है। ये लोग रेशमी धुस्त मिरजई पहिरे, सर पर लाल पगड़ी बाघे, रता-चन्दन का त्रिपुण्ड लगाए, दोपट्टी आमने-सामने वीरासन बैठे बातें कर रहे थे। ऊपर की तरफ बीच में एक कम-उम्र बहादुर नौजवान बडे ठाठ के साथ जडाऊ कब्जे की तलवार सामने रक्ये बैठा हुआ था। उसकी बेशकीमत गुठली टकी हुई सुर्ख मखमल की चुस्त पोशाक साफ-साफ कह रही थी कि वह किसी ऊँचे दर्जे का आदमी बल्कि किसी फौज का अफसर है मगर साथ ही इसके उसकी चिपटी नाक रहे-सहे भ्रम को दूर करके निश्चय करा देती थी कि वह नेपाल का रहने वाला है बल्कि यो कहना चाहिए कि वह नेपाल का सेनापति या किसी छोटी फौज का अफसर है। चार आदमी बड़े बड़े परखे लिए इन सभों को हवा कर रहे है। यह नकाबपोश उस फर्श के पास जाकर खड़ा हो गया और तब वीरों को एक दफे झुक कर सलाम करने के बाद भोला, "आज मै सच्चे दिल से महाराज नेपाल को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने हम लोगों का अर्थात् हरिपुर की रिआया का दुख दूर करने के लिए अपने एक सरदार को यहाँ भेजा है। मैं उस सार को भी इस कमेटी में मौजूद देखता है जिसमें यहाँ के बड़े क्षत्री जमींदार शीर और धर्मात्मा लोग बैठे हैं। अस्तु उन्हें प्रणाम करने के बाद (सर झुकाकर) निवेदन करता हूं कि वे उन जुल्मों की अच्छी तरह जाँच करें जो राजा करनसिंह की तरफ से हम लोगों पर हो रहे है। हम लोग इसका सबूत देने के लिए तैयार है कि यहाँ का राजा करनसिंह बड़ा ही जालिम सगदिल और बेईमान है !! उस नकाबपोश की बात सुन कर नेपाल के सरि ने जिसका नाम खड्गसिंह था,एक क्षत्री वीर की तरफ देखकर पूछा- देवकीनन्दन खत्री समग्र १२०२