पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२०३

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art उसके बाग में वीरसिह की मोहर चुरान गया था जो वहाँ मेरे मौजूद रहने के सवव इसक हाथ न लगी न मालूम मोहर लेकर राजा क्या-क्या जाल बनाता। इतना सुनते ही खडगसिह उठ खडे हुए और नाहरसिह के पास पहुंच कर बोले -- खड़ग०-येशक हम लोग धोखे में डाल गए। इसमें कोई शक नहीं कि इस कुमटी का बहुत कुछ हाल करनसिह को मालूम हो गया इन सब सर्दारों में सजो यहाँ बेठ है जरूर कोई राजा का पक्षपाती हे और जाल करक इस कुमटी में मिला नाहर०-खैर क्या हर्ज है चूझा जायेगा, इस समय बाहर चल कर देखना चाहिए कि वीरसिह कहा है ओर पता लगाना चाहिए कि उस बेचारे पर क्या गुजरी मगर इस दुष्ट को किसी की हिफाजत में छोडना मुनासिब है। इस मामले के साथ ही कुमेटी में खलबली पड गई. सब के सब उठकर खड हुए क्राध के मारे सभों की हालत बदल गई एक सर्दार ने बच्चनसिह के पास पहुच कर उस लात मारी और पूछा सच बाल धीरसिह कहाँ है और उस क्या धोखा दिया गया नहीं तो अभी तेरा सिर काट डालता हूँ!! इसका जवाब बच्चनसिह ने कुछ न दिया तब वह सर्दार खडगसिह की तरफ देखकर वाला आप इस मरी हिफाजत में छोडिए और बाहर जाकर वीरसिह का पता लगाइय, में इस हरामजादे से समझ लूगा ! खडगसिह ने इशारे स नाहरसिंह से पूछा कि 'तुम्हारी क्या राय है ? नाहरसिह न झुककर कहा मुझ इस सदार पर भी शक है जो इन सब सर्दारों से बढकर हमदर्दी दिखा रहा है। खडग०-(जोर से) येशक ऐसा ही है ! खडगसिह ने उस सर्दार को जिसका नाम हरिहरसिह था और बच्चनसिर का दूसर सर्दारों के हवाले किया और कहा, राजा की बेईमानी अब हम पर अच्छी तरह जाहिर हो गई इस समय ज्याद बातचीत का मौका नहीं है तुम इन दोनों को कैद करा हम किसी और काम के लिए बाहर जात है। खडगसिह न अपने तीन साथी वहादुरों का अपने साथ आन का हुक्म दिया और नाहरसिंह से कहा अय देर मत करो, चलो ये पॉचा आदमी उस मकान के बाहर हुए और फाटक पर पहुँच कर रुके नाहरसिह ने पहरे वालों से पूछा कि जिस आदमी को हम यहाँ छोड गए थे वह हमारे जान के बाद इसी जगह रहा या कहीं गया था ? खडग--अनिरूद्धसिह, यह कौन है ? नाहर०-(खडगासह से) देखिए मामला खुला न । खड़ग०-खैर आगे चलो। नाहर०--अफसोस वेचारा वीरसिह ॥ खडग०-तुम चिन्ता न करो दखो अब हम क्या करते है। एक पहर वाल का चलन का हुक्म हुआ नाहरसिहन अपने चेहरे पर नकाब डाल ली। थोडी दूर जाने के बाद सडक पर एक लाश दिखाई दी जिसके इधर-उधर की जमीन खूनोखून हो रही थी। दसवां बयान हरिहरपुर गढी के अन्दर राजा करनसिंह अपने दिवानखाने में दो मुसाहयों के साथ बैठा कुछ बातें कर रहा है। सामने हाथ जोडे दो जासूस भी खडे महाराज के चेहरे की तरफ देख रहे है। उन दानों मुसाहयों में से एक का नाम शभूदत्त और दूसरे का नाम सरूपसिंह है। राजा० रामदास के गायब होने का तरवुद तो था ही मगर हरीसिह का पता न लगन से और भी बर्थन हारहा है। शमू० रामदास तो भला एक काम के लिए भेजे गए थे शायद वह काम अभी तक नहीं हुआ इसलिए अटक गए होंगे मगर हरीसिह तो कहीं भेजे भी नहीं गए। सरूप०-जितना बखेडा हे सब नाहरसिह का किया हुआ है। राजा०-वशक ऐसा ही है न मालूम हमने उस कम्बख्त का क्या विगाडा है जो हमार पोछे पड़ा है। यह एसा शान है कि हरदम उसका डर बना रहता है और वह हर जगह मौजूद मालूम होता है। वीरसिका कैदखाने मे धुल जर उसने हमारी महीनों की मेहनत पर मट्टी डाल दी और बच्चन के हाथ स मोहर छीन कर बनी बनाइयात बिगाड़ दी नहीं तो रिआया के सामने धीरतिह को दापी ठहराने का पूरा बन्दाबस्त हो चुका था उस मुहर के जरिए बड़ा कामा और बहुत सच्चा जाल तैयार हाता । वीरेन्द्र वीर १२०५