पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२०४

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सरूप०-सो तो सब ठीक है मगर कुँअर साहब को आप कब तक छिपाए रहेंगे, आखिर एक न एक दिन भेद खुल ही जायेगा। राजाo-तुम बेवकूफ हो जिस दिन सूरजसिह को जाहिर करेंगे उस दिन अफसोस के साथ कह देंगे कि भूल हो गई और बीरसिह को कतल करने का महीनों अफसोस कर देंगे मगर वह किसी तरह हाथ लगे भी तो अभी तो नाहरसिंह छुडा ले गया। सरूप०-यहॉ की रिआया बीरसिह से बहुत ही मुहय्यत रखती है, उसे इस बात का विश्वास होना मुश्किल है कि बीरसिह ने कुमार सूरजसिह को मार डाला। राजा०-इसी विश्वास को दृढ करने के लिए तो मोहर चुराने का बन्दोबस्त किया गया था मगर वह काम ही नहीं हुआ। शभू०-यहाँ की रिआया ने बड़ी धूम मचा रक्खी है एक बेचारा हरिहरसिंह आपका पक्षपाती है जो रिआया की कुमेटी का हाल कहा करता है अगर आप बडे बडे सर्दारों और जमीदारों को जो आपके खिलाफ कुमेटी कर रहे है बन्दोबस्त न करेंगे तो जरूर एक दिन वे लोग बलवा मचा देंगे। राजा०-उनका क्या बन्दोबस्त हो सकता है ? अगर उन लोगों पर बिना कुछ दोप लगाये जोर दिया जाततो भी गदर का डर है हिाय यह सबखरावी नाहरसिह की बदौलत है अफसोस, अगर लडकपन ही में हम वीरसिह को खतम करा दिये होते तो काहे को यह नौबत आती क्या जानते थे कि वह लोगों का इतना प्रेमपात्र बनेगा? उसने तो हमारी कुल रिआया को मुट्ठी में कर लिया। अब नेपाल से खडगसिह तहकीकात करने आये हैं, देखें वे क्या करते हैं। हरिहर की जुबानी तो यही मालूम हुआ है कि यहाँ के रईसों ने उन्हें अपनी तरफ मिला लिया। सरूप०-आज की कुमेटी से पूरा-पूरा हाल मालूम हो जायेगा । राजा-बच्चनसिह वीस पचीस आदमियों को साथ लेकर उसी तरफ गया हुआ है देखें वह क्या करता है। सरूप०-खडगसिह तीन चार सौ आदमियों के साथ हैं अगर अकेले-दुकेले होते तो खपा दिये जाते। राजा०-(हस कर) तो क्या अब हम उन्हें छोड़ देंगे? अजी महाराज नेपाल तो दूर हैं खडगसिह के साथियों तक को तो पता लगेगा ही नहीं कि वह कहाँ गया या क्या हुआ। हाँ सुजनसिह के बारे में भी अब हमको पूरी तरह सोच-विचार कर लेना चाहिए। सलाह विचार करते-करते रात का ज्यादा हिस्सा बीत गया और केवल घण्टा भर रात बाकी रह गई। महाराज की बाते खत्तम भी न हुई थीं कि सामने का दरवाजा खुला और एक लाश उठाए हुए चार आदमी कमरे के अन्दर आते हुए दिखाई पडे। ग्यारहवां बयान अब हम थोडा हाल तारा का लिखते है जिसे इस उपन्यास के पहिले बयान में छोड आये हैं। तारा विल्कुल ही वेबस हो चुकी थी उसे अपनी जिदगी की कुछ भी उम्मीद न रही थी। उसका बाप सुजनसिह उसकी छाती पर बैठा जान लेने को तैयार था और तारा भी यह सुनकर कि उसका पति बीरसिंह अब जीता न बचेगा मरने के लिए तैयार थी, मगर उसकी मौत अभी दूर थी।यकाएक दो आदमी वहाँ आ पहुंचे जिन्होंने पीछे से जाकर सुजनसिंह को तारा की छाती पर से खैच लिया। सुजनसिंह लडने के लिए मुस्तैद हो गया और उसने वह हर्वा जो तारा को जान लेने के लिए हाथ में लिए हुए था एक आदमी पर चलाया उस आदमी ने भी हर्षे का जवाब खजर से दिया और दोनों में लडाई होने लगी। इतने ही में दूसरे आदमी ने तारा को गोद में उठा लिया और लड़ते हुए अपने साथी को विचित्र भाषा में कुछ कह कर बाग के बाहर का रास्ता लिया। इस कसमकसी में बेचारी तारा डर के मारे एक दफे चिल्ला कर बेहोश हो गई और उसे तनोबदन की सुध न रही। जब उसकी आँख खुली उसने अपने को एक साधारण कुटी में पाया सामने मन्द-मन्द धूनी जल रही थी और उसके आगे सिर से पैर तक भस्म लगाये वडी-बड़ी जटा और लाबी दादी में गिरह लगाये एक साधू बैठा था जो एकटक तारा की तरफ देख रहा था। उस साधू की पहिली आवाज जो तारा के कान में पहुंची यह थी. “बेटी तारा. तू डर मत अपने को सभाल और होशहवास दुरूस्त कर।' यह आवाज ऐसी नर्म और ढाढस देने वाली थी कि तारा का अभी तक धडकने वाला कलेजा ठहर गया और वह देवकीनन्दन खत्री समग्र १२०६