पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२०६

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अहिल्या के माता-पिता कौन और कहाँ है और उसका कोई रिश्तेदार है या नहीं। मैंने कई दफे अहिल्या से पूछा कि तेरे माता-पिता कौन है और कहा है मगर इसके जवाब में उसने केवल ऑसू गिरा दिया और मुंह से कुछ न कहा। मेरी और वीरसिंह की जान पहिचान लडकपन ही से थी। वह महल में बराबर राजा के साथ आया करते थे, अक्सर अहिल्या के पास भी जाकर कुछ देर बैठा करते थे और वह उन्हें भाई के समान मानती थी। मैं अहिल्या को बीवी कह कर पुकारती थी। अहिल्या और वीरसिंह दोनों ही को राजा माना करते थे बल्कि अहिल्या ही के कहने से मेरी शादी वीरसिंह के साथ हुई। साधूळ-अहिल्या का नाम अहिल्या ही था या कोई और नाम भी उसका था? ताराo-उसका कोई दूसरा नाम कभी सुनने में नहीं आया मगर एक दिन एक भयानक घटना के समय मुझे मालूम हो गया कि उसका एक दूसरा नाम भी है। साधू०-वह क्या नाम है? तारा-सो में आगे चल कर कहूँगी,अभी आप सुनते जाइये । साधू०-अच्छा, कहा ताराo-महारानी ने राजा से कई दफे कहा कि अहिल्या बहुत बड़ी हो गई है उसकी शादी कहीं कर देनी चाहिए मगर राजा ने यह बात मजूर न की। थोडे दिन याद राजा के बर्ताव से महारानी तथा और कई औरतों को मालूम हो गया कि अहिल्या के ऊपर राजा की बुरी निगाह पडती है और इसी सवव से वे उसकी शादी नहीं करते। साधू०-हरामजादा पाजी बेईमान कहीं का हॉ तब क्या हुआ ? ताराoयह बात रानी को बहुत बुरी लगी और इसके सवव कई दफे राजा से झगड़ा भी हुआ, आखिर एक दिन राजा ने खुल्लमखुल्ला कह दिया कि अहिल्या की शादी कभी न की जायेगी। साधू०-अच्छा तय क्या हुआ? तारा०-यह वात रानी को तीर के समान लगी और अहिल्या का चेहरा भी सूख गया और डर के मारे राजा के सामने जाना बन्द कर दिया। तीन चार दिन बाद अहिल्या यकायक महल से गायय हो गई। राजा ने बहुत ऊधम मचाया, कई लौडियों को मारा-पीटा, कितनों ही को महल से निकाल दिया. रानी से भी बोलना छोड दिया मगर अहिल्या का पता नलगा साधू०-क्या अभी तक अहिल्या का पता नहीं है? ताराo-आप सुने चलिये में सब कुछ कहती हूँ। कई वर्ष के बाद एक दिन किसी लौडी से चुपके चुपके रानी को यह कहते मैने सुन लिया कि 'अब तो अहिल्या को दूसरा लडका भी हुआ, पहिली लडकी तीन वर्ष की हो चुकी, ईश्वर करे उसका पति जीता रहे, सुनते है बड़ा ही लायक है और अहिल्या को बहुत चाहता है।" अहिल्या के सामने ही मेरी शादी वीरसिंह से हो चुकी थी और मैं अपने ससुराल में रहने लग गई थी। अहिल्या के गायब होने का रज मुझे और वीरसिह को भी हुआ था और इसी से मैंने महल में आना-जाना ही कम कर दिया था मगर जिस दिन रानी की जुबानी ऊपर वाली बात सुनी। । एक तरह की खुशी हुई। मैंने यह हाल बीरसिंह से कहा, वह भी सुन कर बहुत खुश हुए और समझ गये कि रानी ने उस कहीं भेजवा कर उस की शादी करा दी थी। उसके बाद यह भेद भी खुल गया कि रानी ने उसे अपने नैहर में भेज दिया था। साधूल-तुम्हारे ससुराल में कौन-कौन है ? तारा०-नाम ही को ससुराल है असल मे मेरा सच्चा रिश्तेदार वहाँ कोई भी नहीं हो पाँच सात मर्द और औरतें है, हमारे पति उनमें से किसी को चाचा किसी को मौसा किसी को चाची इत्यादि कह कर पुकारा करते हैं, असल में उनका कोई भी नहीं है उनके माँ-बाप उनके लड़कपन में ही मर गए थे और राजा ने उन्हें पाला था। राजा उन्हें बहुत मानते थे मगर फिर भी वे कहा करते थे कि राजा वडा ही बेईमान है, एक न एक दिन हमसे और उससे बेहतर बिगडेगी। साधू०-खैर तब क्या हुआ तारा०-बहुत दिन बीत जाने पर एक दिन रानी ने मिलने के लिए मुझे महल में बुलाया। मै गई और तीन-चार दिन तक वहॉ रही. इसी बीच में एक रात को मै महल में लेटी हुई थी मेरा पलग रानी की मसहरी के पास विछा हुआ था, इधर- उधर लौडियों भी सोई हुई थीं रानी भी नींद में थीं, मगर मुझे नींद नहीं आ रही थी। यकायक यह आवाज मेरे कान में पड़ी-'हाय आखिर बेचारी अहिल्या फॅस ही गई। चलो दीवानखाने के ऊपर वाले छेद से झॉक कर देखें कि किस तरह ? देवकीनन्दन खत्री समग्र १२००