पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२०७

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बेचारी की जान ली जाती है फिर आकर रानी को उठावें। इस आवाज के सुनते ही मैं चौक पड़ी कलेजा धकधक करन लगा, देतायी न मुझ किसी तरह दमन लने दिया में चारपाई पर से उठ बैठी और कुछ सोचविचार कर ऊपर की छत पर चली गई और धीरे-धीरे उस पाटन की तरफ चली जो दीदानसाने की छत से मिली हुई थी। कमर भर ऊँची दीवार फांद कर वहाँ पहुंची। वहाँ छठघाट कई राय एस थे जिनमें झॉक कर देखने से दीवानखान की कुल कैफियत मालूम हा सकती थी। मेरे जान क पहिल ही दा और वहाँ पहुंची हुई थीं। सामू०-३ दानों कौन थी? ताराo-दोनों रानी की लौडियों थीं, मुझे दखते ही मेरे पास पहुंची और हाथ जोडकर बाली- 'ईश्वर के वास्ते आप काई ऐत्ता काम न करें जिसमें हम लोगों की और आपकी जान जाय अगर राजाजान जायेगा या किसी न दखल्याता विना जान से मारेन छोडेगा ! इसके जवाब में मैंने कहा- 'तुम खातिर जना रक्खो किसी को कुछ भी खदर न हागी। यह दीवानखाना पुराना था जब स राजा ने अपन लिए दूसरा दीवानखाना बनवाया तव स वर्षे हुए यह साली ही पड़ा रहता था. इतने कभी चिराग भी नहीं जलता था लागों का ख्याल था कि इसमें भूत-प्रेत रहत है इसलिए कोई उत्त तरफ जाता भी न था। मैने सूराख में झाँक कर देखा सामने हो बेचारी अहिल्या सिर झुकाय यैठी आसू गिरा रही थी एक तरफ कोने में पॉच-चार कुदाल जमीन खोदने वाले पड़े था दूसरी तरफ मट्टी के बीस-पच्चीस घडजल से भर पड़े हुए या अहिल्या के सामने राजा खडा उसी की तरफ देख रहा था, राजा के पीछ मरा याप सुजनसिंह और हरीसिंह राजा के मुत्ताहनखड़ थे। मेरे पाप की गोद में एक लड़की थी जिसकी उम्र लगभग तीन वर्ष के हागी। हाय उसकी सूरत याद पड़ने से रोगटे खडे हो जाते है। इसकी सूरत किसी तरह भूलाये नहीं भूलती। राजा ने अहिल्या से कहा- सुन्दरी तु मेरी यात न मानेगी? तू मेरी होकर न रहगी? माघू०-क्या नान लिया सुन्दरी ! तारा०-जी हाँ सुन्दरी उत्ती समय मुझे मालूम हुआ कि उसका नाम सुन्दरी भी है। साधू०-हाय, अच्छा तब क्या हुआ तारा०-सुन्दरी न सिर हिला कर इन्कार किया। 7 साचू०-तब? तारा०-राजा ने कहा 'सुन्दरी अगर तूमरी बात न मानेगी तो पछताएगो मै जबर्दस्ती तुझे अपने कब्ज में करक अपनी ख्वाहिश पूरी कर सकता हूँ, मगर मैं चाहता हूँ कि एक दिन के लिए क्या हमराा के लिए तू मरी हो जा। अगर तरी इच्छा है तो तेर लिए रानी का भी मार डालने को में तैयार हूँ और तुझ अपनी रानी बना सकता हूँ ! इसके जवाब में सुन्दरी न कहा अर दुष्ट. तू बेहूदी बातें क्यों यकता है अगर तू साक्षात इन्द्र भी बनके आद ता मेरे दिल को नहोफर साधूo-शापाश, अच्छा तब क्या हुआ?' तारा०-राजा ने मेरे पिता की तरफ कुछ इशारा किया उसने लड़की को जिसे वह गोद में लिए हुए था.चादर से पाँच खूटी के साथ उलटा लटका दिया और खजर निकाल सामन जा खडा हुआ। लडकी चारा पिल्लान लगी और सुन्दरी की आँखो स नी ऑसू की धारा यह चली। राजा ने फिर पुकार कर कहा 'सुन्दरो अब मान जा नहीं तो तेरी इसी लड़की के खून स तुझ नहलाऊँगा । हाय क्या में अपन पति क साथ दगा कर्य और उसकी र दूसर की ! यह कभी नहीं हो सकता ! राजा ने हरीसिह और मेरे पिता की तरफ कुछ इशारा किया, हरीसिह ने एक कटारा लड़की क नीचे रखदेवा भर पिता ने खजर से लड़की का काम तमान करना चाहा मगर न मालूम कहाँ स उसके दिल मे दया का सबार शकि खजर उसके हाथ से गिर पड़ा। राजा का उसकी अपस्था देख क्राप रद आया, तलवार वैध कर मेरे पिता के पास पहुंचा और बोला 'हरामजाद क्या मरी यात तू नहीं सुनता परदार होशियार हो जा, इस लाली का खून इस स्टोर में नर कर मुझे दे मै जबदस्ती हरामजादी को पिलाऊगा ! लाचार मेरे बाप ने फिर खजर उठा लिया। और उसका दत्ता (कला) इस कार सवारी धितोड़की ॐतर में मारा कि सर फुट की तरह फट गया और सून का तरारा बहने लगा यह हाल दवरदेवारी सुन्दरी मिल और हाय करके बेहोश हो गई।मेर भी हदास जात २६ और में मोबाश हाकर जमीन पर गिर पड़ी पर भर वीरेन्द्र वीर १२०९