पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२०९

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est मुबारकबाद दता हूँ। राजा०-वह क्या ? खडग०-आपके भारी दुश्मन नाहरसिह को भी इस समय मैंने गिरफ्तार कर लिया। राजा०-(खुश होकर) वाह वाह यह बड़ा काम हुआ इसके लिए मैं जन्म भर आपका अहसान मानूंगा वह कहाँ है? खडग०-सिपाहियों के पहरे में अपने लश्कर मेज दिया है। मै मुनासिब समझता हूँ कि बीरसिह को भी आप मेरे हवाले कीजिए और अपने आदमियों को हुक्म दीजिए कि इसे उठा कर मेरे डेरे में पहुँचा आवें। कल में एक दर्यार करेंगा जिसमें यहाँ की कुल रिआया को हाजिर हाने का हुक्म होगा। उसी में महाराज नेपाल की तरफ से आपको पदवी दी जायेगी और बिना कुछ ज्यादे पूछताछ किए इन दोनों को मैं अपने हाथ से मालेगा। इसके सिवाय आपके दो घार दुश्मन और भी है उन्हें भी मैं उसी समय फॉसी का हुक्म दूंगा। राजा०-यह आपको कैसे मालूम हुआ कि मरे और भी दुश्मन खडग०-महाराज नेपाल ने जब मुझका इधर रवाना किया तो ताकीद की थी कि करनसिह की मदद करना और खोज कर उनके दुश्मनों को नारना । हरीपुर की रिआया बडी बेईमान और चालबाज है उन लोगों को चिढाने के लिए मरी तरफ से करनसिह को यह पत्र और अधिराज की पदवी देना। उसी हुक्म के मुताबिक मैने यहाँ पहुँच कर यहाँ के जमीदारों और सर्दारों से मेल पैदा किया और उनकी गुप्त उमेटी में पहुँचा जो आपके विपक्ष में हुआ करती है बस फिर आपके दुश्मनों का पता लगाना क्या कठिन रह गया । राजा०-हिसकर) आपने मेर ऊपर बड़ी मेहरबानी की मैं किसी तरह आपके हुक्म के खिलाफ नहीं कर सकता आप मुझे अपना तावेदार ही समझिए। क्या आप बता सकते है कि मेरे वे दुश्मन कौन हैं ? खडग०-इस समय में नाम न बताऊंगा, कल दर्बार में आपके सामने ही सभों को कायल करक फॉसी का हुक्म दूंगा वे लोग भी ताज्जुब करेंगे कि किस तरह उनके दिल का भेद ले लिया गया । खडगसिह जव यकायक दीवानखान में राज्यक सामने जा पहुंचातो राजा बहुत ही घबडाया और डरा. मगर उसने तुरंत अपन को सभाला और जी में सोचा कि खडगसिह के साथ जाहिरदारी करनी चाहिए अगर मौका देखूगा तो इसी समय इन्हें भी खपा कर बखेडा ते करूँगा किसी को कानोकान खबर भी न होगी। उधर खड़गसिह के दिल में भी यकायक यही यात पैदा । उसने सोचा कि मैं कवल तीन आदमी साथ लेकर यहाँ आ पहुँचा सो ठीक न हुआ कहीं एसा न हो कि राजा मरे साथ दगा करे क्योंकि अभी थोडी ही देर हुई है इस बात का पता लग चुका है कि कमेटी में एक आदमी राजा का पक्षपाती भी घोखा देकर घुसा हुआ है उसकी जुबानी मेरी कुल कार्रवाई राजा को मालूम हा गई होगी, ताज्जुब नहीं कि वह इस समय दगा करे। इन बातों को सोच कर बुद्धिमानी खडगसिह ने फौरन अपना ढग बदल दिया और मतलब भरी बातों के फेर में राजा को ऐसा फसा लिया कि वह चूं तक न कर सका। उसे विश्वास हो गया कि खडगसिंह मेरा मददगार है इससे किसी तर उज करना मुनासिब नहीं। उसने तुरत अपने आदमियों को हुक्म दिया कि वोरपिंह को उठाकर सेनापति खडगसिह के डेरे पर पहुंचा ओओ।खडगसिह भी दीवानरखाने के नीचे उतरे और सड़क पर पहुँच कर उन्होंने अपने साथी तीन वहादुरों में से दो को मरहम पट्टी की ताकीद करक वीरसिंह के साथ जाने का हुक्म दिया तथा एक को अपने साथ लेकर उस तरफ बढे जहॉ नाहरसिंह को छोड़ आए थे। उस मकान में जिसमें कमेटी हुई थी थोडी दूर इधर ही खडगसिंह न नाहरसिंह को पाया । इस समय नाहरसिह अकेला न था बल्कि पाँच आदमी और भी उसके साथ थे जिन्हें देख कर खडगसिंह ने पूछा कौन है नाहरसिंह । इसके जवाब में नाहरसिह ने कहा 'जी हाँ!" खडग०-ये सब कौन है? नाहरo-मेरे साथियों में से जो इधर-उधर घूम रहे थे और इस इन्तजार में थे कि समय पड़ने पर मदद दें। खडग० इतने ही है या और भी? नाहर०-और भी है यदि चाहूँ तो आधी घडी के अन्दर सौ बहादुर इकट्ठे हो सकते हैं । खड़ग०-बहुत अच्छी बात है क्योंकि आज यकायक लडाई हो जाना ताज्जुब नहीं। नाहर-बीरसिंह का पता लगा? वीरेन्द्र वीर १२११ !