पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२११

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ora फिर क्रोध ने सों का चेहरा लाल कर दिया और सभों ने दाँत पीस कर कहा कि हम लोग ऐसे नालायक राजा की तावेदारी नहीं कर सकते, हम लोग अपने हाथों से राजा को सजा देंगे और असली राजा करनसिंह के लड़के विजयसिह (नाहरसिह) को यहाँ की गद्दी पर बैठावेंगे, हम लोग चन्दा करके सर्प बटोरेंगे और फौज तैयार करके विजयसिह और बीरसिंह को सार बनायेंगे, इत्यादि इत्यादि।" जोश में आकर बहुत सी बातें सरदारों ने कहीं और इसी समय खडगसिंह ने भी अपनी फौज के सहित जो नेपाल से साथ लाए थे,बीरसिंह और नाहरसिंह की मदद करना कबूल किया । नाहर०–मेरी बहन सुन्दरी का हाल थोडा सा और बाकी है जिसे आप चाहें तो सुन सकते हैं. यह हाल मुझे इनकी (अपने बगल में बैठे हुए साथी की तरफ इशारा करके) जुवानी मालूम हुआ है। सर्दार०-हाँ हॉ जरूर सुनेंगे ये कौन है ? नाहर०-यह अपना हाल खुद आप लोगों से बयान करेंगे। खडग०-मगर इनका चाहिए कि अपने चेहरे से नकाब हटा दें। नाहरसिह के ये साथी-महाशय जो उनके बगल में बैठे हुए थे वे ही बाबू साहब थे जो गाद में एक लड़के को लेकर सुन्दरी से मिलने के लिए किल के अन्दर तहखाने में गये थे। इन्हें पाठक अभी भूले न होंगे। खडगसिंह के कहते ही बाबू साहब ने 'कोई हर्ज नहीं कह कर अपने चेहरे से नकाव हटा दी और बचारी सुन्दरी का बाकी क्रिम्सा कहने लगे। इन्हें इस शहर में कोई भी पहिचानता नहीं था। वायू साहब०-सुन्दरी अहिल्या के नाम से बहुत दिनों तक इस नालायक राजा के यहा रही। राजा की पाप भरी आँखों का अन्दाज रानी को मालूम हो गया और उसने चुपके से सुन्दरी को अपने नैहर भेज कर बाप को कहला भेजा कि उसकी शादी करा दी जाय। सुन्दरी की शादी मरे साथ की गई और वह बहुत दिनों तक मेरे घर में रही, एक लड़की और उसके बाद एक लडका भी पैदा हुआ। तब तक राजा को सुन्दरी का पता न लगा मगर वह खोज लगाता ही रहा आखिर मालूम हाने पर उसने सुन्दरी का चुरा मंगाया और उसके साथ जिस तरह का बर्ताव किया आप बहादुर विजयसिह की जुबानी सुन ही चुके हैं। बेचारी लडकी जिस तरह मारी गई उसे याद करने से कलेजा फटता है। सुन्दरी को राजी करन के लिए राजा ने बहुत कुछ उद्योग किया मगर उस बेचारी ने अपना धर्म न छोडा । आखिर राजा ने उसे गुप्त रीति से किले के अन्दर के एक तहखाने में बन्द किया और उसकी लडकी का खून एक कटोर में भर कर और मसाले से जमकर एक चौकी पर उसके सामने रख दिया जिससे वह रात-दिन उसे देखा करे ओर कुढा कर आप लोग खूप समझते है कि उस बेचारी की क्या हालत होगी और उस कटोरे भर खून की तरफ देख-देख कर उसके दिल पर क्या गुजरती होगी, मगर वाह रे सुन्दरी फिर भी उसने अपना धर्म न छोडा ॥ बाबू साहब ने इतना ही कहा था कि सभों के मुंह से वाह रे सुन्दरी शावाश शाबाश धर्म पर दृढ रहने वाली औरत तेरे जैसी कोई काहे को होगी । की आवाज आने लगी। बाबू साहब ने फिर कहना शुरू किया- वायू साहव०-जब सुन्दरी कैदखाने में वेवस की गई तो कई लौडियाँ उसकी हिफाजत के लिए छोड़ी गई। उनमें से एक लौडी सुन्दरी पर दया करके और अपनी जान पर खेल के वहाँ से निकल भागी। उसने मेरे पास पहुँच कर सब हाल कहा और अन्त में उसने सुन्दरी का यह सदेसा मुझे लाकर दिया कि लडके को लेकर तुम्हें एक नजर देखने के लिए बुलाया है, जिस तरह वन आकर मिलो सुन्दरी का हाल सुन मेरा कलेजा फट गया। मैं इस शहर में आया और उससे मिलने का उद्योग करने लगा। इस फेर में बरस भर से ज्यादे बीत गया बहुत सा रूपया खर्च किया और कई आदमियों को अपना पक्षपाती बनाया आखिर दो ही चार दिन हुए है कि किसी तरह उस छोटे बच्चे को जा नालायक के हाथ से बच गया और मरे पास था लेकर किले के अन्दर तहखाने में गया और उससे मिला इत्तिफाक से उसी दिन नाहरसिंह ने थीरसिंह को कैदखाने से छुडाया था और यह हाल मुझे मालूम था बल्कि वीरसिह के छुडाने की खबर कई पहरे वालों को भी लग गई थी मगर वे लोग राजा के दुश्मन और बीरसिह के पक्षपाती हो रहे थे इसलिए नाहरसिह के काम में विघ्न न पड़ा। सुन्दरी जानती थी कि धीरसिंह उसका भाई है मगर राजा के जुल्म ने उसे हर तरह से मजबूर कर रखा था। वीरसिंह के कैद होने का हाल सुन कर सुन्दरी और भी वचैन हुई मगर जब मैने उसके छूटने का हाल कहा तो कुछ खुश हुई 1मै तहखाने में सुन्दरी से बातचीत कर ही रहा था कि राजा का मुसाहब वेईमान हरीसिह वहाँ जा पहुंचा। उस समय सुन्दरी मेरी और अपनी जिन्दगी स नाउम्मीद हो गई। आखिर हरीसिह उसी समय मुझसे लड़ कर मारा गया और में वीरेन्द्र वीर १२१३