पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२१६

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e काई वडी वात नहीं मगर मैं चाहता ता आज तक कभी का उस यमलोक पहुंचा दिये हाता, मगर मै आज का सा समय ढ़ रहा था और चाहता था कि वह तभी मारा जाय जब उसकी हरमजदगी लोगों पर साबित हो जाय और लोग भी समझ जॉय कि बुरे कामों का फल ऐसा ही होता है। खड़ग०-(नाहरसिह से) हाँ आपने कहा था कि बाबाजी ने तुमसे मिलना मजूर कर लिया, घण्टे में यहाँ जरूर आवेंगे अभी तक आए नहीं। नाहर०-वे जरूर आवेंग। इतने में दर्शन ने आकर अर्ज किया कि एक माधू वाहर खड है जो हाजिर हुआ चाहत है । इतना मुनत ही खडगसिह उठ खडे हुए और सभों की तरफ देख फर वाले एस परोपकारी महात्मा की इज्जत सभों को करनी चाहिये। सबके सब उठ खड हुए ओर आग बढकर बडी इज्जत म वायाजी को ले आये और सबसे ऊँचे दर्जे पर बैठाया! • बावाo-आप लाग व्यर्थ इतना कष्ट कर रहे है । मैं एक अदना फकीर इतनी प्रतिष्ठा के योग्य नहीं हूँ। खडग०-यह कहन की कोई आवश्यकता नहीं आपकी तारीफ नाहरसिह की जुबानी जो कुछ सुनी ई भर दिल बाया०-अच्छा इन बातों को जाने दीजिए और यह कहिए कि दार के लिए जा कुछ दन्दोवस्त आप लोग किया चाहते थे वह हो गया या नहीं? खडग०-सव दुरुस्त हो गया कल रात को राजा के बड याग में दर्यार होगा। वावा०-मरी इच्छा हाती है कि दार में चलू। खडग०-आप खुशी से चल सकते है रोकन वाला कोन है ? बावा०-मगर इस जटा दाढी मूछ और मिट्टी लगाए हुए बदन से वहाँ जाना बमोक होगा। खडग०-कोई वमोके न हागा। बाबा०-कगा हर्ज होगा अगर एक दिन के लिए मैं साधू का भेष घाड हूँ और सर्दारी ठाठ बना लू ! खडग०-(हस कर) इसमें भी कोई हर्ज नहीं साधू और राजा समान समझ जाते है ॥ बाबा०-और ता काई कुछ न कहेगा मगर नाहरसिह स चुप न रहा जायेगा। नाहर०-(हाथ जाडकर) मुझे इसमें क्यों उज़ होगा? बावा०-क्यों का स्थय तुम नहीं जानते और न में कह सकता हूँ मगर इसमें कोई शक नहीं कि जब मै अपना सारी ठाठ बनाऊँगा ता तुमस चुप न रहा जायेगा। नाहर०-न मालुम आप क्यों ऐसा कह रहे है। वावा०-(खडगसिह स) आप गवाह रहिय नाहर कहता है कि में कुछ न बोलूंगा। खडग० मै खुद हैरान हूँ कि नाहर क्यों बोलेगा " याबा०-अच्छा फिर हजाम को बुलवाइये अभी मालूम हो जाता है। लेकिन आप और नाहर थोडी दर के लिए मरे साथ एकान्त में चलिए और हजाम को भी उसी जगह आने का हुक्म दीजिए। आखिर ऐसा ही किया गया। बाबाजी खडगसिह, और नाहरसिह एकान्त में गए हजाम भी उसी जगह हाजिर हुआ। वावाजी ने जटा कटवा डाली दाढी मुडवा डाली, और मूओं के बाल छोटे-छोटे करवा डाले। नाहरसिंह और खडगसिह सामने बैठे तमाशा देख रहे थे। बाबाजी के चहरे की सफाई होते ही नाहरसिह की सूरत बदल गई चुप रहना उसके लिए मुश्किल हो गया वह - घबरा कर बाबाजी की तरफ झुका ! बाबा०-हॉ हॉ, देखो !मैने पहिल ही कहा था कि तुमसे चुप न रहा जायेगा । नाहर०-यशक मुझसे चुप न रहा जायेगा ।चाहे जो हो मैं बिना बोले कभी नहीं रह सकता । खडग०-नाहरसिंह यह क्या मामला है? नाहर नहीं नहीं मैं बिना बोले नहीं रह सकता । बावा०-यह तो मे पहिले ही से समझे हुए था खैर हजाम को विदा हो लेने दो केवल हम तीन आदमी रह जाय तो जो चाह बोलना। देवकीनन्दन खत्री समग्र १२१८