पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२१८

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आदमी मौजूद थे जिनमें पाँच सो राजा की फोज थी और याकी रिआया । जव दर अच्छी तरह भर गया खडगसिह ने अपनी कुर्सी से उठकर ऊँची आवाज में कहा - मैं महाराज नेपाल का सेनापति जिस काम के लिए यहाँ भेजा गया हूँ उसे पूरा करता हूँ। आज का दर्बार केवल दो कामों के लिए किया गया है, एक तो इस राज्य के दिवान बीरसिह का जिसके ऊपर राजकुमार का खून साचित हो चुका है फैसला किया जाय दूसरे राजा करनसिह का अधिराज की पदवी दी जाय। इस समय लोग इस विचार में पडे होंगे कि बीरसिह जिस पर राजकुमार के मारने का इल्जाम लग चुका है विना हथकडी वेडी यहाँ क्यों दिखाई देता है-इसका जवाव में यह देता हूँ कि एक तो बीरसिह यहाँ के राजा का दीवान है,दूसरे इस भरे हुए दर्वार में से किसी तरह भाग नहीं सकता तीसरे परसों राजा के आदमियों ने उस बहुत जखमी किया है जिससे वह खुद कमजोर हो रहा है चौथे वीरसिह को इस बात का दावा है कि वह अपनी बेकसूरी साबित करंगा अस्तु बीरसिह को हुक्म दिया जाता है कि उसे जो कुछ कहना हो कहे। इतना कह कर खडगसिह बैठ गए और बीरसिंह ने अपनी कुर्सी से उठकर कहना शुरू किया आप लोग जानते है और कहावत मशहूर है कि जिस समय आदमी अपनी जान से नाउम्मीद हाता है तो जा कुछ उसके जी में आता है कहता है और किसी से नहीं डरता । आज मेरी भी वही हालत है। यहाँ के राजा करनसिह ने राजकुमार के मारने का बिल्कुल झूठा इलजाम मुद्दा पर लगाया है। उसन अपने लड़के को तो कही छिपा दिया है और गरीब रिआया का खून करके मुझे फंसाना चाहता है। आप लोग जरूर कहेंगे कि राजा ने ऐसा क्यों किया? उसके जवाब में मैं कहता हूँ कि राजा करनसिह असल में मेरे बाप के खूनी है। पहिले यह मेरे बाप का गुलाम था मौका मिलने पर इसने अपने मालिक को मार डाला और अब उसके बदले में राज्य कर रहा है। पहिले राजा को मेरा डर न था मगर जब से नाहरसिंह ने राजा का सलाना शुरू किया है और यहाँ की रिआया मुझे मानने लगी है तभी से राजा को मेर मारने की धुन सवार हुई है। नाहरसिंह भी यफायदा राजा को नहीं सताता वह मेरा बड़ा भाई है और राजा से अपने बाप का बदला लिया चाहता है । (करनसिह करनसिंह रादू, नाहरसिंह सुन्दरी तारा और अपना कुल किस्सा जो हम ऊपर लिख आये हैं खुलासा कहने के बाद) अब आप लोग उन दोनों बातों का अर्थात एक ला मुझ पर झूठा इल्जाम लगाने का और दूसर मेरे पिता के मारने का सबूत चाहेंगे। इनमें से एक बात का सबूत तो मेरा बड़ा भाई नाहरसिह देगा। जिसका असली नाम विजयसिंह है और इसी दर्यार में मौजूद है तथा सिवाय राजा के और किसी का दुश्मन नहीं है और दूसरी बात का सबूत कोई और आदमी दगा जो शायद यहीं कहीं मौजूद है। इन बातों का सुनते ही चारों तरफ से वाही त्राही की आवाज आने लगी। राजा के ता होश उड गए! अव राजा को विश्वास हो गया कि यह दर्धार केवल इसी लिए लगया गया है कि यहाँ कुल रिआया के सामने मेरा कसूर साबित हो जाय और मै नालायक और बेईमान ठहराया जाऊँ यह सिंहासन भी शायद इसलिए रखवाया गया है कि इस पर रिआया की तरफ से नाहरसिह या बीरसिह बैठाया जाय । आफ अब किसी तरह जान बचती नजर नहीं आती मेिरे कर्मो का फल आज पूरा हुआ चाहता है अगर में अपनी फौज का इन्तजान न करता ता मुश्किल हो चुकी थी लेकिन अब तो एक दफे दिल खोल के लडूंगा। लेकिन जरा ठहरना चाहिए देखें वह अपनी दोनों बातों का सबूत क्या पेश करता है। नाहरसिंह कौन है ? सबूत लेकर आगे बढे तो देखें उसकी सूरत कैसी है ? राजा इन सब बातों को सोचता ही रहा उधर बीरसिंह की यात समाप्त होते ही नाहरसिंह जिसका नाम अय बिजयसिंह लिखेंगे अपनी कुर्सी से उठा और वह चिट्ठी जो उसने रामदास की कमर से पाई थी खडगसिंह के हाथ में यह कह कर दे दी कि एक सबूत तो यह है । खडगसिह ने उस चिट्टी को खडे हाकर जोर स सभों को सुना कर पढा और चिट्ठी वाला हाथ ऊँचा करके कहा एक बात का सबूत तो पक्का मिल गया इस चिट्ठी पर राजा के दस्तखत के सिवाय उसकी मुहर भी है जिससे वह किसी तरह इन्कार नहीं कर सकता है। चिट्ठी को सुनते ही चारों तरफ से आवाज आने लगी लानत है ऐसे राजा पर । लानत है एसे राजा पर ।। खडगसिह अपनी कुर्सी पर बैठे ही थे कि बाबाजी उठ खडे हुए मुँह से नकाब हटा कर सिहासन के पास चले गये, और जोर से बोले- दूसरी बात का सबूत मै हूँ (सभा की तरफ देख कर) राजा तो मुझे देखते ही पहिचान गया होगा कि देवकीनन्दन खत्री समग्र १२२०