पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२१९

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६ ch नै फलाना हूँ मगर आप लोग यह सुनकर घबडा जायेंग कि वीरसिह का बाप करनसिह जिसे राजा ने जहर दिया था जिसका किस्सा आप लोगों को सुना चुका है मैं भी हूँ। मेरी जान बचाने वाले का भाई भी इस शहर में मौजूद है हो यदि राजा का जाश कोई राक सके तो में आप लोगों को अपना विचित्र हाल सुनाऊँ मगर ऐसी आशा नहीं है। येईमान राजा की जल्दबाजी आप लोगों का मेरा किस्सा सुनने न देगी दखिए देखिए यह बईमान कुर्सी से उठकर मुझ पर वार किया चाहता है निमकहराम और विश्वासघाती को अब भी शर्म नहीं मालूम हाती और वह T! बाबाजी की बाते क्योंकर पूरी हो सकती थीं बइनान राजा का दिल काबू म न था और न वह यही चाहता था कि बाबाजी (करनसिह) यहाँ रहें और उनकी बातें कोई सुन वह बहुत कम दर तक बखुद रहने के बाद एकदम चीख उठा और नयाम (म्यान) स तलवार खींचफर अपने आदमियों का यह कहता हुआ कि 'भारा इन लागों को एक भी बचके न जाने पावे उदा और नवाजी पर तलवार का वार किया। याबाजी न धूमकर अपने को बचा लिया मगर राजा क सिपाही और सर्दार लोग बोरसिह और उसके पक्षपातियों पर टूट पड। लडाई शुरू हा गई और फर्श पर खून ही खून दिखाई दन लगा पर वीरसिह के पक्षपाती बहादुरों के सामन काई ठहरता दिखाई न दिया ! राजा करनसिह के बहुत स आदभी वहाँ मौजूद थे और दा हजार फोज भी बाहर खडी थी जिसका अफसर इसी दर मे था मगर विल्कुल वेकाम। किसी ने दिल खोलकर लडाइ न की एक तो वे लोग राजा के जुल्मों की बात सुन पहिले ही बदिल हा रहे थ दूसर आज की वारदात वीरसिह और सुन्दरी का किस्सा और राजा के हाथ की लिखी चिट्ठी का मजमून सुनकर और राजा को लाजबाव पाकर सभी का दिल फिर गया। सभी राजा के ऊपर दात पीसने लगे। केवल थाडे से आदमीजा राजा के साथ ही साथ खुद भी अपनी जिन्दगी स नाउम्मीद हो चुके थ,जान पर खेल गये और रिआया के हाथों मार गए। इस लडाइ में वायू साहब का ओर राजा करनसिह राठू का सामना हो गया। बाबू साहब न फरनसिह को उठा कर जमीन पर द मारा और उगली डाल कर दोनों आँखें निकाल ली। इस लडाई में सुजनसिह शभूदत्त और सरूपसिह वगेरह भी मारे गये। यह लडाई बहुत देर तक न रही और फौज का हिलन की भी नोबत न आई। खडगसिह ने उसी समय वीरसिंह को जो जल्मी होने पर भी कई आदमियों को इस समय भार चुका था और खून से तर-बतर हो रहा था उसी साने के सिंहासन पर बैठा दिया और पुकार कर कहा - इस समय वीरसिह जिन्का यहा की रिआया चाहती है राज-सिहासन पर बैठा दिये गए। राजा वीरसिंह का हुक्म है कि बस अब लडाइ न हा और सभों की तलवार नयाम मे चली जाय । लडाइ शान्त हा गई वीरसिह को रिआया ने राजा मजूर किया और अध करनसिह को दख-देख कर लाग हसने लगे। सोलहवां बयान दूसर दिन यह बात अच्छी तरह से मशहूर हो गई कि वह वाराजो जिन्हें देखकर करनसिह राटू डर गया था वीरसिंह के वाय करनसिंह थ। उन्हीं की जुबानी मालूम हुआ कि जिस समय राठू न सुजनसिह की मार्फत करनसिह का जहर दिलवाया उस समय करनसिंह क साथियों को राहू न मिला लिया था मगर चार-पांच आदमी ऐसे भी थ जा जाहिर में ता मोका देखकर मिल गए थे पर दिल से उसकी तरफ न थे। जिस समय जहर के असर से करनसिह घेहाश हो गए उस समय जान निकलने के पहिले ही उनके मरने का गुल नचाकर राठू न उन्हें जमीन में गड़वा दिया और तुरत वहाँ सक्च कर गया था। रादू के कूच करते ही धीसिंह नाभी एक राजपूत अपने नौकरों का साथ लेकर जान बूझ के पीछे रह गया। उसने जमीन खोद कर करनसिंह को निकाला और उनकी जान बचाई। जहर के असर ने पॉच बरस तक करनसिह का चारपाई पर डाल रक्खा। वे पाँच बरस तक दूसरे शहर में रह और फिर फकीर हो गय मगर राठू को फिक्र में लगे रहे। जब नाहरसिह का नाम मशहूर हुआ तब हरिहर के पास के जगल न आ बस और नाहरसिह से मुलाकात पैदा की मगर अपना नाम नबताया। करनसिंह को बचाने वाला धनीमिह तो मर गया था मगर उसका छोटा भाइ अनिरूद्धसिंह (रइसों और सरदारो की कमेटी में इसका नाम आ चुका है। इसी शहर में रहता हे जिसकी गिनती रईसों में है। उसको भी इनमें की बहुत सी बाते मालूम है और वह हमेशा वीरसिह का पक्षपाती रहा मगर समय पर ध्यान देकर करनसिह का हाल उसने किसी सन आज रडी खुशी का दिन है कि करनसिंह ने अपने दानों लडक-लडकी और दामाद को नाती सहित पाया और छोटे लडके को सिहासन पर देखा। इस जगह लोग पृछ सकते हैं कि करनसिंह सिंहासन पर क्यों नहीं बैठ या बडे भाई के वीरेन्द्र वीर १२२१