पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रहते छोटे भाई को गद्दी क्यों दी गई? इसके लिए थोडा सा यह लिख दना जरूर है कि जब करनसिह खडगसिह और बिजयसिंह एकान्त में मिले थे तो इस विषय की बातचीत हो चुकी थी करनसिह ने राज्य करने से इन्कार किया था विजयसिंह ने भी कबूल नहीं किया और कहा कि अभी तक मेरी शादी नहीं हुई और न शादी करूँगा ही, अस्तु यह बात पहिले ही से पक्की हो चुकी थी कि वीरसिंह को गद्दी दी जाय । राजमहल से राठू के वे रिश्तेदार जिन्होंने वीरसिह की शरण चाही निकाल कर दूसरे मकान में रख दिए गए और खाने पीने का बन्दोबस्त कर दिया गया। अव राजमहल में वही सुन्दरी जो तहखाने के अन्दर कैद रहकर मुसीबत के दिन काटती थी और तारा जो असली करनसिंह (बाबाजी) के कब्जे में थी रहने लगी मगर राठू के लडके सूरजसिह क कहीं पता न लगा न मालूम वह किसके यहाँ भेज दिया गया था या किस जगह छिपाकर रक्खा गया था। रामदास ने आत्महत्या की । आँख की तकलीफ से पाँच ही सात दिन में रातू यमलोक की तरफ चल बसा और वीरसिह ने बडी नेकनामी से राज्य चलाया। 1 समाप्त काजर की कोठरी में कैसहू सयानो जाय काजर की रेख एक लागिहै पै लागिहै।' पहिला बयान सध्या होने में अभी दो घण्टे की देर है मगर सूर्य भगवान के र्दशन नहीं हो रहे क्योंकि काली काली घटाओं ने आसमान को चारों तरफ से घेर लिया है। जिधर निगाह दौडाइये मजेदार समा नजर आता है और इसका तो विश्वास भी नहीं होता कि सध्या होने में अभी कुछ कसर है। ऐसे समय में हम अपने पाठकों को उस सडक पर ले चलते हैं जो दरभगे * से सीधी बाजितपुर की तरफ गई है। दरभगे से लगभग दो कोस के आगे बढ़ कर एक बैलगाडी पर चार नौजवान और हसीन तथा कमसिन रडियाँ धानी काफूर पेयाजी और फालसई साडियाँ पहिरे मुख्तसर गहनों से अपने को सजाए आपुस में ठठोलपन करती वाजितपुर की तरफ जा रही है। इस गाडी के साथ पीछे-पीछे एक दूसरी गाडी भी जा रही है जो उन रडियों के सफरदाओं के लिए थी। सफरदा गिनती में दस थे मगर गाडी में पाध से ज्यादे के बैठने की जगह न थी इसलिए पाच सफरदा गाडी के साथ पैदल जा रहे थे। कोई तम्बाकू पी रहा था कोई गाजा मल रहा था, कोई इस बात की शेखी बघार रहा था कि फलाने मुजरे में हमने वह बजाया कि बडे बडे सफरदाओं को मिर्गी आ गई इत्यादि। कभी-कभी पैदल चलने वाले सफरदा गाडी पर चढ जाते और गाडी वाले नीचे उतर आते. इसी तरह अदल-बदल के साथ सफर तै कर रह थे। मालूम होता है कि थोड़ी ही दूर पर किसी जिमींदार के यहाँ महफिल में इन लोगों को जाना है, क्योंकि सन्नाटे मैदान में सफर करती समय सध्या हो जाने से इन्हें कुछ भी भय नहीं है और न इस बात का डर है कि रात हो जाने से चोस्चुहाड़ अथवा डाकुओं से कहीं मुठभेड न हो जाय । बैल की किराची गाडी चर्खा तो होती ही है, जब तक पैदल चलने वाला सौ कदम जाय तब तक वह बत्तीस कदम से ज्याद्रं न जायेगी। बरसात का मौसिम, मजेदार बदली छायी हुई सड़क के दोनों तरफ दूर-दूर तक हरे-हरे धान के खेत दिखाई दे रहे हैं, पेड़ों पर से पपीहे की आवाज आ रही है ऐसे समय में एक नहीं बल्कि चार-चार नौजवान हसीन और मदमाती रण्डियों का शान्त रहना असम्भव है इसी से इस समय इन सभी को ची-पों करती हुई जाने वाली गाडी पर बैठे रहना बुरा मालूम हुआ और वे सब उतर कर पैदल चलने लगी और बात ही बात में गाडी से कुछ दूर आगे बढ़ गई। गाडी चाहे छूट जाय मगर सफरदा कब उनका पीछा छोडने लगे थे? पैदल दाले सफरदा उनके साथ हुए और हंसते बोलते जाने लगे। थोडी ही दूर जाने के बाद इन्होंने देखा कि सामने से एक सवार सरपट घोडा फेंके इसी तरफ आ रहा है। जब वह थोडी दूर रह गया तो इन रण्डियों को देख कर उसने अपने घोडे की चाल कम कर दी और जब उन चारों छबीलियों के दरभगा तिरहुत की राजधानी समझी जाती है।

देवकीनन्दन खत्री समग्र १२२२