पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२२२

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हुआ है। उसके दोनों बगल जमींदार लोग जो न्योते में आये है, कत्तीदार पगडी जमाये बैठे उस रण्डी से आखें मिलाने का उद्योग कर रहे है जो महफिल में नाच रही है और जिसका ध्यान बनिस्बत गाने के भाव बताने पर ज्यादे है। इस समय महफिल में यद्यपि भीडभाड बहुत है मगर जिमींदार साहब का पता नहीं है जिनके लड़के की शादी होने वाली है। दो घण्टे तक तो लोग चुपचाप बैठे गाना सुनते रहे मगर इसके बाद जिमींदार कल्याणसिह के उपस्थित न होने का कारण जानने के लिए लोगों में कानाफूसी होने लगी और लोग उन्हें बुलाने की नीयत से एका-एकी मकान की तरफ जाने लगे। आधी रात जाते जाते महफिल में खलबली पड गई। कल्याणसिह के न आने का कारण जब लोगों को मालूम हुआ तो सभी घबड़ा गये और एका-एकी करके उस मकान की तरफ जाने लगे जिसमें कल्याणसिह रहते थे। अब हम कल्याणसिह का हाल बयान करते हैं और यह भी लिखते हैं कि वह अपने मेहमानों से अलग रहने पर क्यों मजबूर हुए। संध्या के समय जिमींदार कल्याणसिह भडार का इन्तजाम देखते हुए उस दालान में पहुंचे जिसमें रडियों का डेरा था। वे यधपि बिगडैल ऐयाश तो न थे मगर जरा मनचले और हँसमुख आदमी जरूर थे इसलिए इन रडियों से भी हँसी- दिल्लगी की दो बातें करने लग। इसी बीच नाजुकअदा बॉदी ने उनके पास आकर अपने हाथ का लगाया हुआ दो वीडा पान का खाने के लिए दिया। यह वही बॉदी रडी थी जिसका हाल हम पहिले लिख आए है। कल्याणसिह पान का बीडा हाथ में लिए हुए लौटे तो उस जगह पहुंचे जहा महफिल का सामान हो रहा था और उनके नौकर चाकर दिलोजान से काम कर रहे थे। थोडी देर तक वहाँ भी खडे रहे। यकायक उनके सर में दर्द होने लगा। उन्होंने समझा कि मेहनत की । हरारत स ऐसा हो रहा है और यह भी सोचा कि महफिल में रात भर जागना पडेगा इसलिए यदि इसी समय दो घण्टे सो कर हरारत मिटा लें तो अच्छा होगा। यह विचार करते ही कल्याणसिह अपने कमरे में चले गए जो मर्दाने मकान में दुमजिले पर था। चिराग जल चुका था कमरे के अन्दर भी एक शमादान जल रहा था। कल्याणसिह दरवाजा बन्द करके एक खिडकी के सामने चारपाई पर जा लेटे जिसमें से ठडी-ठडी बरसाती हवा आ रही थी और महफिल का शामियाना तथा उसमें काम-काज करते हुए आदमी दिखाई दे रहे थे। यह कमरा बहुत बड़ा न था तो भी तीस-चालीस आदमियों के बैठने लायक था। दीवारें रगीन और उन पर फूल-बूटे का काम हाशियार मुसौवर के हाथ का किया हुआ था। कई दीवारगीरें भी लगी हुई थीं। छत में एक झाड के चारों तरफ कई कन्दीलें लटक रही थीं जमीन पर साफ-सुफेद फर्श विछा हुआ था। एक तरफ सगमरमर की चौकी पर लिखने- पढने का सामान भी मौजूद था। बाहर वाली तरफ छोटी-छोटी तीन खिड़कियों थी जिनमें से मकान के सामने वाला रमना अच्छी तरह दिखाई दे रहा था। उन्ही खिडकियों में से एक खिडकी के आगे चारपाई बिछी हुई थी जिस पर कल्याणसिह सो रहे और थोड़ी ही देर में उन्हें नीद आ गई। कल्याणसिह तीन घण्टे तक बराबर सोते रहे. इसके बाद खड़खडाहट की आवाज आने के कारण उनकी नींद खुल गई। देखा कि कमरे के एक कोने में छत से कुछ ककड़ियों गिर रही है। कल्याणसिह ने सोचा कि सायद चूहों ने छत में बिल किया होगा और इसी सबब से ककड़ियों गिर रही है, परन्तु कोई चिन्ता की बात नहीं कल-परसों में इसकी मरम्मत करा दी जावेगी, इस समय घण्टे भर और आराम कर लेना चाहिए. यह सोच मुँह पर चादर का पल्ला रख सो रहे और उन्हें नींद फिर आ गई। दो घण्टे बाद कमरे के उसी कोने में से जहाँ से ककड़ियाँ गिर रही थी धमाके की आवाज आई जिससे कल्याणसिह की आँख खुल गई। वह घबडाकर उठ बैठे और चारों तरफ देखने लगे परन्तु रोशनी गुल हो जाने के सबब इस समय कमरे में अधेरा हो रहा था। उन्हें इस बात का ताज्जुब हुआ कि शमादान किसने गुल कर दिया। वह घबडा कर उठ खड़े हुए और किसी तरह दर्वाजे तक पहुंचे और दर्वाजा खोल कमरे के बाहर आये। उस समय एक पहरदार सिपाही के सिवाय वहाँ और कोई भी न था सब महफिल में चल गये थे और नौकर चाकर भी काम काज में लगे थे। कल्याणसिह ने सिपाई से लालटेन लाने के लिए कहा। सिपाही तुरत लालटेन बालकर ले आया और कल्याणसिह के साथ कमरे के अन्दर गया! कल्याणसिह ने अबकी दफे उस कोने मे बैत का एक पिटारा पड़ा हुआ देखा जहाँ से पहिली दफ नींद खुलने की अवस्था में ककडियों गिरने की आवाज आई थी। कल्याणसिह को बडा ही ताज्जुब हुआ और वह डरते डरते उस पिटारे के पास गए। पिटारे के चारों तरफ रस्सी लपेटी हुई थी और एक बहुत बडा रस्सा भी उसी जगह पड़ा हुआ था जिसका एक सिरा पिटार के साथ बँधा हुआ था। जिमींदार ने छत की तरफ देखा तो छत टूटी फूटी हुई दिखाई दी जिससे यह विश्वास हो गया कि यह पिटारा रस्सी के सहारे इसी राह से लटकाया गया और ताज्जुब नहीं कि कोई आदमी भी इसी राह से कमरे में आया हो क्योंकि शमादान का बुझना बेसबब न था। कल्याणसिह ताज्जुब भरी निगाहों से उस पिटारे को देखते रहे इसके बाद सिपाही के हाथ से लालटेन ले ली और उससे पिटारा खोलने के लिए कहा। सिपाही ने जो ताकतवर होने के साथ ही साथ दिलेर भी था झटपट पिटारा खोला और ढकना अलग करके देखा तो उसमें बहुत से कपडे भरे हुए दिखाई पड़े मगर उन कपड़ों पर हाथ रखने के साथ ही वह चौक पड़ा और अलग हट कर खड़ा हो गया। जब कल्याणसिह ने पूछा कि क्यों क्या हुआ? तब उसने दोनों हाथ लाटटेन के सामने किये और दिखाया कि उसके दोनों हाथ खून से तर है। देवकीनन्दन खत्री समग्र १२२४