पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२२३

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कल्याणसिह - है ! यह तो खून है ! सिपाई-जी हॉ उस पिटारे में जो कपड है व खून सतर है और कोई कॉटेदार चीज भी उसमें मालूम पड़ती है जा कि मेरे हाथ में सुई की तरह चुभी थी। कल्याणसिह - ओफ नि सन्देह कोई भयानक बात है | अच्छा तुम पिटारे को बंच कर बाहर ले चला! सिपाही-बहुत खूब। सिपाही ने उस पिटारे को उठाना चाहा तो बहुत हल्का पाया और सहज ही में वह उस पिटारे को कमरे के बाहर ले अश्या । उत्त समय तक और भी सिपाही तथा दो-तीन नौकर वहाँ आ पहुंचे थे। कल्याणसिह की आज्ञानुसार रोशनी ज्यादा की गई और तब उस पिटार की जॉच हाने लगी। नि सन्दह उस पिटार के अन्दर कपडे थे और उन पर सलमे-सितार का काम किया हुआ था। सिपाही-(सलम्-सितार के काम की तरफ इसारा करकं) यही मर हाथ में गड़ा था और काट की तरह मालूम हुआ था !(एक कपडा उठाकर ) आफ यह ता दिनी है । दूसरा - और बिलकुल नई ! तीसरा-व्याह की ओढनी है ! • सिपाही - मगर सरकार इस मै पहिचानत हूँ और जरूर पहिचानता हूँ | कल्याण - (लम्बी सॉस लकर ) ठीक है ने मो इस पहिचानता हूँ, अच्छा और निकाला। सिपाहा - ( और एक कपड़ा निकाल के लीजिए यह लहगा भी है । बेशक यहीं है ॥ कल्याण-ओफ यह क्या गजब है ! यह कपड़े मेरे घर क्यों आ गए और ये खून से तर क्यों है ? नि सन्देह ये दही कपड है जो मैने अपनी पतोहू के वास्ते बनवाए थे और समधियाने भेजे थे। तो क्या खून हुआ? क्या लडकी मारी गई? क्या यह मगल का दिन अमगल में बदल गया ? इतना कहकर कल्याणसिह जमीन पर बैठ गया। नौकरों ने जल्दी से कुर्सी लाकर रख दी और कल्याणसिह को उस पर बैठाया। धीरे-धीरे बहुत स आदमी वहाँ आ जुटे और बात की बात में यह खबर अन्दर-बाहर सब तरफ अच्छी तरह फैल गई। इस खबर ने महफिल में भी हलचल मचा दी और महफिल में बैठे हुए महमानों को कल्याणसिह को देखने की उत्कण्ठा पैदा हुई। आखिर धीरे-धीरे बहुत से नौकर सिपाही और मेहमान दहाँ जुट गए और उस भयानक दृश्य को आश्चर्य के साथ दखने लग। यो ता कल्याणासह के बहुत से मली-मुलाकाती थे मगर सूरजसिह नामी एक जिमीदार उनका सच्चा और दिली दास्त था जिसकी यहाँ के राजा धमसिह क यहाँ भी बडी इज्जत और कदर थी। सूरजसिह का एक नौजवान लडका भी था जिसका नाम रामसिह था और जिस राजा धमसिह ने बारह मौजों का तहसीलदार बना दिया था। उन दिनों तहसीलदारों को बहुत बड़ा अख्तियार रहता था यहा तक की सैकडों मुकदमे दीवानी और फौजदारी के खुद तहसीलदार ही फैसला करके उसकी रिपोर्ट राजा के पास भेज दिया करते थे। रामसिह को राजा धर्मसिह बहुत मानते थ अन्तु कुछ तो इस सक्य स मगर ज्याद अपनी बुद्धिमानी क सबब से उसन अपनी इज्जत और धाक बहुत बढा रखी थी। जिस तरह कल्याणसिह और सूरज सिह में दोस्ती थी उसी तरह रामसिह और हरिनन्दन में (जिसकी शादी होने वाली थी) सच्ची मित्रता थी और आज की महफिल में वे दोनों ही बाप-बेटा थे। रामसिह और हरिनन्दनसिह दोनों मित्र वड ही होशियार बुद्धिमान पडित और वीर पुरुष थे और उन दोनों का स्वभाव भी ऐसा अच्छा था कि जो कोई एक दफे उनसे मिलता और बातें करता वही उनका प्रेमी हो जाता। इसके अतिरिक्त व दोनो मित्र खूबसूरत भी थ और उनका सुडौल तथा कसरती बदन दखने ही योग्य था । जब कल्याणसिह की घबराहट का हाल लोगों को मालूम हुआ और महफिल में खलबली पड गई तो सूरजसिह और हरिनन्दन भी कल्याणसिह क पास जा पहुचे जो दुखित हृदयसे उस पिटारे के पास बैठे हुए थे जिसमें से खून से मरे हुए शादी वाले जनाने कपड़े निकले थे। थोड़ी देर में वहाँ बहुत से आदमियों की भीड़ हो गई जिन्हें सूरजसिह ने बड़ी युद्धिमानी से हटा दिया और एकान्त हो जान पर कल्याणतिह से सब हाल पूछा। कल्याणसिह ने जो कुछ देखा था या जो कुछ हो चुका था बयान किया और इसके बाद अपने कमरे में ले जाकर वह स्थान दिखाया जहाँ पिटारा पाया गया था और साथ ही इसके अपने दिल का शक भी वयान किया। हरिनन्दन को जब सब हाल मालूम हो गया तब वह चुपचाप अपने कमरे में चला गया और आरामकुर्सी पर बैठ कुछ सोचने लगा। उसी समय कल्याणसिह के समधियाने से अर्थात् लालसिह के यहा से यह खबर भी आ पहुंची कि सरला (जिसकी हरनन्दन से शादी होन वाली थी) घर में स यकायक गायब हो गई और उस कोठरी में जिसमें वह थी सिवाय खून के छींटे और निशानों के और कुछ भी देखने में नहीं आता। यह मामला नि सन्दह बड़ा भयानक और दुखदायी था। बात की बात में यह खबर भी बिजली की तरह चारों तरफ फैल गई। जनानों में रोना-पीटना पड़ गया। घण्टे ही मर पहिल जहा लोग हसते-खेलत घूम रहे थे अव उदास और दुखी दिखाई देन लगामहफिलका शामियाना उतार लेने के बाद गिरा दिया गया। रडियों को कुछ दे-दिलाकर सवेरा होनस काजर की कोठड़ी १२२५