पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२२४

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पहिले ही विदा हो जाने का हुक्म मिला। इसके बाद जब सूरज सिह और रामसिह सलाह विचार करके कल्याणसिह से विदा हुए और मिलने के लिए हरनन्दन के कमरे में आए तो हरनन्दन का कहो न पाया ही खोज करन पर मालूम हुआ कि चांदी रडी के पास बैठा हुआ दिल बहला रहा है वहीवादी रडी जिसका जिक्र इस किस्से के पहिले बयान में आ चुका ई और जो आज की महफिल में नाचने के लिए यहाँ आयी थी। सूरजसिह और रामसिह को सुनकर बडा ताज्जुब हुआ कि हरनन्दन बाँदी रडी के पास बैठा हुआ दिल बहला रहा है क्योंकि वे हरनन्दन के स्वभाव से अनजान न थे और इस बात को भी सूब जानते थे कि वह रडियों के फेर में पडोया उनकी साहवत को पसन्द करने वाला लड़का नहीं है और फिर एस समय में जबकि चारों तरफ उदासी फैली हुई हो उसका बॉदी के पास बैठकर गमे उडाना तो हद दर्जे का ताज्जुब पैदा करता था । आखिर सूरजसिंह ने अपने लड़के रामसिह को निश्चय करन के लिए उस तरफ रवाना किया जिधर वादी रडी का डेरा था और आप लोट कर पुन अधर भित्र कल्याणसिह के पास पहुंचे जो अपन कमरे में अकेले बैठ कुछ साय रहे थे। कल्याण - (ताज्जुब से ) आप लोट क्यों ? क्या काई दूसरी बात पैदा हुई? सूरज-हम लोग हरनन्दन से मिलने के लिए उसके कमर म गए ता मालूम हुआ कि वह वादी रण्डी के डरे में बैठा हुआ दिल बहला रहा है। कल्याण- (चौक कर) बाँदी रण्डी के यहाँ नहीं कभी नहीं. वह ऐसा लडका नहीं है और फिर ऐसे समय में जबकि चारो तरफ उदासी फैली हुई और हम लोग एक भयानक घटना के शिकार हो रह हो। यह बात दिल में नहीं बैठती। सूरज - मेरा भी यह ख्याल है और इसी से निश्चय करने के लिए मै रामसिंह को उस तरफ भेजकर आपके पास लौट आया हूँ। कल्याण -- अगर यह बात सच निकली तो बडे शर्म की बात होगी। सी-खुशी के दिनों में ऐसी बातों पर लोगों का ध्यान विशेष नहीं जाता और न लोग इस बात को इतना बुरा ही समझते हैं, मगर आज ऐसी आफत के समय में मेरे लड़के हरनन्दन का ऐसा करना बडे शर्म की बात होगी हर एक छोटा बड़ा बदनाम करेगा और समधियाने में यह बात न मालूम किस रूप में फैलकर कैसा रूपक खड़ा करेगी सो कह नहीं सकते। सूरज-बात तो ऐसी ही है मगर फिर भी मै यही कहता हूँ कि हरगन्दन ऐसा लड़का नहीं है। उसे अपनी बदनामी का ध्यान उतना ही रहता है जितना जुआरी को अपना दाव पड़ने का उस समय जब कि कौड़ी खलाडी के हाथ से गिरा ही चाहती हो। इतने ही में हरनन्दन को साथ लिए हुए रामसिंह भी आ पहुंचा जिसे देखते ही कल्याणसिंह ने पूछा, 'क्यों जी रामसिह, हरनन्दन से कहा मुलाकात हुई ? रामसिह-चांदी रण्डी के डेरे में ! कल्याणसिंह – (चौंककर) है ! (हरनन्दन से) क्यो जी तुम कहाँ थे? हरनन्दन-बाँदी रण्डी के डेरे में। इतना सुनते ही कल्याणसिह की आँखे मारे क्राध के लाल हो गई और मुँह से एक राष्ट्र भी निकलना कठिन हो गया। उधर यही हाल सूरजसिह का भी था। एक तो दुख और क्रोध ने उन्हें पहले ही से दमा रखा था मगर इस समय हरनन्दन की ढिठाई ने उन्हें आपे से बाहर कर दिया। वे कुछ कहना ही चाहते थे कि रामसिह ने कहा- रामसिह-(कल्याण से) मगर हमारे मित्र इस योग्य नहीं है कि आपको कभी अपने ऊपर क्रोधित होने का समय दें। यद्यपि अभी तक मुझे कुछ मालूम नहीं हुआ है तथापि मै इतना कह सकता हूँ कि इनके ऐसा करने का कोई न कोई सबब जरूर होगा। हरनन्दन-बेशक ऐसा ही है। कल्याण- (आश्चार्य से) बेशक ऐसा ही है। । हरनन्दन-जी हो। इतना कह हरनन्दन ने कागज का एक पुर्जा जो बहुत मुड़ा हुआ था उनके सामने रख दिया। कल्याणसिह ने बड़ी बेचैनी से उसे उठाकर पढ़ा और तब यह कहकर अपने मित्र सूरजसिह के हाथ में दे दिया कि बेशक ऐसा ही है। सूरजसिह ने भी उसे बडे गौर से पढ़ा और बेशक ऐसा ही है कहते हुए अपने लड़के रामसिह के हाथ में दे दिया और उसे पढ़ने के साथ ही रामसिह के मुँह से भी यही निकला कि 'बेशक ऐसा ही है !! तीसरा बयान जमींदार लालसिंह के घर में बड़ा ही कोहराम मचा हुआ था। उसकी प्यारी लड़की सरला घर में से यकायक गायब हो गई थी और वह भी इस ढग से कियाद करके कलेजा फटता था और विश्वास होता था कि उस बेचारी के खून देवकीनन्दन खत्री समग्र १२२६