पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२२५

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eg? से किसी निर्दयी न अपना हाथ रगा है। बाहर भीतर हाहाकार मचा हुआ था इस खयाल से तो और भी ज्यादे रुलाई आती थी आज ही उसे व्याहने के लिए बाजे-गाजे के साथ बारात आवेगी। लालसिह मिजाज का बडा ही कडुवा आदमी था। गुस्सा तो मानो ईश्वर के घर ही से उसके हिस्से में पड़ा था। रन हो जाना उसके लिए कोई बड़ी बात नथी जरा-जरा से कसूर पर बिगड जाता और वरसों की जान-पहिचान तथा मुरौक्त का कुछ भी खयाल न करता। यदि विशष प्राप्ति की आशा न होती तो उसके यहाँ नोकर,मजदूरनी या सिपाही एक भी दिखाई न देता। इसी स प्रकट है कि वह लोगों का देता भी था मगर उसका दान इज्जत के साथ न होता और लोगों की बेइज्जती तथा फजीहत करने में ही वह अपनी शान समझता था। यह सब कुछ था मगर रुपये ने उसके सब ऐयों पर जालीलेट का पर्दा डाल रखा था। उसक पास दौलत बेशुमार थी मगर लडका कोई भी न था सिर्फ एक लड़की वही सरला थी जिसके सबब से आज दो घरों में रोना-पीटना मचा हुआ था। वह अपनी इस लडकी को प्यार भी बहुत करता था और भाई-भतीजे मौजूद रहने पर भी अपनी कुल जायदाद जिसे उसने अपने उद्योग से पैदा किया था इसी लडकी क नाम लिखकर तथा वह वसीयतनामा राजा के पास रख कर अपने भाई-भतीजों को जो रुपये पैसे की तरफ से दुखी रहा करते थे,सूखा ही टरका दिया था हॉखाने-पीने की तकलीफ वह किसी को भी नहीं देता था। उसके चौके में चाहे कितन हो आदमी बैटकर खाते इसका वह कुछ खयाल न करता बल्कि खुशी से लोगों को अपने साथ खाने में शरीक करता था। अपनी लडकी सरला के नाम जो वसीयतनामा उसने लिखा था वह भी कुछ अजब ढग का था। उसके पढने ही से उसके दिल का हाल जाना जाता था। पाठकों की जानकारी के लिए उस वसीयतनामे की नकल हम यहॉ पर देते हैं - वसीयतनामा 'मै लालसिह अपनी कुल जायदाद जिस मैन अपनी मेहनत से पैदा किया है और जो किसी तरह बीस लाख रुपये से कम की नहीं है और जिसकी तफसील नीचे लिखी जाती है अपनी लडकी सरला के नाम से जिसकी उम्र इस वक्त चौदह (१४)वर्ष की है वसीयत करता हूँ।इस जायदाद पर सिवाय सरला के और किसी का हक न होगा वशर्ते कि नीचे लिखी शर्तों का पूरा बर्ताव किया जाय- (१) सरला को अपनी कुल जायदाद का मैनेजर अपने पति का बनाना होगा। (२) सरला अपनी जायदाद का (जो मैं उसे दता हूँ)या उसका कोई हिस्सा अपने पति की इच्छा क विरुद्ध खर्चन कर सकेगी और न ही किसी को देगी। (३) सरला क पति को सरला की कुल जायदाद पर बतौर मैनेजरी के हक होगा न कि बतौर मालिकाना । (४) सरला का पति अपनी मैनजरी की तनख्वाह (अगर चाहे तो) पाँच सौ रुपये महीने के हिसाब से इस जायदाद की आमदनी में से ले सकेगा। (५) सरला की शादी का बन्दोवस्त में कल्याणसिह के लडके हरनन्दनसिह के साथ कर चुका हूँ और जहाँ तक समद है अपनी जिन्दगी में उसी के साथ कर जाऊँगा। कदाचित इसके पहिले ही मेरा अन्तकाल हो जाय तो सरला को लाजिम होगा कि उसी हरनन्दन सिह के साथ शादी कर अगर इसके विपरीत किसी दूसरे के साथ शादी करेंगी तो मेरी कुल जायदाद के (जिसे मैं इस वसीयतनामा में दर्ज करता हूँ) आधे हिस्से पर हमारे चारों सगे भतीजों, राजा जी. पारसनाथ धरनीधर और दौलतसिह का या उनमें से उस वक्त जै हाँ हक हो जायेगा और बाकी के आधे हिस्से पर सरला के उस पति का अधिकार होगा जिसके साथ कि वह मेरी इच्छा के विरुद्ध शादी करेगी। हॉ अगर शादी होने के पहिले सरला को हरनन्दन की बदचलनी का काई सबूत मिल जाय तो उसे अख्तियार होगा कि जिसके साथ जी चाहे शादी करे। उस अवस्था में सरला को मेरी कुल जायदाद पर उसी तरह अधिकार होगा जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है। अगर शादी के बाद हरनन्दन की बदचलनी का कोई सबूत पाया जाय तो सरला.को आवश्यक होगा कि उसे अपनी मैनेजरी से खारिज कर दे और अपनी कुल जायदाद राजा के सुपुर्द कर के काशी चली जाय और वहाँ केवल एक हजार रुपयेमहीना राजा से लेकर तीर्थवास करे। और यदि ऐसा न करे तो राजा को (जो उस वक्त में यहाँ का मालिक हो) जबर्दस्ती एसा कराने का अधिकार होगा। (६) सरला के बाद सरला की सम्पत्ति का मालिक धर्मशास्त्रानुसार होगा। जायदाद की फिहरिस्त और तारीख इत्यादि:- इस वसीयतनामे के पढने से ही पाठक समझ गए होंगे कि लालसिह कैसी तबीयत का आदमी और अपनी जिद्द का कैसा पूरा था। इस समय जब यकायक सरला के गायब हो जाने का हाल लौडी की जुबानी सुना तो उसके कलेजे पर एक चोट सी लगी और वह घबडाया हुआ मकान के अन्दर चला गया जहाँऔरतों में विचित्र ढग की धयडाहट फती हुई थी। सरला की माँ उस कोठरी में बेहोस पड़ी थी जिसमें स सरला यकायक गायब हो गई थी और जहाँ उसके बदल में चारों काजर की कोठडी १२२७