पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तूरफ खून के छीटे ओर निशान दिखाई दे रहे थे। कई औरतें उस बेचारी के पास बैठी रो रही थीं कई उसे होश में लाने की फिक्र कर रही थीं और कई इस आशा में कि कदाचित् सरला कहीं मिल जाय, ऊपर-नीचे और मकान के कोनों में घूम-घूम कर देखभाल कर रही थी। जिस समय लालसिह सरला की कोठरी में पहुंचा और उसने वहाँ की अवस्था देखी, धवडा गया और खून के छीटों पर निगाह पड़ते ही उसकी आखों से आंसू को नदी बह चली। उसे थोडी देर तक तो तनावदन की सुध न रही फिर उसने अपन आप को बड़ी कोशिश से संभाला और तहकीकात करने लगा। कई औरतो और लौडियो से उसने इजहार लिए मगर उससे ज्यादे पता कुछ भी न लगा कि सरलाअपनी कोठरी में से यकायक गायव हो गई। उस किसी ने भी कोटरी के बाहर पैर रखते या कहीं जाते नहीं देखा। जब लालसिह ने खून के निशान और छींटों पर ध्यान दिया तो उसे बडा ही आश्चर्य हुआ क्योंकि खून के जो कुछ छींट या निशान थे सब कोटरी के अन्दर ही थे चोकत के बाहर इस किस्म की कोई बात न थी। वह अपनी स्त्री का हाशमला और दिलाशा देने का धन्दावस्त कर के बाहर अपन कमरे में चला आया जहाँ से उसी समय अपने समधी कल्याणसिह के पास एक आदमी रवाना कर उसकी जुबानी अपने यहां का सब हाल उसन कहला भजा। रात भर रज और गम में बीत गई। सरला को खाज निकालने के लिए किसी ने कोई बात उठान रक्खी मगर नतीजा कुछ भी न निकला । दूसर दिन दो पहर बीते वह आदमी भी लौट आया जो कल्याणसिह के पास भजा गया था और उसने वहाँ का सब हाल लालसिह से कहा जिसे सुनत ही लालसिह पागल की तरह हो गया और उसके दिल में कोई नई बात पैदा हो गई मगर जिस समय उस आदनी ने यह कहा कि खून खराये का सब हाल मालूम होने पर भी हरनन्दन सिह को किसी तरह का रजन हुआ और वह एक रण्डी के पास जिसका नाम योदी है और जो नाचने के लिए उसके यहा गई हुई थी,जा बैठा और ईसीखुशी में अपना समय विताने लगा यहाँ तक कि उसके बाप ने बुलाने के लिए कई आदमी भेजे मगर वह बॉदी के पास से न उठा, आखिर जब स्वय रामसिह गये तो उसे जबरदस्ती उठा लाए और लानत मलामत करने लगे- तो लालसिह की हालत बदल गई। उसके लिए यह खबर बड़ी ही दुखदायी थी। यद्यपि वह सरला के गम में अधमुआ हो रहा था तथापि इस खबर ने उसके बदन में बिजली पैदा कर दी। कहाँ तो वह दीवार के सहारे सुस्त बैठा हुआ सब बातें सुन रहा और आखों से आंसू की बूंदै गिरा रहा था. कहाँ यकायक सम्हल कर बैठ गया क्रोध से बदन कॉपने लगा, ऑसू की तरी एक दम गायब होकर आखों नअगारों की सूरत पेदा की और साथ ही इसके वह लम्बी लम्बी सॉसें लेने लगा। उस समय लालसिह क पास उसके चारों भतीजे- राजाजी पारसनाथ धरनीधर और दौलतसिह तथा और भी कई आदमी जिन्हें वह अपना हिती समझता था,चैठे हुए थे और सभी की सूरत से उदासी और हमदर्दी झलक रही थी। हरनन्दन और बॉदी वाली खबर सुनकर जिस समय लालसिह क्रोध में आकर चुटीले सॉप की तरह फुकारने लगा उस समय उन लोगों ने भी नमक-मिर्च लगाना आरम्भ कर दिया। एक देखने सुनने और बातचीत से तो हरनन्दन वडा नेक और बुद्धिमान मालूम पड़ता था ! दूसरा- मनुष्य का चित्त अन्दर-बाहर से एक नहीं हो सकता । तीसरा-मुझे तो पहिले ही से उसके चालचलन पर शक था मगर लोगों में उसकी तारीफ इतनी ज्यादे फैली हुई थी कि मैं अपने मुँह से उसके खिलाफ कुछ कहने का साहस नहीं कर सकता था। चौथा- युद्धिमान ऐयाशों का यही ढम रहता है। पाँचवाँ - असल तो यों है कि हरनन्दन को अपनी बुद्धिमानी पर घमण्ड भी हद से ज्यादा है। छठा-नि सन्देह ऐसा ही है। उसने तो केवल हमारे लालसिह जी को धोखा देने के लिए यह रूपक बॉघा हुआ था नहीं तो वह पक्का बदमाश और पारस-(लालसिह का भतीजा) अजी मै एक दफे (लालसिह की तरफ इसारा करके) चाचा साहब से कह भी चुका था कि हरनन्दन को जैसा आप समझे हुए हैं,वैसा नहीं है मगर आपने मेरी बातों पर कुछ ध्यान ही नहीं दिया उल्टे मुझी को उल्लू बनाने लगे। लाल - वास्तव में मैं उसे बहुत नेक आदमी समझता था। पारस- मै तो आज भी डके की चोट पर कह सकता हूँ कि बेचारी सरला का खून (अगर वास्तव में वह मारी गई है तो) हरनन्दन ही की बदौलत हुआ है। अगर मेरी मदद की जाय तो मै इसको साबित करके दिखा सकता हूँ! लालसिह - क्या तुम इस बात को साबित कर सकते हो? पारस-बेशक । लालसिह -- तो क्या सरला के मारे जाने में भी तुम्हे कोई शक है ? पारस-जी हाँ पूरा शक है मरा दिल गवाही देता है कि यदि उद्योग के साथ पता लगाया जायेगा तो सरला मिल जायेगी। देवकीनन्दन खत्री समग्र १२२८