पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२२९

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Gr1 इसी प्रकार की वातें दोनों में हो रही थीं कि एक नोजवान लाँडी जो घर भर की बल्कि दुनिया की हर एक चीज का एक ही निगाह (आँख) स देखती थी, मटकती हुई आ पहुंची और बॉदी से वोली बीवी नीच छाटे नवार साहब आथ है ! बॉदी-(चौंक कर ) अर ! आज क्या है । कहाँ बेटे है ? लाँडी- अम्मा ने उन्हें पूरव वाली काठरी में देठाया है और आप भी उन्हीं के पास बेटी है। बोंदी- अच्छा तू चल ने अभी आती हू (पारसनाथ की तरफ दख'के ) बड़ी मुश्किल हुइ अगर मे उनके पास न जाऊँ तो भी आफत कहें कि लो साहब रडी का दिमाग नहीं मिलता। इतना ही नहीं बेइज्जती करन के लिये तैयार हा जायें। पारस - नहीं नहीं एसा न करना चाहिय ला में जाता हूँ, अब तुम भी जाओ।(उटत हुए) ओफ बड़ी दर हा गई । चॉदी- पहिल वादा कर लो कि अव कब मिलोग? पारस -कल ता नहीं मगर परसों जरूर में आऊँगा। बॉदी-मरे सर पर हाथ रक्खा। पारस - ( बॉदी क सर पर हाथ रखके ) तुम्हार सर की कसम परत्न पलर आऊँगा । दोनों वहाँ से उठ खड़े हुए और निचले खण्ड में आए। पारसनाथ सदर दर्वाज स होता हुआ अपन घर रवाना हुआ और बाँदी उस काटरी में चली गई जिसमें नवाब साहब के बैठाये जाने का हाल लौडी ने कहा था । दवाज पर पर्दा पडा हुआ था और कोठरी के अन्दर बेदी की माँ के सिवाय दूसरा काई न था। नवाब के आन का ता बहाना ही बराना था। बॉदी को देखकर उसकी माँ ने पूछा गया ? चॉदी - हॉ गया, कम्बख्त जब आता है उढने का नाम ही नहीं लेता । बॉदी की माँ --क्या करगी वटी हम लोगों का काम ही एसा ठहरा ! अब जाआ कुछ खा पी ला हरनन्दन वा आत ही होंगे इसीलिए मैंने नवाब साहब का बहाना करवा भजा था। बादी और उसकी मॉ धीरे-धीरे बातें करती खाने के लिये चली गई आधे घर्ट के अन्दर ही छुट्टी पाकर दोनों फिर उसी कोठरी में आई और बैठकर या याने करन लगी- बाँदी - चाहे जो हा मगर सरला किसी दूसरे के साथ शादी न करेगी। बॉदी की मॉ- (हॅसफर) दूसरे की बात जान दो उसे खास हरिहरसिह के साथ शादी करनी पडगी जिसकी सूरत- शक्ल और चालचलन को वह सपन में भी पसन्द नहीं करती। पाठक | हरिहरसिह उसी सवार का नाम था जिसका जिक्र इस उपन्यास के पहिले बयान में आ चुका है और जो बॉदी रण्डी से उस समय मिला था जब वह नाचने गाने के लिए हरनन्दनसिह के घर जा रही थी। यांदी अपनी माँ की बातें सुनकर कुछ देर तक सोचती रही और इसके बाद बोली लेकिन एसा न हुआ तब ? वॉदी की मॉ-- तब पारसनाथ को कुछ भी फायदा न हागा। बॉदी - पारसनाथ को ता सरला की शादी किसी दूसरे के साथ हो जाने ही से फायदा हो जायेगा चाह वह हरिहरसिह हो चाहे कोई और हो मगर हो पारसनाथ का कोई दोस्त ही। बॉदी की मॉ - अगर ऐसा न हुआ तो वसीयतनाम में झगडा हो जायगा । बॉदी- अगर सरला का बाप पहिला वसीयतनामा ताड फर दूसरा वसीयतनामा लिखे तब? बॉदी की मॉ-- इसी खयाल से तो मैन पारसनाथ स कहा था कि सरला की शादी लालसिह के जीत जी न होनी चाहिय और इस बात को वह अच्छी तरह समझ भी गया है। वॉदी-- मगर लालसिह बड़ा ही कॉइर्यो है। बॉदी की माँ-ठीक है, मगर वह पारसनाथ के फर में उस वक्त आ जायेगा जय वह उस यहाँ लाकर तुम्हार पास बैठे हुए हरनन्दन का मुकाबला करा देगा। बाँदी- लालसिह जब यहॉ हरनन्दन बाबू को देखगा तो वह उन्हें विना टोके कभी न रहेगा और अगर टाकेगाता हरनन्दन बाबू को विश्वास हो जायेगा कि बॉदी ने मेरे साथ दगा की । बाँदी की माँ-नहीं नहीं हरनन्दन बाबू को ऐसा समझने का मौका कभी न देना चाहिए । मगर यही तो हम लागो की चालाकी है ! हमें दोनों तरफ से फायदा उठाना और दोनों को असामी बनाये रहना ही उचित है। बॉदी-ता फिर क्या तरकीब की जाय? बॉदी की मां-- हरनन्दन बाबू को सरला का पता बताना और लालसिह को हरनन्दन की सूरत दियाना ये दाग काम एक ही समय में होना चाहिए। इसके बाद हमलाग लालसिह से बिगड जायग और उस यहाँ सफौरन निकल जान के लिए कहेंगे, उस समय हरनन्दन बाबू का हम लोगों पर शक न होगा। बाँदी-मगर इसके अतिरिक्त इस बात की उम्मीद कब है कि हरनन्दन याबू स बहुत दिदिक फायदा होता रहेगा ! काजर की कोठडी १२३१