पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२३२

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बादी - बहुत अच्छा मै खुद जाकर उन्हें अपने साथ ले आती हूँ। इतना कह कर बादी हरनन्दन के मोढे पर दबाव डालती हुई उठ खड़ी हुई और कमर का बल देती हुई कोठरी के बाहर निकल गई। थोड़ी देर तक हमारे हरनन्दन बाबू को अपने विचार में डूचे रहने का मौका मिला और इसके बाद अपनी अम्माजान को लिए हुए बोंदी आ पहुंची। वादी हरनन्दन से कुछ दूर हट कर बैठ गई और बुद्धिया आफत की पुडिया ने इस तरह बातें करना शुरू किया- बुढिया - युदा सलामत रक्खे आले मरातिब हो ! में तो दिन-रात दुआ करती हूँ, कहिए क्या हुक्म है ? हरनन्दन - बडी वी ! मै तुमसे एक बात कहा चाहता हूँ। बुदिया - कहिये कहिये, क्या यादी से कुछ बेअदयी हो गई है ? हरनन्दन - नहीं नहीं बादी बेचारी ऐसी बेअदब नहीं है कि उसमें किसी तरह का रज पहुचे। मै उससे बहुत खुश हूँ ओर इसीलिए मै उसे हमेशा पास रखना चाहता हू । बुढिया - ठीक है, अगर आप ऐसा अमीर इसे नौकर न रखेगा तो रक्खेगा ही कौन ? और अमीर लोग तो ऐसा करते ही है । मै तो पहिले ही सोचे हुए थी कि आप ऐसे अमीर उठाईगीरों की तरह चूल्हा रखना पसन्द न करेंगे। हरनन्दन - मैं नहीं चाहता कि जिसे मैं अपना बनाऊँ उसे दूसरे के आगे हाथ फैलाने पड़े या कोई दूसरा उसे उंगली भी लगावे। बुढिया - ठीक है ठीक है भला ऐसा कब हो सकता है ? जब आप ही की बदौलत नेरा पेट भरेगा तो दूसरे कम्बख्त को आने ही क्यों दूंगी ! आप ही ऐसे सरदार की खिदमत में रहने के लिए तो हजारों रुपै खर्च करके मैने इसे आदी बनाया है, तालीम दिलवाई है. और सच तो यों है कि यह आपके लायक है भी ! मैं बड़े तरदुद में पड़ी रहती थी और सोचती थी कि यह तो दिन-रात आपके ध्यान में डूबी रहती है और मै कर्ज के बोझ से दबी जा रही हूँ आखिर काम कैसे चलेगा। चलो अब मै हलकी हुई आप जानें और बादी जाने इसकी इज्जत-हुरमत सय आपके हाथ में है। हरनन्दन - मला बताओ तो सही कितने रुपै महीन में तुम्हारा अच्छी तरह गुजर हो सकता है? युढिया - ऐ हुजूर ! भला भै क्या बताऊँ ? आपसे कौन बात छिपी हुई है ? घर में दस आदमी खाने वाले ठहरे,तिस पर महेंगी के मारे नाको दम हो रहा है। हाथ का फुटकर खर्च अलग ही दिन-रात परेशान किये रहता है। अभी कल की बात है कि छोटे नवाब साहब इसे दो सौ रुपै महीना देने को राजी थे, मगर नाच मुजरा सब बन्द करने को कहते थे, मैंने मजूर न किया क्योंकि नाचमुजरे से सैकड़ों रूपये आ जाते है तब कहीं घर का काम मुश्किल से चलता है. खाली दो सौ से क्या हो सकता है। हरनन्दन-खैर नाच-मुजरा तो मेरे वक्त में भी बन्द करना ही पडेगा. मगर आदत बनी रहने के ययाल से मै खुद सुना करूंगा और उसका इनाम अलग दिया करूँगा अभी तो मै इसके लिए चार सौ रमे महीने का इन्तजाम कर देता हूँ फिर पीछे देखा जायगा। मैने अपना इरादा और अपने बाप का हाल भी बादी से कह दिया है तुम सुनोगी तो खुश होवोगी। { (वीस अशर्फियॉ युढिया के आगे फेंक कर ) लो इस महीने की तनखाह पेशगी दे जाता हूं। अब तुम्हें कोई दूसरा आलीशान मकान भी किराए पर ले लेना चाहिए जिसका किराया मै अलग से दूंगा। बुढिया - (अशर्फियों को खुशी से उठाकर) बस बस बस इतने में मेरे घर का खर्च बखूबी चल जायेगा नाच मुजरे की भी जरूरत न रहेगी। बाकी रहा गहना कपडा, सो आप जानिए और यादी जाने, जिस तरह रखियेगा रहेगी। अव मै एक ही दो दिन में अपना और वादी का गहना बेच कर कर्जा भी चुका देती है, क्योंकि ऐसे सरदार की खिदमत में रहने वाली बॉदी के घर किसी तगादगीर का आना अच्छा नहीं है और मैं यह बात पसन्द नहीं करती। इतना कह कर बुढिया उठ गई और हरनन्दन बाबू ने उसकी आखिरी बात का कुछ जवाव न दिया । बुढिया के चले जाने के बाद घण्टे भर हरनन्दन बादी के बनावटी प्यार और नखरे का आनन्द लेते रहे और इसके बाद उठकर अपने डेरे की तरफ रवाना हुए। पाँचवॉ बयान दिन आधे घण्टे से ज्यादे याकी है। आसमान पर कहीं-कहीं बादल के गहरे टुकडे दिखाई दे रहे है और साथ ही इसके यरसाती हवा भी इस बात की खबर दे रही है कि यही टुकड़े थोडी देर में इकट्ठे होकर जमीन को तराबोर कर देंगे। इस समय हम अपने पाठकों को जिस बाग में ल चलते है वह एक तो मालियों की कारीगरी और शौकीन मालिक की निगरानी तथा मुस्तैदी के सबब खुद ही रौनक पर रहा करता है,दूसरे आज-कल के मौसिम बर्सात ने उसके जीवन को और उभाड रक्खा है। यह बाग जिसके बीच में एक सुन्दर कोठी भी बनी हुई है हमारे हरनन्दन बाबू के सच्चे और दिली दोस्त रामसिह का है और इस समय वे स्वय हरनन्दन बाबू के हाथ में हाथ दिए और धीरे-धीरे टहलते हुए इस बाग के सुन्दर गुलबूटे और क्यारियों का आनन्द ले रहे है। देखने वाला तो यहां कहेगा कि ये दोनों मित्र इस दुनिया का सच्चा सुख लूट रहे है मगर नहीं,इस समय ये दोनों एक भारी चिन्ता में डूबे हुए है और किसी कठिन मामले की कार्रवाई पर विचार कर रहे है जो कि आगे चलकर उनकी बातचीत से आपको मालूम होगा। देवकीनन्दन खत्री समग्र १२३४