पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२३३

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हरनन्दन - तुम कहते ता हो मगरज्यादे खुल चलना भी मुझ पसन्द नहीं है। रामसिह - ज्याद खुल चलना जमाने की निगाह में नहीं सिर्फ धादी और पारसनाथ की निगाह में। हरनन्दन-हॉसा तो होगा ही और हाता भी है मगर इस बात की खबर पहिले ही यालालसिंह को रत्ती यूवा : जाना चाहिए कि उनके दिल में रज और शक की जगह न मिलने पाव और वे अपनी जान की हिफाजनका पूरा बन्दास्त भी कर रखें बल्कि मुनातिय तो यह है कि वे कुछ दिन के लिए मुर्दी में अपनी गिनती करा लें। रामसिह-(आवाज में जोरदकर) वेशक ऐसा ही हाना चाहिए । यह बात परसों ही मेरे दिल में पैदा हुई थी और इस मामल पर दा दिन तक मैने अच्छी तरह गौर करक कई बातें अपने पिता से आज ही स्वर कही भी है। उन्होंने भी मरी राय बहुत पसन्द की और वादा किया कि कल लालसिह से मिलने के लिए जायंग और वहा पहुंचन के पहिय बाधा जो ( कल्याणसिह ) से मिल कर अपना विचार प्रकट कर देंगे। हरनन्दन - हाँ! तव ता काई चिन्ता नहीं है यद्यपि लालसिह बड़ा जडडी और जिद्दी आदमी है परन्तु आरा है कि चाचाजी की यातें उसके दिल में बैठ जायेंगी। रामसिह - आशा ता ऐसी ही है। हाँ में यह कहना ता भूल ही गया कि आज मै महाराज स भी मिल चुका हूं। ईश्वर की कृपा से जो कुछ मैं चाहता था महाराज ने उसे स्वीकार कर लिया और तुम्हें बुलाया भी है। सच तो यो है कि महाराज मुझ पर बडी ही कृषा रखते है। हर - नि सन्दह ऐसा ही है और जय महाराज स इतनी बातें हो चुकी है तो हम अपना काम बड़ी खूबी के साथ निकाल लेंगे । अच्छा मैं एक बात तुम से और कहूँगा। रामसिह - वह क्या है? हर - एक आदमी ऐसा ही होना चाहिए जिस पर अपना विश्वास हा और अपने तौर पर जाकर बॉदी के यहा नोकरी करले और उसका एतयारी बन जाय । रामसिह - ठीक है मैं तुम्हारा मतलब समझ गया । अपन असामियों में से बहुत जल्द किसी एस आदमी का बन्दोबस्त करूँगा। मरसक किसी औरत ही का बन्दोवस्त किया जायगा। (कुछ सोचकर) मगर मेरे यार । इस बात का खुटका मुझे हरदम लगा रहता है कि कहीं बॉन्द्री तुम्हें अपने काबू में न कर ले। देखा चाहिए इस कालख से तुम अपन पल्ले को कहाँ तक बचाये रहत हो ! हरनन्दन-- मैं दावे के साथ तो नहीं कह सकता मगर नित्य सवरे उटत ही पहिल ईश्वर से यही प्रार्थना करता हू कि मुझे इस बुरी हवा से बचाये रहियो। रामसिह ~ ईश्वर ऐसा ही करे । (आसमान की तरफ देख कर ) बादल तो बेतरह घिरे आ रह है ॥ हरनन्दन - हाँ चलो कोठी की छत पर बैठ कर प्रकृति की शोमा देखें। रामसिह - अच्छी बात है चलो। दोनों मित्र धीरे धीरे बातें करते हुए कोठी की तरफ रवाना हुए। छठवां बयान रात दो घण्टे से कुछ ज्यादे जा चुकी है। लालसिह अपन कमर में अकेला बैठा कुछ साच रहा है। सामने एक मोनी शमादान जल रहा है तथा कलम दवात और कागज भी रक्खा हुआहै।कभीकभी जब कुछ ययाल आ जाता है ता उत कागज पर दो तीन पक्तियाँ लिख देता है और फिर कलम रखकर कुछ सोचन विचारन लगता है। कमर के दवांजे बन्द है और पखा चल रहा है जिसकी डोरी कमर के बाहर एक खिदमतगार के हाथ में है। यकायक पखा रुका और लालसिह ने सर उठाकर सदर दर्वाजे की तरफ देखा। कमरे का दवाजा सुला और उसने अपन पखाबंधन दाल खिदमतगार को एक पुर्जा लिए हुए कमरे के उन्दर आते देखा ! खिदमतगार ने पुर्जा लालसिह के आग रख दिया जिसने बड़ गौर से पुजा पहने के बाद पहिले ता नाक-नारदाया तथा फिर कुछ साचविचार कर खिदमतगार से कहा 'अच्छा आनदा इतना कह उसने वह कागज जिस पर जियारा था,उठा कर जेब में रख लिया। खिदमतगार चला गया और उसके बाद ही सूरजतिडने कमरे के अन्दर पैर रक्या । उन्हें दखत ही लालसिंह बढ़ खड़ा हुआ और मजदूरी के साथ जाहिरी खातिरदारीका बर्ताव करके साहव सलामत के बाद अपने पास टारिया: इस समय सूरजसिह अपनी मामूली पोशाक तो पहिरे हुए थे मगर ऊपर त एक बड़ी स्याह चादर से अपने को दम हुए लाल - आज ता आपने मुझ बदनसीय पर पड़ी। कृपा

  • टरनन्दन रामसिह के पिता को चाचाजी कहता था और रामस्हि हरनन्दन पिता का दामा

काजर की कोठड़ी १२३५