पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

R A छिपाए हुए लालसिह तक पहुंचे थे और इस बात का गुमान भी किसी को नहीं हो सकता था कि सूरजसिह लालसिह के पास आवेंगे, दूसरे जब सूरजसिह के साथ लालसिह बाहर चले गए तब पारसनाथ को इस बात की खबर लगी। शैतानी का जाल फैलाने वाला हरदम चौकन्ना ही रहा करता है, अस्तु पारसनाथ का भी वही हाल था।खबर पाते ही वह लालसिह की तरफ गया मगर कमरे के दर्वाजे पर पहुंचते ही उसने सुना कि लालसिह किसी के साथ कहीं बाहर गए है। थोड़ी देर तक उनके आने का इन्तजार किया, जब वे न आए तो लौट कर अपने स्थान पर चला गया मगर इस बात का प्रबन्ध करता गया कि जब लालसिह लौटकर आवे तो उसी समय उसे खबर मिल जाय। तरह-तरह के सोच और विचारों ने उसकी आँखों में नींद को आनेन दिया और वह तीन पहर रात गुजर जाने तक भी अपनी चीरपाई पर करवटें बदलता रहा। इस बीच में लालसिह के लौट आने की भी उसे इत्तिला न मिली, जिससे उसके दिल का खुटका भी और बढता गया। आखिर तरदुर्दा और फिक्रों स हाथापाई करती हुई निद्रा ने उसकी आखों में अपना दखल जमा लिया और वह तीन चार घण्टे के लिए बेखबर सो गया। जब उसकी आँख खुली तो दिन घण्टे भर से कुछ ज्यादे चढ़ चुका था। आँख खुलने के साथ ही वह घबडा कर बैठा और धीरे-धीरे यह बुदबुदाता हुआ अपनी कोठरी के बाहर निकला, ओफ, बडी देर हो गई !चाचा साहब कभी के आ गए होगे ।' उसी समय उसके नौकर ने सामने पडकर उसे इतिला दी, "सर्कार ( लालसिह) वरामदे में बैठे तम्बाकू पी रहे है।" जल्दी-जल्दी हाथ मुंह धोकर वह लालसिह की तरफ रवाना हुआ और जब उनके बरामदे में पहुंचा तो उन्हें कुर्सी पर बैठे तम्बाकू पीते देखा । अदव के साथ झुककर सलाम करने के बाद एक किनार खडा हो गया । लालसिह की कुर्सी के पास ही एक छोटी सी चौकी विछी हुई थी जिस पर इशारा पाकर पारसनाथ बैठ गया और यह बातचीत होने लगी- लाल - रात को तुम कहा चले गए थे ? जब हमने तुमको बुलाया तब तुम घर में न थे * पारस (ताज्तुम से) मै तो रात को घर ही में था । किस समय आपने याद किया था ? लाल - उस समय मैं अपने तरदुदों मे डूबा हुआ था इसलिए ठीक नहीं कह सकता कि कितनी रात गई होगी। पारस-ठीक है तो बहुत रात न गई होगी, क्योंकि जब मैं लौटकर घर आया था तब पहर भर से ज्यादे रात न गई थी। लाल- शायद ऐसा ही हो। पारस - मैं रात को आपके पास आया भी था मगर सुना कि आप किसी अनजान आदमी के साथ बाहर गए है। लाल – उस समय तुम क्यों आए थे? पारस-दो एक नई खबरें जो कल मुझे मिली थीं वही आपको सुनाने के लिए आया था ! मैंने सोचा था कि अगर जागते हो तो इसी समय दिल का बोझ हलका कर लू । लाल- वह कौन सी खबर थी? पारस- उस खबर का असल मतलब यही था कि आज रात हरनन्दन कोरडी के यहा यैठे आपको दिखा सकूँगा। लाल-(कुछ सोचकर) बात तो ठीक है मगर मैं सोचता है कि हरनन्दन को रण्डी के यहा देखने से मेरा मतलब ही क्या निकलेगा? पारस-(कुछ उदास होकर) भला मेरे कहने का आपको विश्वास तो हो जायेगा और मैंने जो आपकी आज्ञा से बहुत कोशिश करके और कई आदमियों को बहुत कुछ देने का वायदा करके इस काम का बन्दोवस्त किया है वह लाल-(लापरवाही के ढग पर) खैरदेने लेने की कोई बात नहीं है उन लोगों को जिनसे तुमने वादा किया है जो कुछ कहोगे यदि उचित होगा तो दे दिया जायेगा और जब हम लोग उनसे काम ही न लेंगे या हरनन्दन को रण्डी के घर देखने ही न जायेंगे, तो उन्हें कुछ देने की भी जरूरत ही क्या है। पारस- आपको अख्तियार है, उसे देखने जाय या न जाय, मगर वे लोग तो अपना काम कर ही चुके हैं, और जब उन्हें कुछ देना पड़ेगा ही तो जरा सा तकलीफ करने में क्या हर्ज है ? और कुछ नहीं तो मुझे आपके आगे सच्चे बनने का - लाल-(बात काटकर ) केवल हरनन्दन को रण्डी के यहाँ दिखा कर तुम सच्चे नहीं बन सकते। तुमने हमें सरला के जीते रहने का विश्वास दिलाया है। पारस- ठीक है मगर मैंने साथ ही इसके यह भी कहा था कि सरला अगर मारी गई तो, या जीती है तो, मगर उसके साथ बुराई करने वाला हरनन्दन ही है। मैं सरला को भी खोज निकालने का बन्दोबस्त कर रहा हूँ मगर उसके पहिले हरनन्दन की बदचलनी दिखा कर कुछ तो अपने बोझ से हलका हो जाऊँगा।

  • यह बात लाल सिह ने बिलकुल झूठ कही।

देवकीनन्दन खत्री समग्र १२३८