पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२३७

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लाल-हॉ सा हो सकता हे नगर मेरा कहना यह है कि पाय तक सरला का ठीक पता न लग जाए दर तक में हरनन्दन की बदचलनी देखकर भी क्या जस लगा लूगा? बिना सबूत के किसी तरह का शक भी तो उस पर नहीं कर सकता!क्योंकि उसका एक दास्त एसा आदमी है जिसकी महाराज कयहाँ बडी इज्जन हे उसका खयाल भी तो करना चाहिए। हॉ अगर सरला का पता लगता हो ता जो कुछ कही देन या खर्च करने के लिए में तैयार हूँ। पारस-सरला का पता भी शीर ही लगा चाहता है। अभी कल ही रन लागान मुझे सरला क जीत रहन का विश्वास दिलाया है जिन लागों ने आज हरनन्दन का रण्डी का यहीं दिखा देने का प्रदन्ध किया है। यदि उनका पहिला उद्योग व्यर्थ कर दिया जायेगा ता आगे किसी काम में उनका जो न लगगा और न फिर व मर काम ने काई उद्योग ही करेंग, बल्कि ताज्जुब नहीं कि मेरी बेइज्जती करन पर उताल हो जायें। लाल- ठीक है रूपया एसी चीज है। रुपये के वास्त लोग सनी कुछ कर गुटरो , भले.मुरे पर ध्यान नही देते। लकिन जिस तरह वे लोग रूपय के लिये तुम्हारी बेइज्जती कर सकते हैं उसी रक्षतुम भी अपना रुपया बचाने दोलिए बइज्जती सह सकते हो। मेरे इस कहन का मतलब यह नहीं है कि भैसलमेट करने स भागता हूँया रुपये का सरलास बद कर प्यार करता हूँ मगर हाँ व्यर्थ रुपये खर्च करना नी दुरा समझता हूँ। यो तो तुम जो कहाग उन लागों के लिए दूगा मगर घडी घडी मर दिल में यही बात पैदा होती है कि रडी के यह हरनन्दन को देख लेन होस मेरा क्या मतलब निकलेगा? मान लिया जाय कि उसकी बदचलनी का सबूत मिल जायगा तो में बिना कष्ट उठाए और चिन्ता रूपय पर्याद किय ही अगर यह मान लू कि हरनन्दन बदचलन है ताइसमें नुकत्तान ही क्या है बल्कि फायदा ही है। इसके अतिरिक्त मैं एक बात और भी सोचता हूं वह यह कि यदि भने रडी के म्लान पर जाकर हरनन्दन को देय लिया ओर उसने मुझे अपने सामन दखकर किसी तरह की परवाह न की या दा एक शब्द बज्दयी के बोलठा तो नुझ कितना रञ्ज होगा? अपने चाचा लालसिह की दारगी और चलती-फिरती बातें सुनकर पारसनाथ कुछ नासम्मीद और उदास हा गया। उसके दिल में तरह तरह के खुटके पैदा होने लगा लालसिह की बातों से उसका दिली भेद का कुछ पता नहीं चलता था और न रुपये मिलने की ही पूरी-पूरी उम्मीद हा सकती थी, अस्तु आज चाँदी को क्या देंगे और कहाँ से देने इस विचार ने उस और भी दुखी किया तथापि दलवती आशा ने उत्तका पीछा न छोड़ा और वह जल्दी के साथ कुछ विचार कर पाला 'आप हरनन्दन को बडा नेक और सुजन समझते हैं, तो क्या उससे ऐसी बेअदबी होने की आशा करते है?' लाल-जब तुम हमारे विचार का रद करके कहत हा कि यह नालायक और ऐयाश है तथा इस बात का सबूत दने के लिए भी तैयार हो अगर मैं तुम्हें सच्चा मानूगा तो जरूर दिल में यह बात पैदा होगी हो कि अगर वह मेरे साथ बेअदबी का मताच करे तो ताज्जुव नहीं । पारस - (कुछ लाजवाब हाकर ) खैर आप बड़े हैं, आपसे बहस करना उचित नहीं समझता जा कुछ आप आदा देंगे मै वही करूगा। लाल-- अच्छा इस समय तुम जाआ मै स्नान- पूजा तथा भाजन इत्यादि से छुट्टी पाकर इस विषय पर विचार कलगा फिर जो कुछ निश्चय होगा तुम्हें बुलावा कर कहूंगा। उदास मुख पारसनाथ अपन चाचा के पास से उठाकर चला गया और उसके रोय तथा बातों की उलझन में पड़कर यह भी पूछ न सका कि आप रात को किसके साथ कहाँ गए थे? आठवां बयान अब हम अपने पाठकों को एक एसी कोठरी म ले चलत हैं जिसे इस समय कैदखाने के नाम स पुकारना बहुत उचित होगा मगर यह नहीं कह सकत कि यह कोठरी कहाँ पर और किसके आधीन है तथा इसके दाजे पर पहरा देने वाले कौन व्यक्ति है। यह कोठरी लम्बाई में पन्दह हाथ और चौडाई में दस हाथ से ज्यादे न होगी चारो सग्ला का हम इस समय इसी कोठरी में हथकडी बेडीस मजयूर देखते है। एक तरफ काने में जलते हुए चिराग की रोशनी दिखा रही है कि अभी तक उस बेचारी के बदन पर वे ही साधारण कपड मौजूद है जो ब्याह वाले दिन उसके बदन पर थे जिन कपडो के सहित वह अपने प्यारे रिश्तेदारों से जुदा की गई थी। हाँ उसके बदन में जो कुछ जेवर उस समय मौजूद चउरमें से आज एक भी दिखाई नहीं देते। यद्यपि इस वारदात को गुजर अभी बहुत दिन नहीं हुए मगर दखन वालों की आखों में इस समय पर वर्षों की बीमार मालूम हाती है। शरीर सूख गया है और अन्धेरी कोठरी में बन्द रहन के कारण रग पीला पड़ गया है। उसके तमाम बदन का खून पानी हो कर बडी बडी आखो की राह बाहर निकल गया और निकल रहा है। उत्तक स्वसूरत चेहरे पर इस समय डर के साथ उदासी और नाउम्मीदीनी छाई हुई है और दह न मालूम किस धमाल या किस दद को तकलीफ से अधमूई होकर जमीन पर लेटी है। यधपि वह वास्तव में खूबसूरत नाजुक और मोली माली लड़की है नगर काजर की कोठडी १२३९