पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२३८

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Ja इस समय या इस र्दुदशा की अवस्था में उसकी खूबसूरती का बयान करना विल्कुल अनुचित सा जान पडता है इसलिए इस विषय को छोड कर हम असल मतलव की बातें बयान करते है। सरला के हाथों में हथकडी और वेडी पडी हुई है और वह केवल एक मामूली चटाई केऊपरलेटी हुई ऑचल से मुंह छुपाए सिसक-सिसक कर रो रही है। हम नहीं कह सकते कि उसके दिल में कैसे कैसे खयालात पैदा होते और मिटते है अथवा वह किन विचारों में डूबी हुई है। यकायक वह कुछ सोचकर उठ बैठी और इधर-उधर देखती हुई धीरे से बोली तो क्या जान दे देने के लिए भी कोई तरकीब नहीं निकल सकती?' इसी समय उस काटरी का दरवाजा खुला और कई नकाबपोश एक नए केदी को उस कोठरी के अन्दर डालकर बाहर हो गए। कोठरी का दरवाजा उसी तरह से बन्द हो गया। जब वह कैदी सरला के पास पहुंचा तो सरला उसे देख कर चौकी और इस तरह उसकी तरफ झपटी जिसस मालूम होता था कि यदि सरला हथकडी से जकडी हुई न होती तो उस कैदी से लिपट कर खूब रोती, मगर मजबूर थी इसलिए हाय भैया! कहकर उसके पैरों पर गिर पड़ने के सिवाय और कुछ भी न कर सकी। यह कैदी सरला का चचेरा भाई पारसनाथ था। उसने सरला के पास बैठ कर आसू बहाना शुरू कर दिया और सरला तो ऐसा रोई कि उसके हिचकी वध गई। आखिर पारस ने उसे समझा-बुझा कर शान्त किया और तब उन दोनों में यों बातचीत होने लगी- सरला - भैया क्या तुम लोगों को मुझ पर कुछ भी दया ना आई? और मेरे पिताजी भी मुझे एक दम भूल गये जो आज तक इस बात की खोज तक न की कि सरला कहाँ और किस अवस्था में पड़ी हुई है ? पारस-मेरी प्यारी बहन सरला क्यिा कभी ऐसा हो सकता था कि हम लोगों को तेरा पता लगे और हम लोग चुपचाप बैठे रहें ! मगर क्या किया जाये, लाचारी से हम लोग कुछ कर न सके | जब से तू गायव हुई है तभी से में तुम्हारी खाज में लगा हुआ था मगर जब मुझे तरा पता लगा तब मै भी तेरी तरह उन्ही दुष्टों का कैदी बन गया जिन्होंने रूपये की लालच में पड कर तुझे इस दशा को पहुंचाया। सरला - मैं ता अभी तक समझे हुई थी कि तुम्ही ने मुझे इस दशा को पहुंचाया क्योंकि न तुम मुझे बुलाकर चोर-दर्वाजे के पास ले जाते और न मैं इन दुष्टों के पंजे में फंसती । पारस- राम राम राम यह बिल्कुल तेरा भ्रम है। मगर इसमें तेरा कुछ कसूर नहीं। जब आदमी पर मुसीबत आती है तब वह घबडा जाता है यहा तक कि उसे अपने पराये की मुहब्बत का भी कुछ खयाल नहीं रहता, और वह दुनिया भर को अपना दुश्मन समझने लगता है। अगर तूने मेरे बारे में कुछ शक किया तो यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है। सरला- मगर नहीं अब मुझे तुम पर किसी तरह का शक नहीं लेकिन तुम यह बताओ कि आखिर हुआ क्या ? पारस- वास्तव में मै चाचाजी की आज्ञानुसार तुझे बाहर की तरफ ले चला था मगर मुझे इस बात की क्या खबर थी कि दर्वाजे ही पर दस यारह दुष्ट मिल जायेंगे। सरला - तय क्या मेरे पिताजी ने ऐसा किया और उन्होंने ही इन दुष्टों को दर्वाजे पर मुस्तैद करके मुझे उस रास्ते से बुलवाया था? पारस- हरे हरे हरे । वे बेचारे तो तेरे बिना मुर्दे से भी बदतर हो रहे है। जब से तू गायब हुई है तब से उनका ऐसा बुरा हाल हो गया है कि मै कुछ बयान नहीं कर सकता। सरला - तब यह सब बखेड़ा हुआ ही कैसे? पारस- जब वे लोग तुझे जर्बदस्ती उठाकर घर से बाहर निकले तो मैंने उनका पीछा किया मगर दर्वाजे के बाहर निकलते ही उनमें से एक आदमी ने घूमकर मुझे ऐसा लट्ठ मारा कि चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा और दो घण्टे तक मुझे तनोवदन की सुध न रही। आखिर जब मैं होश में आया, तो धीरे धीरे चल कर चाचा जी के पास पहुंचा और उनसे सब हाल कहा। बस उसी समय चारों तरफ रोना पीटना मच गया पचासों आदमी इधर-उधर तुम्हें खोजने के लिए दौड गए तरह तरह की कार्यवाइयाँ होने लगी। मगर सब व्यर्थ हुआ, न तो तुम्हारा ही पता लगा और न उन दुष्टों ही की कुछ टोह लगी। यह खबर तुम्हारे ससुराल वालों को भी पहुंची और वहाँ भी खूब रोना-पीटना मच गया। मगर हरनन्दन पर इस घटना का कुछ भी असर न पड़ा और वह महफिल में से उठकर बॉदी रण्डी के डेरे पर चला गया जो उसके यहाँ नाचने के लिए गई थी। जब लोगों ने उसे इस नादानी पर शर्मिन्दा करना चाहा तो उसने लोगों को ऐसा उत्तर दिया कि सब कोई अपने कान पर हाथ रखने लगे और उसका याप भी उससे बहुत रज हो गया। सरला--(हरनन्दन की खबर सुन दुख और लज्जा से सिर नीचे करके) खैर यह बताओ कि आखिर मेरा पत! तुम्हें कैसे लगा? पारस- मे सब कुछ कहता हूँ तुम सुनो तो सही। हॉ तो हरनन्दन की बात तुम्हारे पिता को मालूम हुई तो उन्हें बडा ही क्रोध चढ़ आया। उन्होंने मुझे बुलाकर सब हाल कहा और यह भी कहा कि मुझे यह सब कार्रवाई उसी हरनन्दन की मालूम पडती है अस्तु तुम पता लगाओ कि इसका असल भेद क्या है ? इस मामले में जो कुछ खर्च होगा मैं तुम्हें दूंगा। देवकीनन्दन खत्री समग्र ? १२४०