पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

lari - बस उसी समय से मैने अपनी जान हथेली पर रख ली और तुम्हें खोजने के लिए घर से बाहर निकल पड़ा। इस कार्रवाई मक्या.क्या तकलीफें उठानी पड़ी और मैंने कैसे-कैसे काम किए इसका कहना व्यर्थ है। असल यह है कि मुझे शीघ इस बात का पता लग गया कि यह सब जाल हरिहरसिंह के फैलाए हुए है जिसके साथ तुम्हारी यह मौसेरी बहन 'कल्यानी याही गई थी जो आज इस दुनिया में तुम्हारा दुख देखने के लिए न रह कर वैकुण्टधाम चली गई। सरला - मैन हरिहर सिह का क्या बिगाडा था जो उसने मेरे साथ ऐसा सलूक किया? मरे पिता ने भी ता उसक साथ किसी तरह की बुराई नहीं की थी? पारस- ठीक है मगर मैं इसका सयव भी तुमसे बयान करता हूँ, तुम सुनती चला। तुम्हारे पिता न जो वसीयतनामा लिखा है उसका हाल तो तुम्हें मालूम ही होगा? सरला -- हों में अपनी माँ की जुयानी उसका हाल सुन चुकी हूँ। पारस-बस वही वसीयतनामा तुम्हारी जान का काल हो गया और उसी रूपये की लालच में पड़ कर हरिहर ने एसा किया। सरला बहुत ही नक बुद्धिमान तथा पढ-लिखी लडकी थी। यद्यपि उसकी अवस्था कम थी मगर उसकी पतिव्रता और बुद्धिमान माता ने उसके दिल में नकी और बुद्धिमानी की जड कायम कर दी थी और वह इसीलिए ऊची नीची बातों को बहुत नहीं तो थाडा-बहुत अवश्य समझ सकती थी मगर इतना होन पर भी वह न मालूम क्या सोच कर पूछ बैठी-- 'क्या ऐसा करने से हरिहर को मेरे बाप की दौलत मिल जायगी? इसके जवाब में पारसनाथ ने कहा- पारस - हाँ मिल जायेगी अगर उसकी शादी तुम्हार साथ हो जायगी ता । सरला - मगर उस हालत में ता उसमें से आधी दौलत तुम लोगों को भी मिलने की आशा हो सकती है। पारस- (कुछ झेंपकर) हाँ तुम्हारे पिता की लिखावट का मतलव ता यही है मगर हम लोग एसी दौलत पर लानत भेजते हैं जिसमें तुम्हारा और चाचा जी का दिल दुखे हाँ इतना जरूर कहेंगे कि जान से ज्याद दौलत की कदर न करनी चाहिए और इस ममय तुम्हारे हाथ में कम से कम चार आदमियों की जान तो जरूर है अगर अपनी जान नहीं ता अपने प्यारे रिश्तेदारों की जान का जलर ही खयाल करना चाहिए। सरला - ( कुछ चौक कर ) मरी समझ में न आया कि तुम्हार इस कहन का मतलब क्या है ? पारस - यस यही कि अगर तुम हरिहरसिह के साथ ब्याह करना स्वीकार कर लोगी तो इस समय तुम्हारी तुम्हारे पिता की तुम्हारी माता की और साथ ही मेरी भी जान बच जाएगा और स्पया-पैसा तो हाथ-पैर का मैल है तथा यह बात भी मशहूर है कि लक्ष्मी किसी के पास स्थिर भाव स नहीं रहती इधर-उधर डोला ही करती है। सरला-क्या हम लोगों में से किसी औरत का दूसरा ब्याह भी होता है । मैं तो दिल से समझे हुए हूँ कि मेरी शादी हा चुकी हाँ इसमें कोई सन्दह नहीं कि मैं अपनी जान समर्पण करके तुम लोगों की जान बचा सकती हूँ मगर उस ढग स नहीं जिस ढग स तुम कहत हो क्योंकि मेर पिता क जीत जी न तो वह वसीयतनामा ही कोई चीज है और न किसी को उनकी दौलत ही मिल सकती है। नतीजा यही हुआ कि जिस लालची को मै धर्म-त्याग करके स्वीकार कर लूँगी वह मेरे बाप की दौलत शीघ्र पान की आशा स मेर पिता का अवश्य मार डालेगा और ताज्जुब नहीं कि अब भी उनके मारने का उद्योग कर रहा हो। हॉ एक दूसरी तरकीब से उन लोगों की जान अवश्य बच जायेगी जो मैं अच्छी तरह सोच चुकी पारस- ( बात काट कर ) न मालुम तुम कैसी अनहोनी बातें सोच रही हो जिनका न सिर है न पैर । सरला - जो कुछ मैन सोचा है वह बहुत ठीक है। मेरे साथ चाहे कितनी बुराई की जाय या मेरी बोटी-बोटी भी काट डाली जाय मगर मै अपनी दूसरी शादी कदापि न करूँगी । तुम मुझे यह नहीं समझा सकत कि यह दूसरी शादी नहीं है और न तुम्हारा समझाना में मान सकती हूँ मगर हाँ मैं किसी के साथ शादी न करके भी अपने पिता की जान दो तरह से बचा सकती हूँ और इसमें किसी तरह की कठिनाई भी नहीं है। पारस-खैर और बातों पर तो पीछे बहस करूँगा पहिले यह पूछता हूँ कि वे दोनों ढग कौन से हैं जिनसे तुम हम लोगों की जान बचा सकती हो। सरला- उनमें से एक ढग तो मै नहीं यता सकती मगर दूसरा ढग साफ-साफ है कि मरी जान निकल जाने हो से बखेडा त हो जायेगा। पारस- यह सब सोचना तुम्हारी नादानी है । अगर तुम अपने हिन्दू धर्म को जानती होती या काई शास्त्र पढी होती तो मेरी बातों पर विश्वास करतीं यह न सोचती कि मेरी शादी हो चुकी अय जा शादी होगी वह दूसरी शादी कहलावेगी और जान दन में किसी तरह का सरला - (वात काटकर) अगर में कोई शास्त्र नहीं भी पढी तो भी शास्त्र के असल मर्म को अपनी माता की कृपा से अच्छी तरह समझती हूँ। उसने मुझे एक ऐसा लटका बता दिया है जिससे पूरे धर्मशास्त्र का भेद मुझे मालूम हो गया है। उसने मुझे कहा था कि बेटी जो चित्त को बुरी मालूम हो या जिस बात के ध्यान से दिल में जरा भी खटका पैदा काजर की कोठडी १२४१