पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२४३

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Fol जानती हो कि यह सब कार्रवाई तुम्हारे ही लिए की जा रही है और इस काम में जो कुछ मिलेगा उसका मालिक सिवा तुम्हारे दूसरा कोई नहीं हो सकता तुम जो कुछ हाथ उठा कर मुझे दे दागी वही मेरा होगा। बॉदी-यह सब टीक है, मुझ तुमस रुपये-पैसे की लालच कुछ भी नहीं है मै तो सिर्फ तुम्हारी माहव्यत चाहती हूँ, मगर क्या करूँ अम्मा के मिजाज से लाचार हूँ। आज बात ही बात में तुम्हारा जिक्र आ गया था तब अम्मा बोली 'मैं तो दो ही तीन दिन की मेहनत में सरला को राजी कर लूँ मैं ही नहीं बल्कि मरी तीब से तू भी वह काम कर सकती है मगर मुझे फायदा ही क्या जो इतना सिस्खप्पन करूँ ! मैंने बहुत कुछ कहा कि अम्मा वह तर्कीब मुझे बता दो मैं उनका काम कर दूंता मुझे नी फायदा होगा मगर उन्होंने एक न मानी बोली कि फलाने फलान ढग से मेरी दिलजमयी कर दी गय तो मैं सब कुछ कर सकती हूँ। जो किसी के किये न हो सके वह हमलाग कर सकती हैं। उन्हीं की बात मुझे इस समय याद आ गई. तब मै तुमसे कह बैठी कि अगर मैं ऐसा कलॅतो मुझे क्या इनाम मिलेगा नही तो मैं भला तुमसे क्या मॉगूगी। खैर इन बातों को जाने दो, अम्मा तो पागल हो गई है तुम जो कुछ कर रहे हो करो उनकी बातों पर ध्यान न दो। पारस-नहीं नहीं तुम्हें ऐसा न कहना चाहिय, आखिर जो कुछ तुम्हारी अम्मा के पास है या रहेगा वह सब तुम्हारा ही तो है, और अगर मैं इस समय उनकी इच्छानुसार कुछ कलॅगा तो उसमें तुम्हारा ही फायदा है। मेर दिल का हाल तो तुम जानती ही हो कि मैं तुम्हारे मुकाबले में किसी चीज की भी हकीकत नहीं समझत । खैर पहिल यह बताआ कि वे चाहती क्या थी? चाँदी-अजी जान भी दा उनकी दातों में कहा तक पडाग? यह ना कहेंगी कि अपना घर उठाकर ददो तो कोई क्या अपना घर उठा कर दे देगा? पारस - और काई चाहे न दे मगर मै तो अपना घर तुम्हारे ऊपर न्याछावर किये बैठा हूँ, अस्तु मैं सब कुछ कर सकता हूँ। तुम कहो भी तो सही मतलय तो अपना काम होने से है। बादी - ( सिर झुकाती हुई नखरे के साथ , मैं क्या कहूँ, मुझसे तो कहा नहीं जाता ।। पारस-फिर वही नादानी की वात !तुम ता अजय देवकूफ ओरत हो !कहो कहो तुम्हें मरे सर की कसम कहा तो सही वे त्या मॉगती थीं? गॉदी- कहती थीं कि इस समय ता सरला क कुल गहन मुझ ददाजा व्याह बाल दिन उस वक्त उसके बदन पर यजव तुम लागों न उसे घर से बाहर निकाला था और जय तुम्हारा काम हो जाय अर्थात् सरला प्रसन्नता से दूसरे के साथ शादी कर ले बल्कि सभी स खुल्लमखुल्ला कह दे कि हाँ यह शादी मैन अपनी खुशी से की है तब दस हजार रूपया नक्द मुझे मिले ! मगर वे चाहती है कि स्यय की बाबत आप एक पुर्जा पहिले ही लिख कर उन्हें द दें। बस यही तो बात है जा अम्मा कहती थी। पारस-तो इसमें हर्ज ही क्या है ? आखिर वह रूपया जो मुझे मिलेगा तुम्हारा ही तो है। फिर आज अगरदसहजार देने का पुर्जा पहिले मै लिय ही दूगा तो क्या हर्ज है ? मगर एक बात जरा मुश्किल है। बांदी- वह क्या? पारस - महने जो सरला के बदन पर थ उनमें से आध के लगभग ता हम लोगों न बेच डाले है। बाँदी-ता हर्ज ही क्या है जो कुछ हा उन्हें कह सुनकर ठीक कर लूंगी आखिर कुछ भी मरी बात मानेंगी या नहीं? ऐसी ही जिद्द करन पर उतारू होंगी ता में उनका साथ ही छाड दूंगी 1 वाह जिस मै प्यार करती हूँ उसी का वह मनमाना सतावेगी । यह मुझस बप्ति न हो सकेगा। अच्छा ता युलाऊँ निगोडी अम्मा को ? पारम- हो हो बुलाआ पुर्जा ता इसो समय लिख देता हूँ और बर्थ हुए गहने कल इसी समय लेकर हाजिर हा जाऊँगा। नगर तुम उन्हें निगोडी क्यों कहती हो ? वह बडी है उन्हें ऐसा न कहना चहिए..! वॉदी- (तनक कर ) उह जब कि वह मरी तबीयत के खिलाफ करके मेरा दिल जलाती है तो मैं उन्हें कहने स कर बाज आती हूँ। इतना कह कर बाँदी चली गई और थोड़ी ही दर में अपनी अम्मा को साथ लेकर चली आई। उस समय उस निगाडी अम्मा क हाथ में कलम दवात और कागज भी मौजूद था। 'बडे-बडे मरातचे हों अल्लाह सलामत रक्ख इत्यादि कहती हुई वह पारसनाथ के पास बैठकर धीर-धीरे बातें करन लगी और थोडी ही दर में उल्लू बनाकर उसन पारसनाथ से अपनी इच्छानुसार पुर्जा लिखवा लिया । मामूली सिरनामे क बाद उस पुर्जे का मजमून यह था -- वादी की अम्माजान रसूलवादी म मै एकसर करता हू कि उसकी कोशिश से अगर सरला (जो इस समय हमारे कब्ज में है) मेरी इच्छानुसार हरनन्दन के अतिरिक्त किसी दूसरे के साथ प्रसन्नता पूर्वक विवाह कर लगी ता में रसूलबादी का दस हजार रुपये नकद दूगा। गुर्जा लिखया कर बुढिया विदा हुई और बादी पारसनाथ का अपन नखरे का आनन्द दिखाने ल। मगर पारस- नाथ के लिये यह खुशकिस्मती का समय घण्टे भर सज्वाद देर तक के लिये न था क्योंकि इसी बीच में लौडी ने हरनन्दन दाबू के आन की इनिला दी जिसे सुनकर पारसनाथ ने बादी से कहा ला तुम्हारे हरनन्दन बाबू आ गए अब मुझे विदा करो। काजर की कोठडी १२४५