पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२४५

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दादी की अम्मा – यकीनता है कि हरनन्दन बाबू भी सरला क बारे में चिटठी लिख देंग जब उन्हें सरला से कुछ मतलब ही नहीं रहा तो चिट्ठी लिख दन में उनको हर्ज क्या है ? सुलतानी-अगर वे लिखन में कुछ होला करें ता मुझ उनक सामन ले चलियेगा फिर देखियगा कि मैं किस तरह समझा लेती हूँ। इसी तरह की बाते इन दोनों में देर तक हादी रहीं टिप्स विस्तार क साथ लिखनदी काई जरूरत नहीं हा बादी और हरनन्दन बाबू का तमाशा देखना जरूरी है। हरनन्दन बाबू की खातिरदारी का कहना ही कया? वादी न इन्हें सोन की चिडिया समझ रक्खा था और समय तथा आवश्यकता न इन्हें भी दाता और भाला-भाला ऐयाश चनन पर मजबूर किया था। दिल में जो कुछ धुन समाई थी उसे पूरा करने के लिय हर तरह की कार्रवाई करन का हौसला बाध लिया था मगर बादी इन्हें आधा येवकूफ समझती थी। बादी को विश्वास था कि हरनन्दन का दिल हाथ में कर लना उतना मुश्किल नहीं है जितन्ग पारसनाथ का-और इन्हीं सयबों से इनकी खातिरदारी ज्यादा हाती थी। हरनन्दन याबू बड़ी खातिर और इज्जत के साथ उसो ऊपर वाले बगल में बैठाय गए। बरसन वाले बादल के घिर आने स पैदा भई हुई उमत्त ने जो गर्मी बढा रज्यो थी उस दूर करने के लिय नाजुक पखी ने बादी क कोमल हाथों का सहारा लिया और इस बहाने स समय के खुशनसीब हरनन्दन यादू का पतीना दूर किया जाने लगा। आह मरा दिल इतना बर्दाश्त नहीं कर सकता ! यह कह कर हरनन्दन बाबू ने चाँदी के हाथ स पखी लेनी चाही मगर उसने नहीं दी और मुहब्बत के साथ झलती रही।दा ही चार दफ की हॉ-नहीं के बाद इस नखर का अन्त हुआ और इसके बाद मीठी- मीठी राते होन लगी। हरनन्दन -- मालूम होता है फरसनाथ आया था ? बाँदो-(मुस्कुरानी हुई) जी हाँ। हरनन्दन-है या गया? बोंदी- (मुस्कुराती हुई)या ही होगा। हरनन्दन--इसके क्या मानी ! क्या तुम नहीं जानती किं वह है या गया? वादी--जो हाने नहीं जानती क्याक्जिा आपके आन की यर हुई तब मैंने उसे पायखान में छिपे रहन को सलाह दो क्योंकि उसे आपका सामना करना मजूर न था और मुझ भी उसके छिपने के लिए इससे अच्छी जगह दूसरी कोई न हरनन्दन - टीक है रडियों के घर में आकर पायखान में छिपना उगालदान का उठाना तलदे में गुदगुदाना अथवा नाक पर हँसी का युलाना बहुत जरूरी समझा जाता है बल्कि सच ता यों है कि ऐयाशी के सुन्नसान मैदान में ये ही दो चार खुशनुमा दरख्त हरारत को दूर करने वाले है। बाँदी-(दिल में शरम्गती मगर जाहिर में हँसती हुइ) आप भी अजब आदमी है। मालूम हाता है आपने खानगियों के बहुत से कित्त सुन है मगर किसी खानदानी रण्डी की शराफत का अभी अन्दाजा नहीं किया है । हरनन्दन - ( हॅस पर ) ठीक है या अगर आन्दाजा किया है तो पारसनाथ ने । बांदी-(कुछ झेपकर) यह दूसरी बात है। जैसा मुंह दैसी थपेड। न मैं उत्तके लिये रण्डी हू और न वह मरे लिये लायक सर। वह दिवालिया और चांगला सर और मैं अम्मा के दबाव से जेरयार । हाँ अगर आप जैसा सर्दार मुझे मिला होता ता मै दिखाती कि खानदानी रण्डी की दफादारी किस कहते हैं । (अपना कान छूकर )शारदा की कसम हम लोग उन खानगियों में नहीं हैं जिन्होंन हमारी कौम की बदनामी कर रक्खी है। हरनन्दन-(प्यार सबोंदी का अपनी तरफ खेंचकर) येशक देशक! मुझे भी तुमसे ऐसी ही उम्मीद है और इसी ख्याल से मैन अपन को तुम्हारे हाथ बेच डाला है। बॉदी-(हरनन्दन के गले में हाथ डाल कर ) मै ता तुम्हारे कहन से और तुम्हारे काम का ख्याल करके उस मुडी-काटे से दो-दा बातें भी कर लेती हूँ, नहीं तो उसके नाम पर थूकना भी नहीं चाहती। हरान्दन-(इस बहस का बढाना उचित न जानकर और बॉदीको बगल में दवा कर) मारो कम्बख्त को जाने भी दा कहा का पचडा ले वैठी हा ! अच्छा यह बताओ वह कब से बैठा हुआ था? चादी-कम्बख्त दा घण्टे समगज चाट रहा था। हरनन्दन - मरा जिक्र तो आया ही होगा? वादी- मला उसका भी कुछ पूछना है । हरनन्दन-क्या-क्या कहता था? पादी-बस वही सरला वाली बातें न ता उस कम्बख्त स कई दफेव्हा कि अब हरनन्दन बाबू सरला से शादी न करेंग नगर उनका विश्वास ही नहीं हाता और विश्वास न होने का एक सबब भी है। कांजर की कोठडी १२४७