पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२४६

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हरनन्दन - वह क्या ? बादी- तुमने चाहे अपन दिल से सरला को भुला दिया है मगर सरला ने तुम्हें अभी तक नहीं भुलाया। हरनन्दन - इसका क्या सबूत है ? वादी- इसका सबून यही है कि वह ( पारसनाथ } कैदी बन कर उस कैदखाने में गया था जिसमें सरला कैद है और सरला को कई तरह समझा-बुझा कर दूसरे के साथ च्याह करने के लिए राजी करना चाहा था मगर उसने एक न मानी। हरनन्दन - (ताज्जुब के ढग से) हाँ । उसने तुमसे खुलासा कहा कि किस तरह से सरला के पास गया और क्या- क्या बातें हुई? यादी 1- जी हाँ उसने जो कुछ कहा है मै आपको बताती हूँ। इतना कहकर बादी ने वह हाल जिस तरह पारसनाथ से सुना था उसी तरह बयान किया जिसे सुनकर हरनन्दन ने कहा, अगर ऐसा है तो मुझे भी कोई तर्कीव करनी चाहिए जिसमें सरला के दिल से मेरा खयाल जाता रहे। वादी- इससे बढकर और कोई तर्कीव नहीं हो सकती कि तुम उसे केद से छुडाकर उसके साथ व्याह कर लो। मैं इस काम में हर तरह से तुम्हारी मदद करने के लिए तैयार हूँ बल्कि उसका पता भी करीब-करीय लगा चुकी हूँ। दो ही एक दिन में बता दूंगी कि वह कहाँ और किस हालत में है साथ ही इसके में यह भी खुदा कि कसम खाकर कहती हूं कि मुझे इस बात का जरा भी रज न होगा बल्कि मुझे एक तरह पर खुशी होगी क्योंकि मेरा दिल घड़ी-घडी यह कहता है कि सरला जब इस बात को जानेगी कि मेरा कैद से छूटना और अपने चहेते के साथ व्याह का होना बादी की बदौलत है तो वह मुझे भी प्यार की निगाह से देखेगी और ऐसी हालत में हम दोनों की जिन्दगी बड़ी हँसी-खुशी के साथ बीतेगी। हरनन्दन-(यादी की पीठ पर ठोक के ) शाबाश ! क्यों न हो ! तुम्हारा यह सोचना तुम्हारी शराफत का नमूना है। मगर बादी । मे क्या करूँ लाचार हूँ कि मेरे दिल से उसका ख्याल बिल्कुल जाता रहा और अब मैं उसके साथ शादी करना बिल्कुल पसन्द नहीं करता। मैं नहीं चाहता कि मेरी उस मुहब्बत में कोई भी शरीक हो जो मैंने खास तुम्हारे लिय उठा रक्खी है। बादी- मेरे ख्याल से तो कोई हर्ज नहीं है। हरनन्दन नहीं नहीं, ऐसी बातें मत करो और अब कोई ऐसी तर्कीव करो जिससे उसके दिल से मेरा ख्याल जाता रहे। यादी -- (दिल में खुश होकर ) खैर तुम्हारी खुशी मगर यह बात तभी हो सकती है जब वह तुम्हारी तरफ से बिल्कुल नाउम्मीद हो जाय और उसकी शादी किसी दूसरे के साथ हा जाय। हरनन्दन --हों तो मैं भी तो यही चाहताहूँ मगर साथ ही उसके इतना जरूर चाहता हूं कि वह किसी नेक के पाले पड़े। बादी -- अगर मेहनत की जाय तो ऐसा भी हो सकता है मगर यह काम किसी बड़े चालाक के किए ही हो सकता है जैसी कि इमामीजान हरनन्दन - कौन इमामीजान ? वादी- इमामीजान एक खपीस बुढिया है जो बडी चालाक और धूर्त है। कभी-कभी अम्मा के पास आया करती है। मै तो उसे देख के ही जल जाती हूँ। हरनन्दन-खैर मेरे लिये तुम इतनी तकलीफ और करके इमामीजान को इस काम के लिये मुस्तैद करो मगर वह वताओ कि इमामीजान को सरला के पास पहुंचने का मौका कैसे मिलेगा? बॉदी - इसका इन्तजाम में कर लूँगी किसी न किसी तरह आपका काम करना जरूरी है। मैं पारसनाथ को कई तरह से समझा कर कहूँगी कि अगर सरला तुम्हारी यात नहीं मानती तो मैं एक औरत का पता बताती है तुम उसे सरला के पास ले जाओ बशक वह सरला को समझा कर दूसरे के साथ व्याह करने पर राजी कर देगी। उम्मीद है कि पारसनाथ इस बात को मजूर करके इमामी का सरला के पास ले जायेगा, बस हरनन्दन - बस बस बस मैं समझ गया। यह तर्कीब बहुत ही अच्छी है और पारसनाथ इस बात को जरूर मा। लेगा। वादी-मगर फिर यह भी तो उस बताना चाहिए कि वह किसके साथ व्याह करने पर सरला को राजी करे? हरनन्दन-मैं सोचकर इसका जवाब दूगा, क्योंकि इसका फैसला पहिले करना होगा कि वह आदमी भी सरला के साथ ब्याह करने से इन्कार न करे जिसके साथ उसका सम्बन्ध होना मैं पसन्द करूँ। बादी - हाँ यह तो जरूर होना चहिए साथ ही इसके इसका बन्दोवस्त भी बहुत जरूरी है कि सरला के दिल से तुम्हारा ध्यान जाता रहे और उसे तुम्हारी तरफ से किसी तरह की उम्मीद बाकी न रहे। 1 . देवकीनन्दन खत्री समग्र १२४८