पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२४९

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राम-ईश्वर न कर कोई इन कम्बख्त रडियों के फर में पड़ इनकी चालबाजियों को समझना बडा ही कठिन है। इस रास्ते में चलने वाले बड़-बडे धूतों और चालाकों को मुँह के बल गिरत में अपनी आँखों से देख चुका हूँ। हरनन्दन- ठीक है, मेरा भी यही कौल है मगर मेरे बार में तुम इस तरह की बदगुमानियों को दिल में जगह न दो। कोई बुद्धिमान और पढ़ा-लिखा आदमी इन लोगों के हथकडे में पड कर वरवाद नही हो सकता चाहे वह अपनी खुशदिली के सत्य इन लागों की नोहबत का शौकीन ही क्यों न हो ! राम - कनी नहीं मेरा दिल इस बात का नहीं मान सकता यद्यपि यह हो सकता है कि तुम उसकी मुट्ठी में न आओ. क्योंकि साहवत थाड दिन की और दूसर खयाल से है, तिस पर मैं डडा लिए हरदम तुम्हारे सर पर मुस्तैद रहता हूँ नगर जो आदमी अपना दिल खुश करने की नीयत से इनकी साहयत में बैठेगा वह बिना नुकसान उठाव वेदाग नहीं बच सकता चाह वह कैसा ही चालाक क्यों न हो। और जिस पर रडी आशिक हो गई वह ता जड मूल से नाश हो गया। जो रडियां की बातों पर विश्वास करता है उस पर ईश्वर भी विश्वास नहीं करता।क्या तुम्हें याद नहीं है कि पहिले पहिल जब इन तुन दानों अपने दास्त नारायण के जिद्द करन पर गौहर के मकान पर गये थे तो दाजे के अन्दर घुसते समय पैर कॉपले थ मगर जब ऊपर जाकर उसक सामन दो घण्टे वेट चुके तब वह बात जाती रही और यह सोचने लगे कि यहाँ की किस बात का लाग दुरा कहत है ? हरनन्दन- ठीक है और इसमें भी काई सन्देह नहीं कि इस दुनिया में जितनी बालें एय की गिनी जाती है उन समों में निपुणता भी इन्हीं की कृपा का फल होता है। झूठ बोलना वहाना करना बात बनाना येईमानी या दगाबाजी करना इत्यादि का इन्की सोहबत का साधारण और मामूली पाट है मगर साथ ही इसके पुगन विद्वानों का यह भी कौल है कि 'इनकी साहदत के बिना आदमी चतुर नहीं हो सकता । यह बात मै इस खयाल से नहीं कहता कि इनकी साहबत मुझ पसन्द है बल्कि एक मामूली तौर पर कहता हूँ। राम-(मुस्कुरा कर) काजर की कोठरी में कैसहूं सयानो जाय काजर की रेख एक लागिह पे लागिहै ! और कुछ नहीं ते इन दो ही दिनों की सोहबत का इतना असर ता तुम पर हो ही गया कि इनकी सोहवत कुछ आवश्यक समझने लगा हरनन्दन - नही नहीं मरे कहने का यह मतलब नहीं था तुम ता खामखाह की बदगुमानी करते हो रान- अच्छा अच्छा,दूसरा ही मतलय सहीं मगर यह तो बताआ कि क्या आप जिनींदार लाग कम धूर्त और चालाक तथा फरेबी होते हैं? हरनन्दन-(हॅसकर) बहुत खासे ! अब आप दूसरे रास्त पर चलें तो क्या आप जिमींदारों की पक्ति से बाहर हैं? राम-(हँसकर) खैर इन पचों को जाने दो ऐसी दिल्लगी तो हमारे तुम्हार चीच बहुत दिनों तक होती रहगी हॉ यह बताओ कि अब टुन वादी के यहाँ कब जाओगे? हरनन्दन - आज तो नहीं मगर कल जरूर जाऊँगा तब तक यकीन है कि सब काम ठीक हुआ रहेगा। राम- अब केवल दिन और समय ठीक करना ही बाकी है? हरनन्दन - उसका निश्चय तो तुम ही करोगे। राम-अगर बॉदी से सरला का पता लग गया होता तो ज्यादे तकलीफ करने की जरूरत न पड़ती और सहज ही में सब कान हो जाता। हरनन्दन-मैने बहुत चाहा था कि वह किसी तरह सरला का पता बता दे मगर कम्बख्त ने बताया नहीं और कहने लगी कि मुझ मालूम ही नहीं, मैने भी ज्यादे जोर देना उचित न जाना। राम-खैर कोई हर्ज नहीं हमारा यह हाथ नी भरपूर बैठगा मगर इन सब बातों कोखवर महाराज को अवश्य कर देनी चाहिय। हरनन्दन -- तो चलिए शिवनन्दन से मिलते हुए महाराज से भी मुलाकात कर आवें। राम - अच्छी बात है ऊमी गाडी तैयार करने के लिए कहता हूँ। इतना कहकर रामसिह न एक माली को आवाज दी और जब वह आ गया तब हुक्म दिया कि कोचवान को शीघ गाडी तैयार करने के लिए कहो। जब तक गाडी तैयार हाती रही तब तक दोनों दोस्त वाग में टहलते और बातें करत रह जब मालूम हुआ कि गाडी तैयार है तब कमरे में आए और पोशाक बदल कर वहाँ से रवाना हुए। कहाँ गये और क्या किया इसके कहने की कोई जरूरत नहीं। हाँ इस जगह पर थोडा सा हाल पारसनाथ का जरूर लिखेंग जिसन इन दोनों को बाजार में गाडी पर सदार जाते देखा था और चाहा था कि किसी तरह इन दोनों का सत्यानाश हो जाय तो बेहतर है। पारसनाथ याजार को तय करता हुआ ऐसी जगह पहुंचा जहाँ से बहुत तग और गन्दी गलियों का सिलसिला जारी होता था और इन गलियों में घूमता हुआ एक उजाड मुहल्ले में पहुंचा जहाँ दिन दापहर के समय भी आदमियों का जाते डर मालून पडता था। यहाँ पर एक मजबूत मगर पुराना मकान था जिसके दरवाजे पर पहुँच कर पारसनाथ ने कुण्डी काजर की कोठडी १२५१