पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२५

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@ वीरेन्द्र-मुश्किल तो यह है कि तुम क्रूरसिंह के दोनों ऐयारों को फँसाना चाहते हो और वे लोग तुम्हारी गिरफ्तारी की फिक्र में है, परमेश्वर ही कुशल करे। खैर अब तुम जाओ और जिस तरह बने चन्दकान्ता से मेरी मुलाकात का बन्दोबस्त करो। तेजसिंह फौरन उठ खड़े हुए और बीरेन्द्रसिंह को वहीं छोड़ पैदल विजयगढ़ की तरफ रवाना हुए। वीरेन्द्रसिंह भी घोड़े को दरख्त से खोल कर उस पर सवार हुए और अपने किले की तरफ चले गये। दूसरा बयान विजयगढ़ में क्रूरसिंह * अपनी बैठक के अन्दर नाजिम और अहमद दोनों ऐयारों के साथ बैठा बातें कर रहा है। क्रूर-देखो नाजिम. महाराज को तो यह खयाल है कि मैं राजा होकर मंत्री के लड़के को कैसे दामाद बनाऊँ और चन्द्रकान्ता बीरेन्द्रसिंह को चाहती है। अब कहो कि मेरा काम कैसे निकले? अगर सोचा जाय कि चन्द्रकान्ता को लेकर भाग जाऊँ, तो कहाँ जाऊँ और कहाँ रह कर आराम करूँ? फिर ले जाने के बाद मेरे बाप की महाराज क्या दुर्दशा करेंगे? इससे तो यही मुनासिब होगा कि पहिले बीरेन्द्रसिंह और उसके ऐयार तेजसिंह को किसी तरह गिरफ्तार कर किसी जगह ले जाकर खपा डाला जाय कि हजार वर्ष तक पता न लगे और इसके बाद मौका पाकर महाराज को मारने की फिक्र की जाय,फिर तो मै झट गद्दी का मालिक बन जाऊँगा और तब अलबत्ता अपनी जिन्दगी में चन्द्रकान्ता से ऐश कर सकूँगा। मगर यह तो कहो कि महाराज के मरने के बाद मैं गद्दी का मालिक कैसे बनूंगा? लोग कैसे मुझे राजा बनाएँगे ?" नाजिम-हमारे राजा के यहाँ बनिस्बत काफिरों के मुसलमान ज्यादा हैं, उन सभों को आपकी मदद के लिए मै राजी कर सकता, और उन लोगों से कसम खिला सकता हूँ कि महाराज के बाद आपको राजा मानें, मगर शर्त यह है कि काम हो जाने पर आप भी हमारे मजहब मुसलमानी को कबूल करें? रसिंह-अगर ऐसा है तो तुम्हारी शर्त मैं दिलोजान से कंबूल करता हूँ। अहमद-तो बस ठीक है. आप इस बात का एकरारनामा लिख कर मेरे हवाले करें, मै सब मुसलमान भाइयों को दिखला कर उन्हें अपने साथ मिला लूँगा। रसिंह ने काम हो जाने पर मुसलमानी मजहब अख्तियार करने का एकरारनामा लिख कर फौरन नाजिम और अहमद के हवाले किया, जिसपर अहमद ने क्रूरसिह से कहा. अब सब मुसलमानों को एकदिल कर लेना हम लोगों के जिम्मे है इसके लिए आप कुछ न सोचिये, हाँ हम दोनों आदमियों के लिए भी एक एकरारनामा इस बात का हो जाना चाहिए कि आपके राजा होने पर हमी दोनों वजीर मुकर्रर किये जायेंगे, और तब हम लोगों की चालाकी का तमाशा देखिये कि बात की बात में जमाना कैसे उलट पलट कर देते है ! रसिंह ने झटपट इस बात का भी एकरारनामा लिख दिया जिससे वे दोनों बहुत ही खुश हुए। इसके बाद नाजिम ने कहा."इस वक्त हम लोग चन्द्रकान्ता के हालचाल की खबर लेने जाते है क्योंकि यह शाम का वक्त बहुत अच्छा है, चन्द्रकान्ता जरूर बाग में गई होगी और अपनी सखी चपला से अपनी विरह कहानी कहती होगी. इसलिए हमको इसका पता लगाना कोई मुश्किल न होगा कि आजकल बीरेन्द्रसिंह और चन्द्रकान्ता के बीच में क्या हो रहा है।" यह कह कर दोनों ऐयार क्रूरसिह से विदा हुए । तीसरा बयान कुछ दिन बाकी है, चन्द्रकान्ता चपला और चार बाग में टहल रही है। भीनी भीनी फूलों की महक धीमी हवा के साथ मिल कर तबीयत को खुश कर रही है। तरह तरह के फूल खिले हुए है। बाग के पश्चिम की तरफ वाले आम के घने पेड़ों की बहार और उसमें से बैठले हु: सूरज की किरणों की चमक एक अजीब ही मजा दे रही है। फूलों की

  • इसकी उम्र २१ या २२ वर्ष की थी, इसके ऐयार भी कमसिन थे।

देवकीनन्दन खत्री समग्र २