पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२५०

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cxt खटखटाई। थोडी देर बाद किसी ने भीतर से पूछा, "कौन है ? ' इसके जवाब में पारसनाथ ने कहा, 'गूलर का फूल ! दर्वाजा खुला और पारसनाथ उसके अन्दर चला गया। इसके बाद मकान का दर्वाजा भी वन्द हो गया। इस मकान की भीतरी कैफियत बयान करने की इस समय कोई जरूरत नहीं है क्योंकि हम मुख्तसर ही में उन बातों को बयान करना चाहते है जिन्हें असल फैक्ट कह सकते हैं। एक लम्बे-चौड दालान में पारसनाथ के कई दोस्त और मददगार बैठे आपस में यातें और दम दम भर पर गॉजे का दम लगा कर मकान को सुवासित कर रहे थे, इसी मण्डली में हमारा पुराना परिचित हरिहरसिह भी बैठा हुआ था। पारसनाथ को देख कर सब उठ खड़े हुए और हरिहरसिह ने बडी खातिर क साथ बैठाकर यातचीत करना शुरू किया। कहेंगे। हरिहर - कहो दास्त क्या राग-दग है? पारस- बहुत अच्छा है। आनन्द ही आनन्द दिखता है। हमारे मामले का पुराना कोढ भी निकल गया और अब हम- लोग हर तरह से वफिक्र हा कर अपना काम करने लायक हो गये। हरिहर - (चौक कर ) कहा कहो जल्दी कहो,क्या हुआ। वह काढ कौन सा था और कैसे निकल गया? दूसरा -- हॉ यार सुनाआ ता सही यह तो तुम बड़ी खुशखबरी लाये । पारस - वेशक खुशखबरी की बात है बल्कि यों कहना चाहिये कि हम लोगों के लिए इससे बढकर खुशखबरी हो ही नहीं सकती। हरिहर - सच तो यों है कि दन लगा लेंग तभी कुछ दूसरा- (तैयार चिलम पारसनाथ की तरफ बढ़ाकर ) लीजिए दम भी तैयार है मलते.मलते मोम कर डाला है। पारस -- (दम लगा कर ) हम लागों को अपन कम्बख्त चचा लालसिह का बड़ा ही डर लगा हुआ था। यह सोचते थे कि कहीं ऐसा न हो कि कम्बख्त दूसरा ही वसीयतनामा लिख कर हमारी सब मेहनत ही मटटी कर द. एसी हालत में सरला की शादी दूसर के साथ हो जाने पर भी इच्छानुसार लाभ न हाता और इसी सवच स हम लाग उसे मार डालने का विचार भी कर रह थे । तीसरा - हाँ हाँ तो क्या हुआ दह मर गया ? पारस - मरा ता नहीं पर मरे के बराबर हा गया। हरिहर - सो कैसे ? तुमन ता कहा था कि वह कहीं चला गया। पारस - हाँ ठीक है एसा ही हुआ था मगर आज उसके हाथ की लिखी हुई एक चिट्ठी मुझे मिली जिसे एक आदमी लेकर मर पास आया था। हरिहर – उसमें क्या लिखा था? पारस-(जय स चिटठी निकाल कर और हरिहरसिह को दिखाकर) ला जो कुछ है पढ लो और हमारे इन दास्तो को भी सुना दी। हरिहर - (चिटठी पढ़ कर ) बस बस बस अब हमारा काम हो गया। जब उसने संन्यास ही ले लिया तब उर्स अपनी जायदाद पर किसी तरह का अधिकार न रहा और न वह किसी तरह का वसीयतनामा ही लिख सकता है, ऐसी अवस्था में केवल सरला की शादी ही किसी दूसरे के साथ हो जान से काम चल जायेगा और किसी को किसी तरह का उजू न रहेगा मगर एक बात की कसर जरूर रह जायेगी। पारस-वह क्या? हरिहर - यही कि शादी हो जान के बाद सरला अपने मुँह से किसी बडे बुजुर्ग या प्रतिष्ठित आदमी के सामने कह दे कि 'यह शादी मेरी प्रसन्नता से हुई है । पारस - हाँ यह बात बहुत जरूरी है मगर में इसका भी पूरा-पूरा बन्दावस्त कर चुका हूँ। हरिहर - वह क्या? पारस - वादी ने इस काम के लिए एक बुडढी खन्नास का ठीक कर दिया है। वह सरला को दूसरे के साथ शादी करने पर राजी कर लेगी। हरिहर -- भगर मुझे विश्वास नहीं हाता कि सरला इस बात का मजूर कर लेगी या किसी के कहने-सुनने में आ जायेगी। उस रोज खुद तुम्हीं न सरला से बातें करक देख लिया है। पारस - ठीक है मगर उसके लिए बादी की मॉ ने जो चालाकी खली है वह भी साधारण नहीं है। हरिहर -मो क्या? पारस -- उसने हरनन्दन से एक चिट्ठी लिखवा ली है कि मुझे सरला के साथ शादी करना स्वीकार नहीं है। जो नौजवान और कुआरी लडकी घर से निकल कर कई दिन तक गायब रहे उसके साथ शादी करना धर्मशास्त्र के विरुद्ध है इत्यादि । इसके अतिरिक्त हरनन्दन ने उस चिट्ठी में ओर भी ऐसी कई गन्दी बातें लिखी है जिन्हें पढते ही सरला देवकीनन्दन खत्री समय १२५२