पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२५३

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खुशी से मजूर कर ली गई । एक तो चेहरे पर रोली का जमाना और दूसरे यादले का वन्ददार सहारा चिफर घर से बाहर निकलना। साथ ही इसके यह बात भी ते पा गई कि शादी के समय पर कवल एक आदमी का साथ लिय हुए शिवनदन उस मकान में पहुंचाए जाये जिसमें सरला है अथवा जिसमें शादी का यन्दोवस्त होगा। बातचीत खतम होने पर पारसनाथ और हरिहरसिह घर चले गय और उसके दा घण्ट वाद शिवनन्दन ने भी रामसिह के घर की तरफ प्रस्थान किया। चौदहवां बयान अब हम सरला और शिवनन्दन की शादी वाल दिन का हाल बयान करते है। वह दिन पारसनाथ और हरिहरसिह के लिए बड़ी खुशी का दिन था। हरनन्दन की इच्छानुसार बोंदी ने पूरा-पूरा बन्दोवस्त कर दिया था और इसी बीच में हरनन्दन और पारसनाथ को कई दफे बादी के यहा जाना पड़ा और इसका नतीजा जाहिर में दानों ही के लिए अच्छा निकला। जिस दिन शादी होने वाली थी उस दिन पारसनाथ ने शादी का कुल सामान उसी मकान में ठीक किया जिसमें सरला कैद थी। आदमियों में से केवल पारसनाथ हरिहरसिह सुलतानी, सरला और शिवनन्दन के पुरोहित उस मकान में दिखाई दे रहे थे इनके अतिरिक्त पारसनाथ का भाई धरणीधर भी इस काम में शरीक था जो आधी रात के समय शिवनन्दन को लाने के लिए उसक मकान पर गया हुआ था। रात आधी से ज्यादा जा चुकी थीं मकान के अन्दर चौक में शादी का सब सामान ठीक हो चुका था कसर इतनी ही थी कि शिवनन्दन आवें और दो चार रस्में पूरी करके शादी कर दी जाय। थोड़ी ही देर में वह कसर भी जाती रही अर्थात् दरवाजे का कुण्डा खटखटाया गया और जब मामूली परिचय लेने के बाद पारसनाथ ने उस खोला तो शिवनन्दनसिह को साथ लिए हुए धरणीधर ने उस मकान के अन्दर पैर रक्खा। इस समय शिवनन्दन के साथ केवल एक आदमी था जिसे पारसनाथ वगैरह पहिचानते न थे। शिवनन्दनसिह पूरे तौर से दूल्हा बने हुए थे। मकान के अन्दर जिस समय दाखिल हुए उस समय मोटे और स्याह कपों से अपने तमाम बदन का छिपाये हुए थे पर जिस समय वह स्याह कपडा उतार कर उन्होंन दूर रख दिया उस समय लागों ने देखा कि उनक ठाठ में किसी तरह की कमी नहीं है अयाकया और जामा जाडा से पूरी तरह लैस है। सिर पर बडी मन्दील और बादले का बना सेहरा और उसके ऊपर खुशबूदार फूलों के सहरे ने उनके चेहरे को पूरी तरह से ढक रक्खा था। खैर शिवनन्दनसिह नाममात्र के मडवे में बैठाए गये और प्रोहितजी ने पूजा की कार्रवाई शुरू की। यद्यपि पारसनाथ वगैरह को जल्दी थी और वे चाहते थे कि दो ही पल में शादी हो हवा के छुट्टी हो जाय मगर प्रोहितजी को यह बात मजूर नथी। वे चाहते थे कि पद्धति और विधि में किसी प्रकार की कमी न होने पावे अस्तु लाचार होकर पारसनाथ वगैरह को भी उनकी इच्छानुसार चलना पड़ा। पारसनाथ ने कन्यादान किया और एक तौर पर एक शादी राजीखुशी के साथ तै पा गई। इसी समय में पारसनाथ ने कलम दवात और कागज सरला के सामने रख दिया और कहा अब वादे के मुताबिक तू लिख दे कि मैंने अपनी प्रसन्नता से शिवनन्दन के साथ अपना विवाह कर लिया इसमें न तो किसी का दाप है और न किसी न मुझ पर किसी तरह का दबाव डाला। सरला ने इस बात का मन्जूर किया और पुर्जा लिखकर पारसनाथ के हाथ में दे दिया। जब पारसनाथ ने उसे पढा तो उसमें यह लिखा हुआ पाया- मुझ अपने पिता की आज्ञानुसार हरनन्दनसिह के अतिरिक्त किसी दूसरे के साथ विवाह करना स्वीकार न था। यद्यपि मेरे भाइयों ने इसके विपरीत काम करने की इच्छा से मुझे कई प्रकार के दुख दिये और बड़े बड़े यल खेले मगर परमात्मा ने मेरी इज्जत रचा ली और अन्त में मेरी शादी हरनन्दनसिह ही के साथ हो गई। पुर्जा पढकर पारसना को ताज्जुब मालूम हुआ और वह क्रोध मरी आँखों से सरला की तरफ देखने लगा पर उसी समय यकायक दर्वाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज आई। जब धरणीधर ने जाकर पूछा कि कौन है ? तो जवाब में बाहर से किसी ने वही पुराना परिचय अर्थात् 'गूलर का फूल कहा। दर्वाजा खोल दिया गया और धड़धड़ाते हुए कई आदमी मकान के अन्दर दाखिल हो गए। जो लोग इस तरह मकान के अन्दर आये वे गिनती में चालीस से कम न होंगे उनके साथ बहुत सी मशालें थी और कई आदमी साथ में नगी तलवारें लिए हुए मारने काटने के लिए भी तैयार दिखाई दे रहे थे। उन लोगों न आते ही पारसनाथ धरणीधर और हरिहरसिह की मुश्के बॉघ ली और एक आदमी ने आग बढफर पारसनाथ से कहा 'कहोमर चिरञ्जीव ! मिजाज कैसा है? क्या तुम इस समय भी अपने चाचा को सन्यासी के भष में देख रहे हो? मशालों की रोशनी से इस समय दिन के समान उजाला हो रहा था। पारसनाथ ने अपन चाचा लालत्तिह को सामने काजर की कोठड़ी १२५५